यहाँ कुरआन की आयत 2:112 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:
﴿بَلَىٰۚ مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُۥٓ أَجْرُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ﴾
हिंदी अनुवाद:
"क्यों नहीं! (ऐसा ही है!) बल्कि जिसने अल्लाह के आगे समर्पण कर दिया और वह अच्छे कर्म करने वाला है, तो उसके लिए उसका बदला उसके रब के पास है, और न उन पर कोई भय होगा और न वे उदासीन होंगे।"
शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
بَلَىٰ : बिल्कुल! क्यों नहीं! (पिछली बात की पुष्टि और खंडन दोनों में आता है, यहाँ इसका अर्थ है "ऐसा ही है, बिल्कुल सही")
مَنْ : जिसने भी
أَسْلَمَ : समर्पण कर दिया
وَجْهَهُۥ : अपना चेहरा / अपना सारा अस्तित्व
لِلَّهِ : अल्लाह के लिए
وَهُوَ : और वह
مُحْسِنٌ : अच्छे कर्म करने वाला / भलाई करने वाला
فَلَهُۥٓ : तो उसके लिए है
أَجْرُهُۥ : उसका प्रतिफल / बदला
عِندَ رَبِّهِۦ : उसके रब के पास
وَلَا : और नहीं
خَوْفٌ : डर / भय
عَلَيْهِمْ : उन पर
وَلَا : और न
هُمْ : वे
يَحْزَنُونَ : उदास होते हैं / शोक करते हैं
पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):
यह आयत पिछली आयत (2:111) का सीधा और तार्किक जवाब है। जब यहूदी और ईसाई यह दावा करते थे कि जन्नत सिर्फ़ उन्हीं के लिए है, तो अल्लाह ने उनसे सबूत माँगा। फिर इस आयत में अल्लाह स्पष्ट कर देता है कि जन्नत पाने की असली शर्त क्या है।
यह आयत जन्नत में दाख़िल होने के लिए दो मौलिक शर्तें बताती है:
"अस्लमा वजहहु लिल्लाह" (अल्लाह के आगे समर्पण):
"वज्ह" (चेहरा) का मतलब here केवल शारीरिक चेहरा नहीं है, बल्कि पूरा अस्तित्व, इरादे, और ध्यान है।
"अस्लमा" (समर्पण कर दिया) यहाँ "इस्लाम" की मूल भावना को दर्शाता है - पूर्ण आत्मसमर्पण।
सार: इंसान का अपनी पूरी ज़िंदगी, अपने सभी कर्म, अपनी इच्छाएँ और अपना पूरा अस्तित्व केवल अल्लाह के लिए समर्पित कर देना। यह शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराना) से पूरी तरह मुक्त होना है।
"व हुवा मुहसिनुन" (और वह अच्छे कर्म करने वाला है):
"इह्सान" का मतलब है "भलाई करना" या "किसी काम को बेहतरीन तरीके़ से करना"।
धार्मिक संदर्भ में इसके दो पहलू हैं:
अल्लाह के साथ इह्सान: यह है कि इंसान अल्लाह की इबादत इस तरह करे जैसे वह अल्लाह को देख रहा है, और भले ही न देख रहा हो, लेकिन यह यक़ीन रखे कि अल्लाह उसे देख रहा है। (यह हदीस-ए-जिब्रील में बताया गया उच्चतम स्तर है)।
बंदों के साथ इह्सान: अल्लाह की बनाई हुई सभी मख़्लूक़ (इंसान, जानवर, पर्यावरण) के साथ दया, नेकी और अच्छा व्यवहार करना।
परिणाम (Result): जो व्यक्ति इन दोनों शर्तों को पूरा करेगा, उसके लिए अल्लाह तीन चीज़ों का वादा करता है:
"फ़ा लहू अजरुहू इंदा रब्बिही" - उसके लिए उसका पूरा-पूरा प्रतिफल उसके रब के पास सुरक्षित है।
"व ला खौफुन अलैहिम" - आख़िरत में उन पर कोई डर नहीं होगा (नर्क, हिसाब-किताब आदि का डर नहीं)।
"व ला हुम यहज़नून" - और न ही वे किसी चीज़ का रंज व गम या पछतावा करेंगे (जैसे दुनिया छूटने का गम या पापों का पछतावा)।
ये तीनों वादे सीधे जन्नत की शांति और सुरक्षा की ओर इशारा करते हैं।
शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
जन्नत "ख़रीदने" की चीज़ नहीं, "कमाने" की चीज़ है: जन्नत किसी ख़ास समुदाय की जागीर नहीं है। यह हर उस इंसान के लिए है जो अल्लाह के आगे झुक जाए और नेक अमल करे, चाहे वह किसी भी जाति, देश या पृष्ठभूमि से ताल्लुक़ रखता हो।
ईमान और अमल का अटूट रिश्ता: सच्चा ईमान (समर्पण) और नेक अमल एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना अमल के दावा-ए-ईमान खोखला है, और बिना ईमान के अमल बेकार है।
इह्सान (उत्कृष्टता) जीवन का लक्ष्य: मुसलमान का लक्ष्य सिर्फ़ "मुसलमान" होना भर नहीं है, बल्कि "मुहसिन" (अच्छाई फैलाने वाला) बनना है। हर काम, चाहे वह इबादत हो या दुनियावी काम, उसे अच्छे से करना चाहिए।
आख़िरत में सच्ची कामयाबी: असली सफलता दुनिया की दौलत या हैसियत नहीं, बल्कि आख़िरत में अल्लाह की रहमत, जन्नत और डर व गम से आज़ादी है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत मदीना के यहूदियों और ईसाइयों के संकीर्ण दावों का सीधा जवाब थी। यह स्थापित करती है कि अल्लाह का धर्म हमेशा से एक ही रहा है - पूर्ण समर्पण और नेकी। यह नियम पैग़म्बर इब्राहीम, मूसा, ईसा (सभी पर सलाम) के सच्चे अनुयायियों के लिए भी लागू था।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
धार्मिक कट्टरता का इलाज: आज दुनिया में हर धर्म के कुछ लोग यही सोचते हैं कि "बचाव" सिर्फ़ उन्हीं के पंथ/मज़हब तक सीमित है। यह आयत इस कट्टरता को तोड़ती है और एक सार्वभौमिक मानदंड पेश करती है।
औपचारिकता बनाम सार्थकता: बहुत से लोग सिर्फ़ नाम के मुसलमान हैं, उनके अमल और चरित्र में इस्लाम नहीं है। यह आयत याद दिलाती है कि ज़रूरी "इस्लाम" (समर्पण) और "इह्सान" (अच्छाई) दोनों को जीवन में उतारना है।
आध्यात्मिक शांति की चाह: "ला खौफुन अलैहिम व ला हुम यहज़नून" का वादा आज के तनावग्रस्त और चिंतित समाज के लिए एक दिव्य शांति का संदेश है। यह बताता है कि असली शांति और निर्भयता सिर्फ़ अल्लाह के साथ सही रिश्ते से ही मिल सकती है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत क़यामत तक इंसानियत के लिए एक स्थायी मानदंड है। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि ईश्वर के यहाँ इंसान की हैसियत उसके लेबल (Label) से नहीं, बल्कि उसके समर्पण (Submission) और उसके चरित्र (Character) से तय होगी। यह भविष्य की सभी पीढ़ियों को एकता, न्याय और सच्ची आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाती रहेगी।