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कुरआन की आयत 2:119 की पूरी व्याख्या

 यहाँ कुरआन की आयत 2:119 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:

﴿إِنَّآ أَرْسَلْنَـٰكَ بِٱلْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۖ وَلَا تُسْـَٔلُ عَنْ أَصْحَـٰبِ ٱلْجَحِيمِ﴾

हिंदी अनुवाद:

"निश्चय ही हमने आपको सत्य के साथ भेजा है, शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले के रूप में, और आपसे जहन्नम वालों के बारे में (कोई जिम्मेदारी के) सवाल नहीं किया जाएगा।"


शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِنَّآ : निश्चित रूप से हमने

  • أَرْسَلْنَـٰكَ : आपको भेजा है

  • بِٱلْحَقِّ : सत्य के साथ

  • بَشِيرًا : शुभ सूचना देने वाले के रूप में

  • وَنَذِيرًا : और सावधान करने वाले के रूप में

  • وَلَا : और नहीं

  • تُسْـَٔلُ : आपसे पूछा जाएगा

  • عَنْ : के बारे में

  • أَصْحَـٰبِ : वालों के

  • ٱلْجَحِيمِ : जहन्नम (नरक की आग)


पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):

यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को एक महत्वपूर्ण आश्वासन और सांत्वना देती है। पिछली आयतों में जिन लोगों के बारे में बताया गया था जो सत्य को ठुकराते हैं और असंभव माँगें करते हैं, उनके व्यवहार से पैगंबर दुखी हो सकते थे। इस आयत में अल्लाह उन्हें तीन मुख्य बातें बताकर ढाढस बँधाता है:

1. दिव्य प्रेरणा का आश्वासन (इन्ना अरसलनाका बिल हक्क):

  • "निश्चय ही हमने आपको सत्य के साथ भेजा है।"

  • यह पैगंबर के मिशन की वैधता और सच्चाई की पुष्टि है। आप जो ला रहे हैं वह सत्य है, भले ही लोग उसे न मानें।

  • इससे पैगंबर का दिल मजबूत होता है कि वह अल्लाह के सत्य के साथ खड़े हैं।

2. मिशन का स्पष्टीकरण (बशीरन व नजीरा):

  • "शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले के रूप में।"

  • बशीर: उन लोगों को शुभ खबर (जन्नत की) देने वाले जो ईमान लाएँगे और अच्छे कर्म करेंगे।

  • नजीर: उन लोगों को डराने वाले जो इनकार करेंगे और बुरे कर्म करेंगे (उनके लिए जहन्नम की सजा है)।

  • यह बताता है कि पैगंबर का काम सिर्फ़ डराना ही नहीं, बल्कि आशा देना भी है। उनका मिशन संपूर्ण और संतुलित है।

3. जिम्मेदारी से मुक्ति (व ला तुस'अलु अन अस्हाबिल जहीम):

  • "और आपसे जहन्नम वालों के बारे में (कोई जिम्मेदारी के) सवाल नहीं किया जाएगा।"

  • यह पैगंबर के लिए एक बहुत बड़ी राहत और सांत्वना की बात है।

  • इसका मतलब यह है कि जो लोग आपकी बात नहीं मानेंगे और जहन्नम में जाएँगे, उनके बारे में आपसे क़यामत के दिन कोई पूछताछ नहीं की जाएगी। आपने अपना कर्तव्य (तबलीग) पूरा कर दिया। लोगों के इनकार करने की ज़िम्मेदारी आप पर नहीं है, बल्कि उनकी अपनी ज़िम्मेदारी है।

  • यह आयत पैगंबर के हृदय से उस बोझ को हटा देती है जो उन लोगों के कारण हो सकता था जो उनकी बात नहीं मान रहे थे।


शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • दावत का तरीका: इस्लामी प्रचार (दावत) का तरीका संतुलित होना चाहिए - आशा (बशारत) और भय (इनज़ार) दोनों का समन्वय।

  • कर्तव्य की सीमा: एक मुसलमान का काम सिर्फ़ सत्य को पहुँचाना (तबलीग) है। लोगों के हृदयों को बदलना अल्लाह के हाथ में है। इसलिए, अगर कोई सत्य स्वीकार नहीं करता तो निराश नहीं होना चाहिए।

  • अल्लाह पर भरोसा: सत्य के मार्ग पर चलने वाले को चाहिए कि वह अपने मिशन की सच्चाई पर दृढ़ रहे और नतीजे की चिंता अल्लाह पर छोड़ दे।

  • पैगंबर के प्रेम का प्रमाण: यह आयत अल्लाह के अपने पैगंबर के प्रति स्नेह और चिंता को दर्शाती है, जो उन्हें मानसिक तनाव से बचाना चाहता था।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और प्रारंभिक मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ा सहारा थी, जब मक्का के बहुसंख्यक लोग उनका विरोध कर रहे थे और उनकी बात नहीं मान रहे थे। इसने उन्हें आत्मविश्वास और धैर्य दिया।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत हर उस मुसलमान के लिए प्रासंगिक है जो लोगों को इस्लाम की ओर बुलाता (दावत देता) है:

    • दाइयों (प्रचारकों) के लिए मार्गदर्शन: आज भी दाइयों को लोगों के इनकार, उपहास और विरोध का सामना करना पड़ता है। यह आयत उन्हें यह सिखाती है कि उनका काम सिर्फ़ पहुँचाना है। नतीजा अल्लाह के हाथ में है। इससे उन्हें मनोबल मिलता है।

    • माता-पिता और शिक्षकों के लिए सबक: माता-पिता और शिक्षक भी अपने बच्चों और छात्रों को सही राह दिखाने की कोशिश करते हैं। अगर बच्चे नहीं सुनते, तो उन्हें यह आयत याद रखनी चाहिए कि उन्होंने अपना फर्ज़ निभा दिया, और अब ज़िम्मेदारी दूसरे पर है। इससे उन्हें अनावश्यक गिल्ट और तनाव से मुक्ति मिलती है।

    • धार्मिक चिंता से मुक्ति: कुछ लोग दूसरों के गुनाहों और गुमराही के लिए खुद को ज़िम्मेदार महसूस करने लगते हैं। यह आयत उन्हें बताती है कि हद से ज़्यादा चिंता न करें, बस अपना कर्तव्य निभाएँ।

  • भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत क़यामत तक सत्य के सेवकों और दाइयों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन और सांत्वना बनी रहेगी। जब भी लोग सत्य को ठुकराएँगे, यह आयत सत्य के वाहकों को यह याद दिलाती रहेगी कि उनका काम सिर्फ़ पहुँचाना है, और उनसे उन लोगों के बारे में कोई सवाल नहीं किया जाएगा जो सत्य को नहीं मानते। यह आयत हमेशा कर्तव्य और परिणाम के बीच के सही संतुलन को स्थापित करती रहेगी।