यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की बारहवीं आयत (2:12) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:12 - "अला इन्नहुम हुमुल मुफ्सिदूना व लाकिन ला यशऊरून" (أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُونَ وَلَٰكِن لَّا يَشْعُرُونَ)
हिंदी अर्थ: "सुन लो! वास्तव में वही तो बिगाड़ पैदा करने वाले हैं, किंतु उन्हें (इसका) एहसास नहीं है।"
यह आयत पिछली आयत (2:11) में मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के दावे का सीधा और स्पष्ट खंडन करती है। यह अल्लाह की ओर से एक सुनिश्चित और अंतिम फैसला है जो उनके झूठे दावे और वास्तविकता के बीच के अंतर को बेनकाब करता है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
अला (Alaa): "सुन लो!", "जान लो!", "हाँ, बेशक!" (Indeed! Behold! Lo!)。 यह एक सावधान करने वाला और जोर देने वाला शब्द है जो पाठक का ध्यान खींचता है और यह घोषणा करता है कि जो कुछ आगे आ रहा है वह एक निर्विवाद सत्य है।
इन्नहुम (Innahum): "निश्चय ही वे ही हैं" (Indeed, they)
हुमुल (Humul): "वही हैं" (They are the ones)। "हुम" (वे) के साथ "अल" (The) लगाकर इस बात पर पूरा जोर दिया गया है कि असली मुफसिद (बिगाड़ पैदा करने वाले) और कोई नहीं बल्कि यही लोग हैं। यह उनके दावे ("हम तो सुधारक हैं") का सीधा विरोध है।
अल-मुफ्सिदूना (Al-Mufsidoon): "बिगाड़ पैदा करने वाले" (The corrupters)
व लाकिन (Wa laakin): "परन्तु", "किंतु" (But)
ला यशऊरून (La Yash'uroon): "वे महसूस नहीं करते" (They do not perceive)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
इस छोटी सी आयत में दो गहन सत्य छिपे हैं:
1. सत्य का प्रकटीकरण (The Revelation of Truth)
पिछली आयत में मुनाफिक़ीन ने दावा किया था: "इन्नमा नह्नु मुस्लिहून" (हम तो सुधारक हैं)।
इस आयत में अल्लाह उनके इस दावे को पलट देता है और सच्चाई बयान करता है: "अला इन्नहुम हुमुल मुफ्सिदूना" (सुन लो! निश्चय ही वही बिगाड़ पैदा करने वाले हैं)।
यह अल्लाह का अंतिम निर्णय है। यह बताता है कि अल्लाह के यहाँ उनकी हरकतों का क्या मूल्यांकन है, भले ही दुनिया उन्हें कुछ भी समझे। वे सुधारक नहीं, बल्कि वास्तविक अराजकतावादी हैं।
2. आध्यात्मिक अंधेपन की पराकाष्ठा (The Height of Spiritual Blindness)
"व लाकिन ला यशऊरून" - "किंतु उन्हें इसका एहसास नहीं है।"
यह उनकी सबसे दयनीय स्थिति है। वे न केवल बुराई कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अपनी इस बुराई का एहसास तक नहीं है।
यह अंधेपन का चरम है। यह उनके दिलों पर लगी मुहर और उनकी आत्मा के रोग का सीधा परिणाम है (जैसा कि आयत 2:7 और 2:10 में बताया गया था)।
वे अपने फसाद (बिगाड़) को इतना सामान्य और उचित मानने लगे हैं कि उन्हें लगता है कि वे सही काम कर रहे हैं। यह एक गहरी मानसिक भ्रांति है।
3. पिछली आयतों के साथ संबंध (Connection with Previous Verses)
आयत 11 और 12 को एक साथ पढ़ने पर मुनाफिक़ीन की पूरी तस्वीर सामने आती है:
| आयत | मुनाफिक़ीन का दावा/हरकत | अल्लाह का फैसला / हकीकत |
|---|---|---|
| 2:11 | "इन्नमा नह्नु मुस्लिहून" (हम तो सुधारक हैं) | यह उनका झूठा दावा और आत्म-धोखा है। |
| 2:12 | - | "अला इन्नहुम हुमुल मुफ्सिदूना" (सुन लो! वही बिगाड़ पैदा करने वाले हैं) - यह है हकीकत। |
यह दर्शाता है कि मुनाफिक़ीन की सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है कि वे बुराई कर रहे हैं, बल्कि यह है कि उन्हें अपनी बुराई का एहसास ही नहीं है। वे बुराई को अच्छाई समझ रहे हैं।
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
सच्चाई को पहचानना: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें चीजों को उनके वास्तविक नाम से पुकारना चाहिए। बुराई को चाहे कितना भी सुंदर नाम क्यों न दे दिया जाए, वह बुराई ही रहती है। हमें दिखावे और शब्दों के जाल में नहीं फँसना चाहिए।
आत्म-जागरूकता: यह आयत हमें अपने कर्मों और नीयत पर लगातार नजर रखने की सलाह देती है। कहीं हम भी किसी बुरे काम को "जरूरी सुधार" या "छोटी सी बात" समझकर तो नहीं अनदेखा कर रहे हैं? हमें हमेशा अल्लाह से दुआ करनी चाहिए कि वह हमें सच्चाई देखने और समझने की ताकत दे।
समाज की जिम्मेदारी: यह आयत समाज को सिखाती है कि उसे उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जो "सुधार" के नाम पर समाज में विष फैलाते हैं, भले ही वे कितने भी मीठे बोल क्यों न बोलें।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:12 एक शक्तिशाली निर्णय है जो पाखंडियों के मुखौटे को उतार फेंकती है। यह स्पष्ट कर देती है कि अल्लाह की नजर में उनका असली चेहरा क्या है। यह आयत हमें सिखाती है कि असली खतरा वह बुराई नहीं है जो बुराई के रूप में सामने आए, बल्कि वह बुराई है जो "अच्छाई" का भेस धारण कर ले और इंसान को उसका एहसास तक न हो। इसलिए, हर इंसान का फर्ज है कि वह अपनी नीयत और कर्मों की शुद्धता का लगातार जायजा लेता रहे।