यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक आदेश देती है जो मृत्यु के बाद के जीवन में भी नेकी जारी रखने का एक Practical तरीका बताती है। यह वसीयत (Will) के बारे में पहला इस्लामी निर्देश है।
1. पूरी आयत अरबी में:
كُتِبَ عَلَيْكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ إِن تَرَكَ خَيْرًا الْوَصِيَّةُ لِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ بِالْمَعْرُوفِ ۖ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ
2. आयत के शब्दार्त (Word-to-Word Meaning):
كُتِبَ (कुतिबा) : फर्ज़ किया गया है (लिख दिया गया है)
عَلَيْكُمْ (अलैकुम) : तुम पर
إِذَا (इज़ा) : जब
حَضَرَ (हज़र) : आ जाए, नज़दीक आ जाए
أَحَدَكُمُ (अहदकum) : तुम में से किसी को
الْمَوْتُ (अल-मौत) : मौत
إِن (इन) : यदि
تَرَكَ (तरक) : छोड़े
خَيْرًا (खैरन) : धन-संपत्ति (भलाई)
الْوَصِيَّةُ (अल-वसीय्यतु) : वसीयत (आखिरी इच्छा/हिदायत)
لِلْوَالِدَيْنِ (लिल वालिदैन) : माता-पिता के लिए
وَالْأَقْرَبِينَ (वल अक़रबीन) : और नज़दीकी रिश्तेदारों के लिए
بِالْمَعْرُوفِ (बिल-मअरूफ़) : भलाई (उचित ढंग) से
حَقًّا (हक्कन) : एक सच्चा/न्यायसंगत अधिकार
عَلَى (अला) : पर
الْمُتَّقِينَ (अल-मुत्तक़ीन) : परहेज़गार लोगों
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "तुम पर फर्ज़ किया गया है, जब तुम में से किसी के सामने मौत आ जाए, अगर वह कुछ धन-दौलत छोड़ रहा हो, तो (कि वह) माता-पिता और नज़दीकी रिश्तेदारों के लिए उचित ढंग से वसीयत (करके जाए)। यह परहेज़गार लोगों पर एक सच्चा अधिकार (फ़र्ज) है।"
व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही संवेदनशील और दूरदर्शी कानूनी आदेश देती है:
1. समय और शर्त (The Time and Condition): "इज़ा हज़रा अहदकुमुल मौतु इन तरका खैरन"
समय: वसीयत करने का सही समय मौत के निकट आने पर है। यह व्यक्ति को याद दिलाता है कि दुनिया की हर चीज़ छूटने वाली है और उसे अपने बाद के लिए तैयारी करनी चाहिए।
शर्त: वसीयत केवल उसी व्यक्ति पर फर्ज है "इन तरका खैरन" - अगर वह कुछ धन-संपत्ति (खैर) छोड़ रहा है। जिसके पास छोड़ने के लिए कुछ नहीं है, उस पर यह फर्ज नहीं है।
2. वसीयत का लक्ष्य (The Purpose of the Will): "अल-वसीय्यतु लिल वालिदैनि वल अक़रबीन"
इस आयत का प्राथमिक लक्ष्य माता-पिता और नज़दीकी रिश्तेदार हैं, खासकर वे जो मृतक की संपत्ति के कानूनी वारिस (हेयर) नहीं हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ: इस आयत के उतरने के समय, अरब समाज में बेटों का संपत्ति पर पूरा अधिकार होता था और माता-पिता, बहनें और दूसरे रिश्तेदार वंचित रह जाते थे। इस आयत ने उन वंचितों के अधिकार स्थापित किए।
3. तरीका (The Manner): "बिल-मअरूफ़"
वसीयत "उचित ढंग" से की जानी चाहिए। इसका मतलब है:
वसीयत न्यायसंगत होनी चाहिए।
उसमें किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।
वसीयत में दिया गया हिस्सा इतना अधिक न हो कि कानूनी वारिसों का हक मार जाए।
4. एक नैतिक जिम्मेदारी (A Moral Responsibility): "हक्कन अलल मुत्तक़ीन"
आयत के अंत में इसे "परहेज़गार लोगों पर एक सच्चा अधिकार" बताया गया है।
इसका मतलब यह है कि सिर्फ वसीयत लिख देना ही काफी नहीं है। एक सच्चा मोमिन और मुत्तक़ी (अल्लाह से डरने वाला) व्यक्ति ही इस आदेश की गहराई को समझता है। वह जानता है कि यह सिर्फ एक कानूनी फॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि अल्लाह के आदेश का पालन और अपने परिवार के प्रति अपनी आखिरी जिम्मेदारी है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
मृत्यु की याद: मृत्यु एक सच्चाई है और हर मुसलमान को हमेशा इसकी तैयारी करते रहना चाहिए।
पारिवारिक जिम्मेदारी: एक इंसान की जिम्मेदारी उसकी मौत के बाद भी खत्म नहीं होती। उसे अपने पीछे छूटे हुए लोगों, खासकर उन रिश्तेदारों का ख्याल रखना चाहिए जिनका उसकी संपत्ति पर कानूनी हक नहीं है।
न्याय और दया: वसीयत का आदेश समाज में न्याय और दया को बढ़ावा देता है ताकि कोई व्यक्ति बेसहारा न रह जाए।
तक़वा की परीक्षा: वसीयत करना तक़वा (अल्लाह का डर) की एक Practical परीक्षा है। इंसान अपनी आखिरी इच्छा में किसे याद रखता है, यह उसके ईमान और दिल की स्थिति को दर्शाता है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकिता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
जाहिली अरब समाज: इस आयत ने अरब समाज में एक सामाजिक क्रांति ला दी। इसने माता-पिता और कमजोर रिश्तेदारों के अधिकारों को मजबूत किया, जिन्हें पहले वंचित कर दिया जाता था।
वर्तमान (Present) के लिए:
वसीयत का इस्लामी कानून: आज भी, मुसलमानों के लिए वसीयत करना एक महत्वपूर्ण सुन्नत और एक नैतिक दायित्व है। इस्लामी नियमों के अनुसार, वसीयत में कुल संपत्ति का एक-तिहाई (1/3) हिस्सा से अधिक गैर-वारिसों को नहीं दिया जा सकता, ताकि कानूनी वारिसों के अधिकार सुरक्षित रहें।
पारिवारिक झगड़ों से बचाव: एक स्पष्ट वसीयत परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति को लेकर होने वाले झगड़ों और मनमुटाव को रोकती है।
सामाजिक कल्याण: एक व्यक्ति अपनी वसीयत में मस्जिद, स्कूल, अनाथालय या गरीबों की मदद के लिए भी कुछ रकम छोड़ सकता है, जिससे मरने के बाद भी उसे लगातार सवाब (पुण्य) मिलता रहता है (सदक़ा-ए-जारिया)।
भविष्य (Future) के लिए:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक समाज और संपत्ति का अस्तित्व रहेगा, वसीयत का सिद्धांत प्रासंगिक बना रहेगा। यह आयत हर युग के मुसलमानों को यह याद दिलाती रहेगी कि उनकी जिम्मेदारी अपनी मौत के बाद भी जारी रहती है।
वित्तीय योजना (Financial Planning): आधुनिक वित्तीय योजना में "Will" एक मूलभूत आवश्यकता है। यह आयत 1400 साल पहले ही इसकी आवश्यकता को स्थापित कर चुकी है।
डिजिटल एसेट्स (Digital Assets): भविष्य में, डिजिटल करेंसी और ऑनलाइन खातों जैसी संपत्तियों को वसीयत में शामिल करना और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा। इस आयत का सिद्धांत इन नई चुनौतियों के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
नोट: बाद में उतरी आयत (सूरह अन-निसा) में वारिसों के हिस्से निर्धारित कर दिए गए। उसके बाद, वसीयत का नियम उन गैर-वारिसों के लिए रह गया है जिनका हिस्सा कुरआन में तय नहीं है, और वसीयत कुल संपत्ति के एक-तिहाई से अधिक में नहीं की जा सकती।