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क़ुरआन की आयत 2:190 की पूर्ण व्याख्या

 यह आयत इस्लाम में जिहाद (संघर्ष) के मूल सिद्धांत को स्थापित करती है। यह स्पष्ट करती है कि मुसलमानों को लड़ने की अनुमति किन परिस्थितियों में है और इसके क्या सीमित और नैतिक उद्देश्य हैं।

1. पूरी आयत अरबी में:

وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَقَاتِلُوا (व क़ातिलू) : और लड़ो (युद्ध करो)

  • فِي (फ़ी) : में

  • سَبِيلِ (सबीलि) : रास्ते

  • اللَّهِ (अल्लाह) : अल्लाह के

  • الَّذِينَ (अल्लज़ीना) : उन लोगों से

  • يُقَاتِلُونَكُمْ (युक़ातिलूनकुम) : जो तुमसे लड़ते हैं

  • وَلَا (व ला) : और न

  • تَعْتَدُوا (तअ्तदू) : सीमा उल्लंघन करो (अत्याचार करो)

  • إِنَّ (इन्ना) : निश्चित रूप से

  • اللَّهَ (अल्लाह) : अल्लाह

  • لَا (ला) : नहीं

  • يُحِبُّ (युहिब्बु) : पसंद करता है

  • الْمُعْتَدِينَ (अल-मुअ्तदीन) : सीमा उल्लंघन करने वालों को


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "और तुम अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो, जो तुमसे लड़ते हैं, और सीमा उल्लंघन न करो। निश्चय ही अल्लाह सीमा उल्लंघन करने वालों को पसंद नहीं करता।"

व्याख्या:

यह आयत युद्ध के इस्लामी नियम (Islamic Code of War) की आधारशिला है। इसे तीन मौलिक सिद्धांतों में समझा जा सकता है:

1. लड़ने का उद्देश्य (The Purpose of Fighting): "फ़ी सबीलिल्लाह"

  • लड़ाई का उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ, ज़मीन हड़पना, बदला लेना या दुनियावी शक्ति हासिल करना नहीं है।

  • लड़ाई का एकमात्र उद्देश्य "अल्लाह के रास्ते में" होना चाहिए। इसका मतलब है:

    • अत्याचार और उत्पीड़न को समाप्त करना।

    • धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना।

    • निर्दोष लोगों (मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों) को बचाना।

    • अल्लाह के दीन को स्थापित करने के मार्ग में आने वाली रुकावटों को दूर करना।

2. लड़ने की शर्त (The Condition for Fighting): "अल्लज़ीना युक़ातिलूनकum"

  • यह एक रक्षात्मक (Defensive) सिद्धांत है। मुसलमानों को लड़ने की अनुमति केवल तभी है जब कोई दूसरा पहले हमला करे

  • इस आयत ने मक्का के उन मुसलमानों को लड़ने का अधिकार दिया जिन्हें 13 साल तक अत्याचार सहने, उनके घर छोड़ने और उन पर लगातार हमले किए जाने के बाद मजबूर किया गया था।

  • इसका मतलब यह है कि आक्रामकता (Aggression) या हमलेबाजी (Offensive war) इस्लाम में वर्जित है।

3. लड़ने की सीमा (The Limit in Fighting): "व ला तअ्तदू इन्नल्लाहा ला युहिब्बुल मुअ्तदीन"

  • यह इस आयत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अल्लाह लड़ने की अनुमति देता है, लेकिन साथ ही सख्त निर्देश देता है: "सीमा उल्लंघन न करो।"

  • "इअ्तिदा" (सीमा उल्लंघन) में निम्नलिखित शामिल हैं:

    • निर्दोषों को मारना: बूढ़ों, औरतों, बच्चों, पादरियों और शांतिपूर्ण नागरिकों को नुकसान पहुँचाना।

    • अमानवीय व्यवहार: शवों के साथ दुर्व्यवहार, यातना देना, फसलों और पूजा स्थलों को नष्ट करना।

    • आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करना।

  • अंत में एक स्पष्ट चेतावनी है: "अल्लाह सीमा उल्लंघन करने वालों को पसंद नहीं करता।" यह बताता है कि कोई भी अमानवीय कार्य अल्लाह की नज़र में गुनाह है, भले ही वह "जिहाद" के नाम पर क्यों न किया गया हो।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • इस्लाम शांति का धर्म है: लड़ाई एक अपवाद है, नियम नहीं। यह केवल आत्मरक्षा और अत्याचार के विरुद्ध अंतिम उपाय के रूप में अनुमत है।

  • युद्ध के नैतिक नियम: इस्लाम ने युद्ध के लिए स्पष्ट नैतिक कोड दिया है, जो आज के अंतरराष्ट्रीय युद्ध कानून (Geneva Conventions) से कहीं आगे था।

  • निर्दोष जानों की हिफाज़त: इस्लामी युद्ध नियमों में नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।

  • आक्रामकता पाप है: बिना वजह किसी पर हमला करना अल्लाह को नापसंद है और एक बड़ा पाप है।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • यह आयत मदीना में नवगठित मुस्लिम समुदाय के लिए एक संवैधानिक दिशा-निर्देश थी। इसने उन्हें मक्का के अत्याचारी कुरैश के खिलाफ खुद को बचाने का वैध अधिकार दिया, लेकिन साथ ही युद्ध में नैतिकता बनाए रखने का आदेश भी दिया।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • आतंकवाद का खंडन: आतंकवादी गुट जो निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं, वे सीधे तौर पर "व ला तअ्तदू" (सीमा उल्लंघन न करो) के आदेश का उल्लंघन करते हैं। यह आयत स्पष्ट रूप से उनके कृत्यों को गैर-इस्लामी ठहराती है।

    • आत्मरक्षा का अधिकार: दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय जो अत्याचार और जातीय सफाए (जैसे म्यांमार में रोहिंग्या, फिलिस्तीन आदि) का शिकार हैं, उनके लिए यह आयत अपनी रक्षा करने के अधिकार का धार्मिक आधार प्रदान करती है।

    • युद्ध अपराधों की रोकथाम: यह आयत सैनिकों को याद दिलाती है कि युद्ध के दौरान भी नैतिकता बनाए रखनी ज़रूरी है। अत्याचार, बलात्कार और नागरिकों को निशाना बनाना सख्त मना है।

    • Religious Extremism का जवाब: यह आयत उन लोगों के लिए एक जवाब है जो इस्लाम को एक आक्रामक और हिंसक धर्म बताते हैं। यह साबित करती है कि इस्लामी युद्ध केवल रक्षात्मक और सख्त नैतिक सीमाओं के भीतर है।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • शाश्वत नैतिक कोड: जब तक दुनिया में संघर्ष और युद्ध रहेंगे, यह आयत एक शाश्वत नैतिक मार्गदर्शन के रूप में काम करेगी। यह हमेशा यह सिखाती रहेगी कि "लड़ाई केवल आत्मरक्षा में होनी चाहिए और उसमें भी नैतिक सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।"

    • मानवाधिकारों की रक्षा: भविष्य के किसी भी संघर्ष में, यह आयत मुसलमानों को मानवाधिकारों और नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आदेश देती रहेगी।

    • आक्रामकता के खिलाफ चेतावनी: यह आयत हर युग के मुसलमानों को चेतावनी देती रहेगी कि आक्रामकता और अत्याचार अल्लाह को नापसंद है और ऐसा करने वाले लोग अल्लाह की मदद और रहमत से वंचित रह जाएंगे।