Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:207 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشْرِي نَفْسَهُ ٱبْتِغَآءَ مَرْضَاتِ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ رَءُوفٌۢ بِٱلْعِبَادِ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
وَمِنَ ٱلنَّاسِऔर लोगों में से (कुछ ऐसे भी) हैं
مَنजो (व्यक्ति)
يَشْرِيबेच देता है
نَفْسَهُअपनी जान (अपने आप को)
ٱبْتِغَآءَतलाश में / चाहते हुए
مَرْضَاتِ ٱللَّهِअल्लाह की रज़ा (प्रसन्नता) के
وَٱللَّهُऔर अल्लाह
رَءُوفٌۢबड़ा ही दयावान, कोमल है
بِٱلْعِبَادِबन्दों के साथ

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह की रज़ा (प्रसन्नता) की तलाश में अपने आपको (अल्लाह के मार्ग में) बेच देते हैं। और अल्लाह बन्दों पर बड़ा दयावान है।"

सरल व्याख्या:
पिछली कुछ आयतों (204-206) में अल्लाह ने उस व्यक्ति का वर्णन किया था जो अपनी ज़िद और अहंकार के कारण अल्लाह की नाराज़गी खरीदता है। इस आयत में उसके एकदम विपरीत, एक आदर्श मोमिन का चित्रण है। यह वह व्यक्ति है जो अल्लाह की रज़ा और प्रसन्नता पाने के लिए अपनी सांसारिक इच्छाओं, अपनी आरामतलबी, यहाँ तक कि अपनी जान तक को कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है। वह दुनिया को देखकर अपनी आखिरत नहीं बेचता, बल्कि अपनी दुनिया को देकर अपनी आखिरत खरीदता है। आयत का अंत इस बात के साथ होता है कि ऐसे बन्दों के साथ अल्लाह की दया और कृपा का व्यवहार है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत इस्लामी जीवन के सर्वोच्च आदर्श को प्रस्तुत करती है।

क. "अपने आपको बेच देता है" (यशरी नफसहू):

  • सर्वोच्च कुरबानी: यह एक मुहावरा है जो पूर्ण समर्पण और सर्वोच्च बलिदान को दर्शाता है। इसमें सिर्फ शहादत (जान कुर्बान करना) ही शामिल नहीं, बल्कि वह हर चीज़ शामिल है जो इंसान अपने पास रख सकता है - उसका समय, उसका धन, उसकी ताकत, उसकी इच्छाएँ।

  • लाभदायक सौदा: यह एक "सौदा" है, लेकिन एक ऐसा सौदा जिसमें इंसान को हर चीज़ से बढ़कर मिलता है। अल्लाह इस सौदे के बदले में अपनी रज़ा, जन्नत और अपना दीदार देता है।

ख. "अल्लाह की रज़ा की तलाश में" (इब्तिग़ाए मरदातिल्लाह):

  • एकमात्र उद्देश्य: ऐसे मोमिन का हर कर्म, हर बलिदान के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद होता है - अल्लाह की प्रसन्नता। उसमें लोक-दिखावा, शोहरत, या दुनियावी लाभ की कोई इच्छा नहीं होती।

  • ईमान की शुद्धता: यह "इखलास" (नीयत की शुद्धता) की पराकाष्ठा है।

ग. "और अल्लाह बन्दों पर बड़ा दयावान है" (वल्लाहु रऊफुन बिल इबाद):

  • प्रतिफल की प्रतिज्ञा: अल्लाह यह नहीं कहता कि "मैं बड़ा कठोर हूँ" बल्कि वह कहता है कि "मैं बड़ा दयालु हूँ।" इसका मतलब है कि जो इंसान उसके लिए अपना सब कुछ लुटा देता है, अल्लाह उसके इस छोटे से कर्म का भी बहुत बड़ा प्रतिफल देगा। एक बूंद को सागर में बदल देगा।

  • प्रोत्साहन: यह वाक्य मोमिनों के लिए एक ढाढस और प्रोत्साहन है कि उनका मालिक उन पर दया करने वाला है, न कि उन पर ज़ुल्म करने वाला।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य: एक मोमिन का सबसे बड़ा मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना है, बाकी सब कुछ गौण है।

  2. सच्चा सौदा: दुनिया की क्षणभंगुर सुख-सुविधाओं के बदले अल्लाह की रज़ा और जन्नत का सौदा दुनिया का सबसे लाभदायक सौदा है।

  3. पूर्ण समर्पण: इस्लाम आधा-अधूरा समर्पण स्वीकार नहीं करता। यह पूरे दिल और पूरी जान के साथ अल्लाह के आगे झुक जाने की शिक्षा देता है।

  4. अल्लाह की दया पर भरोसा: मोमिन को हमेशा अल्लाह की दया और रहमत से निराश नहीं होना चाहिए। वह उसके सबसे छोटे प्रयास को भी क़बूल करता है और उसे बड़ा बना देता है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत सहाबा (पैगंबर के साथियों) के उस समूह का सटीक वर्णन है जिन्होंने इस्लाम के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।

  • सुहैब रूमी (र.अ.): उन्होंने अपना सारा धन और संपत्ति मक्का के काफिरों को दे दी ताकि वह मदीना हिजरत कर सकें। पैगंबर (स.अ.) ने इसे "सबसे लाभदायक सौदा" कहा। यह आयत उन्हीं जैसे लोगों पर लागू होती है।

  • बिलाल (र.अ.): उन्होंने अल्लाह के नाम पर भयंकर यातनाएँ सहीं, लेकिन "अहद" (एक) नहीं छोड़ा। उन्होंने अपनी जान अल्लाह की राह में बेच दी।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के युग में इस आयत की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है:

  • आस्था की कमी: आज लोग अपनी जान, समय और पैसा सिर्फ दुनिया की चकाचौंध के लिए लगा देते हैं। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमें अपनी कीमती पूंजी को अल्लाह की रज़ा के लिए खर्च करना चाहिए।

  • छोटी-छोटी कुरबानियाँ: शहादत हर किसी के भाग्य में नहीं, लेकिन हर कोई अपने स्तर पर "अपने आपको बेच" सकता है। जैसे:

    • गुनाह छोड़कर अल्लाह की रज़ा हासिल करना।

    • हलाल रोज़ी कमाने के लिए संघर्ष करना।

    • दीन की शिक्षा हासिल करने के लिए समय और पैसा लगाना।

    • इस्लाम की सेवा और दूसरों की मदद करना।

  • प्रेरणा का स्रोत: जो लोग इस्लाम के लिए काम कर रहे हैं, उनके लिए यह आयत एक प्रेरणा है कि उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की रज़ा होनी चाहिए, लोकप्रियता या दुनियावी लाभ नहीं।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत आदर्श: जब तक इस दुनिया में एक भी मोमिन रहेगा, उसके लिए यह आयत जीवन का आदर्श बनी रहेगी। यह हर पीढ़ी के मोमिनों को यह सिखाती रहेगी कि जीवन का सबसे बड़ा मकसद क्या है।

  • क़यामत का सौदा: क़यामत के दिन जब हर इंसान चाहेगा कि काश उसने दुनिया में अच्छे कर्म किए होते, उस दिन यह "सौदा" करने वाले लोग सफल होंगे।

  • अल्लाह की दया पर भरोसा: भविष्य की हर चुनौती और मुसीबत में, यह आयत मोमिन को यह भरोसा दिलाएगी कि अल्लाह उस पर रऊफ (अत्यंत दयावान) है और उसके छोटे-से-छोटे प्रयास को भी बर्बाद नहीं जाने देगा।

निष्कर्ष: आयत 2:207 पिछली आयतों में वर्णित अहंकारी व्यक्ति के विपरीत, एक सच्चे मोमिन का जीवंत चित्रण है। यह हमें जीवन का असली मकसद बताती है और अल्लाह के साथ एक लाभदायक सौदा करने का रास्ता दिखाती है। यह आयत निराशा में आशा, अंधेरे में रोशनी और दुनियावी मोह से ऊपर उठकर अल्लाह की प्रसन्नता को अपना लक्ष्य बनाने की प्रेरणा देती है।