१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا وَيَسْخَرُونَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ۘ وَٱلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ فَوْقَهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۗ وَٱللَّهُ يَرْزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ
२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| زُيِّنَ | सजा दी गई / आकर्षक बना दी गई |
| لِلَّذِينَ | उन लोगों के लिए |
| كَفَرُوا۟ | जिन्होंने इन्कार किया (काफिर) |
| ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا | दुनिया की ज़िंदगी |
| وَيَسْخَرُونَ | और वे मज़ाक उड़ाते हैं |
| مِنَ ٱلَّذِينَ | उन लोगों का |
| ءَامَنُوا۟ | जो ईमान लाए |
| وَٱلَّذِينَ | और जो लोग |
| ٱتَّقَوْا۟ | डर गए (परहेज़गार बने) |
| فَوْقَهُمْ | उनके ऊपर होंगे |
| يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ | क़यामत के दिन |
| وَٱللَّهُ | और अल्लाह |
| يَرْزُقُ | रोज़ी देता है |
| مَن يَشَآءُ | जिसे चाहता है |
| بِغَيْرِ | बिना |
| حِسَابٍ | गिनती / हिसाब के |
३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "जिन लोगों ने कुफ़्र किया है उनके लिए दुनिया की ज़िंदगी आकर्षक बना दी गई है और वे ईमान वालों का मज़ाक उड़ाते हैं। हालाँकि, क़यामत के दिन परहेज़गार (मुत्तक़ी) लोग उनसे ऊपर (श्रेष्ठ) होंगे। और अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत दुनिया की वास्तविकता को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में समझाती है। यह बताती है कि काफिरों की नज़र में दुनिया की चमक-दमक, धन-दौलत और सुख-सुविधाएँ बहुत ही सुंदर और आकर्षक दिखाई देती हैं। इसी कारण वे ईमान वालों को, जो दुनिया से कम लगाव रखते हैं और आखिरत को तरजीह देते हैं, गरीब और पिछड़ा समझकर उनका मज़ाक उड़ाते हैं। लेकिन आयत यह सच्चाई बताती है कि क़यामत के दिन यह स्थिति पलट जाएगी। उस दिन ईमान वाले और परहेज़गार लोग काफिरों से बहुत ऊपर और श्रेष्ठ होंगे। आयत का अंत इस सिद्धांत के साथ होता है कि दुनिया की रोज़ी तो अल्लाह जिसे चाहे बेहिसाब दे देता है, लेकिन असली सफलता और सम्मान तो आखिरत में मिलने वाला है।
४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)
यह आयत दुनिया और आखिरत के बीच के अंतर को स्पष्ट करती है और मोमिनों को धैर्य और संतुष्टि का पाठ पढ़ाती है।
क. "दुनिया की ज़िंदगी आकर्षक बना दी गई है" (ज़ुय्यिना लिल्लज़ीना कफरूल हयातुद दुनया):
भ्रम की स्थिति: यह एक भ्रम (Illusion) है जो काफिरों पर डाल दिया गया है। वे दुनिया को ही सब कुछ समझ बैठते हैं और उसकी चकाचौंध में अंधे हो जाते हैं। उनकी नज़र सिर्फ इसी जीवन की सुख-सुविधाओं पर टिकी रहती है।
परीक्षा: यह दुनिया एक परीक्षा है। काफिर इस परीक्षा में फंस जाते हैं और दुनिया को ही अपना लक्ष्य बना लेते हैं।
ख. "और वे ईमान वालों का मज़ाक उड़ाते हैं" (वा यसखारूना मिनल्लज़ीना आमनू):
अज्ञानता से पैदा हुआ अहंकार: दुनियावी ऐश्वर्य और शक्ति के कारण काफिरों में अहंकार आ जाता है। वे ईमान वालों को उनकी सादगी, गरीबी या धार्मिक प्रथाओं के कारण नीची नज़र से देखते हैं और उनका उपहास करते हैं।
मोमिनों के लिए परीक्षा: यह मोमिनों के लिए भी एक परीक्षा है कि क्या वे इस मज़ाक और तानों से प्रभावित हुए बिना अपने ईमान और सिद्धांतों पर डटे रहते हैं।
ग. "परहेज़गार लोग उनसे ऊपर होंगे" (वल्लज़ीनत तकवा फौकहुम यौमल कियामah):
वास्तविक सफलता: यह मोमिनों के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी और सांत्वना है। दुनिया की श्रेष्ठता झूठी और अस्थायी है। असली श्रेष्ठता और सच्चा सम्मान तो क़यामत के दिन मिलेगा, जब मुत्तक़ी (परहेज़गार) लोग जन्नत में होंगे और काफिर दोज़ख में।
मूल्यांकन का पैमाना: इस आयत से स्पष्ट है कि इस्लाम में श्रेष्ठता का पैमाना धन या शक्ति नहीं, बल्कि तक़वा (अल्लाह का भय) है।
घ. "अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है" (वल्लाहु यरज़ुकु मन यशाउ बिग़ैरि हिसाब):
रोज़ी एक परीक्षा है: दुनिया की रोज़ी (धन-संपत्ति) अल्लाह की तरफ से एक अनुग्रह (नेमत) भी है और एक परीक्षा भी। अल्लाह चाहे तो किसी काफिर को बेहिसाब धन दे दे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह उससे खुश है।
मोमिन के लिए संदेश: मोमिन को किसी काफिर के धन-दौलत देखकर ईर्ष्या या हताशा नहीं होनी चाहिए। उनकी रोज़ी तो दुनिया में ही खत्म हो जाने वाली है, जबकि मोमिन की असली और शाश्वत रोज़ी तो आखिरत में है।
प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):
दुनिया एक धोखा है: दुनिया की चमक-दमक और उसके सुख एक भ्रम हैं, इनसे धोखा नहीं खाना चाहिए।
ताक़वा ही श्रेष्ठता का आधार है: इंसान की असली क़ीमत उसके धन या ओहदे से नहीं, बल्कि उसके तक़वे (अल्लाह का भय) से है।
मज़ाक से विचलित न हों: अगर काफिर ईमान वालों का मज़ाक उड़ाएँ, तो उससे घबराना नहीं चाहिए और न ही अपने ईमान पर कोई आँच आने देनी चाहिए।
आखिरत पर नज़र रखो: हमेशा आखिरत को याद रखो, क्योंकि वही स्थायी और वास्तविक जीवन है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत मक्का के काफिरों के व्यवहार का सटीक वर्णन करती है। अबू जहल, अबू लहब जैसे कुरैश के नेता बहुत धनवान और ताकतवर थे। वे पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनके साथियों का इसलिए मज़ाक उड़ाते थे क्योंकि वे गरीब और कमज़ोर थे। यह आयत उन मोमिनों को दिलासा दे रही थी कि उनकी हालत अस्थायी है और आखिरत में उनका ही पलड़ा भारी होगा।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज का युग इस आयत की सच्चाई को साबित कर रहा है:
भौतिकवाद का बोलबाला: आज पूरी दुनिया भौतिकवाद (Materialism) में डूबी हुई है। लोगों के लिए सफलता का पैमाना पैसा, शोहरत और ऐश्वर्य ही है। यह "दुनिया की ज़िंदगी का सजना" है।
धर्म का मज़ाक: ईमान वालों और धार्मिक प्रतीकों का खुलेआम मज़ाक उड़ाया जाता है। मीडिया और फिल्मों में धर्मपरायण लोगों को पिछड़ा और हास्यास्पद दिखाया जाता है।
मुसलमानों में हताशा: कुछ मुसलमान, गरीबी और कमज़ोरी देखकर हताश हो जाते हैं और काफिरों की भौतिक उन्नति से प्रभावित होकर अपने ईमान और इस्लामी पहचान पर संकट महसूस करने लगते हैं। यह आयत उन्हें संबल देती है कि यह सब कुछ अस्थायी है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत सत्य: जब तक दुनिया है, भौतिक और आध्यात्मिक सफलता के बीच यह टकराव बना रहेगा। यह आयत हर युग के मोमिन को यही संदेश देगी कि वह दुनिया के दिखावे से प्रभावित न हों।
प्रेरणा का स्रोत: जब भी मुसलमानों पर मुसीबतें आएंगी और दुनिया उन्हें नीचा दिखाएगी, यह आयत उनके लिए हिम्मत और धैर्य का स्रोत बनी रहेगी।
अंतिम लक्ष्य का स्मरण: यह आयत हमेशा मोमिनों को याद दिलाती रहेगी कि उनका अंतिम लक्ष्य अल्लाह की रज़ा और आखिरत की सफलता है, दुनिया की कामयाबी नहीं।
निष्कर्ष: आयत 2:212 मोमिनों के लिए एक शक्तिशाली मार्गदर्शन और सांत्वना है। यह दुनिया की असली हकीकत बताकर हमें भौतिकवाद के भ्रम से बचाती है और आखिरत की शाश्वत सफलता के लिए प्रेरित करती है। यह हमें सिखाती है कि हमें लोगों के मज़ाक और तानों से डरे बिना, अपने तक़वे और ईमान पर अडिग रहना चाहिए।