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कुरआन की आयत 2:218 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَٱلَّذِينَ هَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أُو۟لَـٰٓئِكَ يَرْجُونَ رَحْمَتَ ٱللَّهِ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
إِنَّनिश्चित रूप से
ٱلَّذِينَवे लोग
ءَامَنُوا۟जो ईमान लाए
وَٱلَّذِينَऔर वे लोग
هَاجَرُوا۟जिन्होंने हिजरत की
وَجَـٰهَدُوا۟और जिहाद किया
فِىमें
سَبِيلِरास्ते
ٱللَّهِअल्लाह के
أُو۟لَـٰٓئِكَऐसे ही लोग
يَرْجُونَउम्मीद रखते हैं
رَحْمَتَदया की
ٱللَّهِअल्लाह की
وَٱللَّهُऔर अल्लाह
غَفُورٌबड़ा क्षमा करने वाला है
رَّحِيمٌबड़ा दयावान है

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने हिजरत की और अल्लाह की राह में जिहाद किया, यही लोग अल्लाह की दया की आशा रखते हैं। और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है।"

सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयतों में चल रए विषय का सकारात्मक और प्रेरणादायक निष्कर्ष प्रस्तुत करती है। अल्लाह उन लोगों की विशेषताएँ बताता है जो उसकी दया और क्षमा के असली हकदार हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने तीन कदम उठाए: पहला, सच्चा ईमान लाया; दूसरा, अल्लाह के लिए अपना घर-बार छोड़कर हिजरत (प्रवास) की; और तीसरा, अल्लाह के रास्ते में जिहाद (संघर्ष) किया। ऐसे लोग ही वास्तव में अल्लाह की असीम दया और माफी की उम्मीद कर सकते हैं। आयत का अंत इस आश्वासन के साथ होता है कि अल्लाह गफूर (अत्यंत क्षमाशील) और रहीम (अत्यंत दयालु) है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत मोमिन के लिए सफलता का एक मार्गदर्शक चित्र प्रस्तुत करती है।

क. सफलता की तीन सीढ़ियाँ:
आयत मोमिन के विकास के तीन चरण बताती है:

  1. ईमान (आमनू): यह पहली और बुनियादी शर्त है। बिना ईमान के कोई भी अच्छा कर्म आखिरत में स्वीकार नहीं होगा। यह आंतरिक और मानसिक समर्पण है।

  2. हिजरत (हाजरू): यह दूसरा चरण है। हिजरत का शाब्दिक अर्थ है "त्यागना" या "छोड़ना"। इसके तीन मुख्य अर्थ हैं:

    • भौगोलिक हिजरत: अल्लाह के दीन की रक्षा और अभिव्यक्ति के लिए अपना घर-शहर छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाना, जैसा कि मक्का से मदीना की हिजरत थी।

    • भावनात्मक हिजरत: गुनाहों और अल्लाह की नाफरमानी वाली जगहों और लोगों को छोड़ देना।

    • शारीरिक हिजरत: हर उस चीज़ को छोड़ देना जो अल्लाह और उसके रसूल को नापसंद हो।

  3. जिहाद (जाहदू): यह तीसरा और सक्रिय चरण है। जिहाद का अर्थ है "पूरी कोशिश और संघर्ष करना"। इसके भी तीन स्तर हैं:

    • जिहाद-बिन-नफ्स (आत्मसंघर्ष): अपनी बुरी इच्छाओं और शैतान के खिलाफ लड़ाई। यह सबसे बड़ा जिहाद है।

    • जिहाद-बिल-माल (धन से जिहाद): अल्लाह के रास्ते में अपना धन खर्च करना।

    • जिहाद-बिस-सैफ (तलवार से जिहाद): आत्मरक्षा और दीन की हिफाजत के लिए शारीरिक लड़ाई लड़ना।

ख. "यही लोग अल्लाह की दया की आशा रखते हैं" (उलाइका यर्जूना रहमतल्लाह):

  • आशा का आधार: केवल वही व्यक्ति अल्लाह की दया की वास्तविक आशा कर सकता है जिसने उसे पाने के लिए प्रयास किया हो। खाली बैठकर आशा करना नाकामी है।

  • विश्वास और कर्म का मेल: यह आयत सिखाती है कि सच्चा ईमान हमेशा अमल (कर्म) की demand करता है। ईमान, हिजरत और जिहाद कर्म के ही रूप हैं।

ग. "और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है" (वल्लाहु गफूरुर रहीम):

  • पूर्ण आश्वासन: यह वाक्य मोमिन के दिल को सुकून देता है। भले ही इंसान से कुछ कमियाँ रह जाएँ, लेकिन अगर उसने ईमान, हिजरत और जिहाद के मार्ग पर चलने की कोशिश की है, तो अल्लाह अपनी गफ़र (क्षमा) और रहम (दया) से उसे अपनाएगा।

  • प्रेरणा का स्रोत: यह अल्लाह के रहम पर भरोसा दिलाता है और मोमिन को और अधिक प्रयास के लिए प्रेरित करता है।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. ईमान और कर्म का अटूट रिश्ता: ईमान सिर्फ मौखिक दावा नहीं, बल्कि उसके लिए त्याग और संघर्ष जरूरी है।

  2. दया पाने का रास्ता: अल्लाह की दया और माफी पाने के लिए सक्रिय प्रयास करना होगा।

  3. जीवन एक संघर्ष है: मोमिन का जीवन एक सक्रिय और सचेतन संघर्ष है - पहले अपने अंदर, फिर अपने आसपास की बुराइयों के खिलाफ।

  4. आशावादी दृष्टिकोण: एक मोमिन हमेशा अल्लाह की दया से निराश नहीं होता और उसकी क्षमा पर भरोसा रखता है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत विशेष रूप से मक्का के मुहाजिरीन (वे सहाबा जिन्होंने इस्लाम के लिए अपना सब कुछ छोड़कर मदीना हिजरत की) के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी और सम्मान थी। उन्होंने ईमान, हिजरत और जिहाद की इन तीनों कसौटियों पर खरा उतरने का काम किया था। यह आयत उनके त्याग और संघर्ष को स्वीकार करती है और उन्हें अल्लाह की दया की आशा का हकदार घोषित करती है।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के युग में यह आयत हर मुसलमान के लिए प्रासंगिक है:

  • आधुनिक हिजरत: आज हिजरत का मतलब सिर्फ देश छोड़ना नहीं है। बल्कि, गुनाहों और बुराइयों से दूर रहना, बुरी संगत छोड़ना, और हर उस चीज से हिजरत करना जो इंसान को अल्लाह से दूर ले जाती है, यह आधुनिक हिजरत है।

  • आधुनिक जिहाद: आज का सबसे बड़ा जिहाद है:

    • जिहाद-ए-नफ्स: अपनी इच्छाओं, लालच और गुनाहों के खिलाफ लड़ाई।

    • जिहाद-बिल-इल्म: ज्ञान हासिल करके अज्ञानता के खिलाफ लड़ाई।

    • जिहाद-बिल-माल: इस्लामिक शिक्षा, गरीबों की मदद और समाज की भलाई के लिए पैसा खर्च करना।

  • प्रेरणा: दुनिया भर के उत्पीड़ित मुसलमान जो अपने ईमान पर डटे हुए हैं और संघर्ष कर रहे हैं, वे इस आयत में बताए गए लोगों में शामिल हैं।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक दुनिया है, मोमिनों के लिए सफलता का यही फॉर्मूला रहेगा: ईमान + हिजरत (त्याग) + जिहाद (संघर्ष) = अल्लाह की रहमत।

  • आशा का स्रोत: भविष्य में जब भी मुसलमानों पर मुसीबतें आएंगी, यह आयत उन्हें याद दिलाएगी कि उनका संघर्ष बेकार नहीं जाएगा और अल्लाह की दया उनके साथ है।

  • एक आदर्श जीवन-शैली: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक आदर्श जीवन-शैली प्रस्तुत करती है जो निष्क्रियता और हताशा को दूर करके सक्रियता और आशा का पाठ पढ़ाती है।

निष्कर्ष: आयत 2:218 एक संक्षिप्त लेकिन संपूर्ण जीवन-दर्शन प्रस्तुत करती है। यह मोमिन को सिखाती है कि अल्लाह की दया और क्षमा की आशा एक सक्रिय और बलिदानी जीवन जीने से ही पूरी होती है। यह आयत निराशा में आशा, आलस्य में सक्रियता और भटकाव में दिशा का संदेश देती है। यह अतीत के सहाबा के लिए सम्मान, वर्तमान के मोमिन के लिए प्रेरणा और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है।