यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की चौबीसवीं आयत (2:24) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:24 - "फ इल्लम तफअलू व लन तफअलू फत्तकुन नारल्लती वकूदुहन नासु वल हिजारतु व उईदत लिल काफिरीन"
(فَإِلَّمْ تَفْعَلُوا وَلَن تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ)
हिंदी अर्थ: "फिर अगर तुम (ऐसा) न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो उस आग से डरो जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं, जो काफिरों के लिए तैयार की गई है।"
यह आयत पिछली आयत (2:23) में दी गई चुनौती का तार्किक और दृढ़ निष्कर्ष प्रस्तुत करती है। यह चुनौती को अस्वीकार करने वालों के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
फ इल्लम (Fa illam): फिर यदि नहीं (Then if you do not)
तफअलू (Taf'alu): तुम कर सको (You do)
व लन (Wa lan): और कदापि नहीं (And never)
तफअलू (Taf'alu): तुम कर सकोगे (You will do)
फत्तकुन (Fattaqun): तो डरो / बचो (Then fear)
अन-नार (An-naar): आग से (The Fire)
अल्लती (Allatee): जिसका (Which)
वकूदुहा (Waqooduha): उसका ईंधन (Its fuel)
अन-नासु (An-naasu): इंसान हैं (Are people)
वल-हिजारतु (Wal-hijaratu): और पत्थर हैं (And stones)
व उईदत (Wa u'iddat): और तैयार की गई है (And has been prepared)
लिल-काफिरीन (Lil-kaafireen): काफिरों के लिए (For the disbelievers)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह आयत तीन स्पष्ट चरणों में अपना संदेश देती है:
1. चुनौती की असफलता की घोषणा (Declaration of the Failure of the Challenge)
"फ इल्लम तफअलू" - "फिर अगर तुम (ऐसा) न कर सको..."
यह एक शर्त है। अगर तुम कुरआन जैसी एक सूरह नहीं ला सके।
"व लन तफअलू" - "और तुम कदापि नहीं कर सकोगे।"
यहाँ "लन" शब्द का प्रयोग हुआ है जो अरबी व्याकरण में भविष्य के लिए पूर्ण और स्थायी नकार को दर्शाता है। यानी, अल्लाह पहले ही घोषणा कर रहा है कि तुम न केवल अब नहीं कर सकोगे, बल्कि कभी भी, किसी भी युग में, सफल नहीं हो सकोगे।
यह एक पूर्वसूचना (Prophecy) है जो कुरआन की दिव्यता को और पुष्ट करती है। 1400 साल का इतिहास इस बात का गवाह है कि यह चुनौती आज तक कोई पूरी नहीं कर सका।
2. एक विकल्प: आग से डरो (The Alternative: Fear the Fire)
"फत्तकुन नार" - "तो उस आग से डरो।"
चूंकि तुम सच्चाई को तर्क और प्रमाण से स्वीकार नहीं कर रहे, इसलिए अब तुम्हें डर के माध्यम से सचेत किया जा रहा है।
यह आग जहन्नम (नरक) की आग है।
3. जहन्नम की भयावहता का वर्णन (Description of the Horror of Hell)
आयत जहन्नम की भयानकता को दर्शाने के लिए दो बातें कहती है:
"अल्लती वकूदुहन नासु वल हिजारत" - "जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं।"
ईंधन के रूप में इंसान: इसका अर्थ है कि जो लोग कुफ्र पर मरेंगे, वे स्वयं जहन्नम का ईंधन बनेंगे। यह एक अत्यंत डरावनी बात है कि इंसान ही इंसान के लिए आग का इंधन बनेगा।
ईंधन के रूप में पत्थर: इसके कई अर्थ हो सकते हैं:
वे मूर्तियाँ जिनकी लोग पूजा करते थे, वे भी जहन्नम में ईंधन का काम देंगी।
एक विशेष प्रकार के पत्थर, जैसे सल्फर (गंधक), जो बहुत तेज जलते हैं।
यह जहन्नम की आग की तीव्रता को दर्शाता है कि वह साधारण आग नहीं है, बल्कि इतनी भयानक है कि पत्थर भी उसमें ईंधन का काम करते हैं।
"उईदत लिल काफिरीन" - "(जो) काफिरों के लिए तैयार की गई है।"
यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह सजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो सत्य को जानने के बाद भी उसका इनकार करते हैं (काफिर)।
3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
कुरआन की सत्यता पर दृढ़ विश्वास: यह आयत हर मुसलमान के दिल में कुरआन के प्रति अटूट विश्वास पैदा करती है। यह जानकर कि दुनिया की सारी शक्तियाँ मिलकर भी कुरआन जैसी एक सूरह नहीं बना सकतीं, ईमान और मजबूत होता है।
जहन्नम का भय (खौफ): यह आयत हमें आख़िरत और जहन्नम की सजा का एहसास दिलाती है। यह भय (खौफ) इंसान को गुनाहों और कुफ्र से बचाता है और उसे सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
तौबा और सच्चाई को स्वीकारना: यह आयत एक अंतिम चेतावनी की तरह है। यह उन लोगों से कहती है जो संदेह में हैं कि अब जब तर्क और प्रमाण ने काम नहीं किया, तो कम से कम डर के मारे ही सही, सच्चाई को स्वीकार कर लो और इस भयानक आग से बचो।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:24 एक तार्किक चुनौती का दृढ़ और भयानक परिणाम प्रस्तुत करती है। यह स्पष्ट कर देती है कि जो लोग कुरआन की दिव्यता को नहीं मानते, उनके पास कोई तर्क नहीं बचता। चूंकि वे चुनौती पूरी नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें अब केवल एक ही विकल्प दिया जा रहा है: सच्चाई को स्वीकार करो और उस भयानक आग से बचो जो तुम्हारे जैसे इंसानों और तुम्हारे बनाए हुए पत्थरों (मूर्तियों) से जलती है। यह आयत हर इंसान के लिए एक अंतिम चेतावनी है कि वह अहंकार और हठ को छोड़कर स्पष्ट सत्य को स्वीकार करे।