﴿وَلَمَّا بَرَزُوا لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِ قَالُوا رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 250
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| व-लम्मा | और जब |
| बरज़ू | सामने आए / मैदान में उतरे |
| ली-जालूता | जालूत से (मुकाबले के लिए) |
| व-जुनूदिही | और उसकी सेना से |
| क़ालू | उन्होंने कहा |
| रब्बना | हे हमारे पालनहार! |
| अफ़रिग़ | उंडेल दे / बहा दे |
| अलैना | हम पर |
| सबरन | धैर्य / सब्र |
| व-सब्बित | और मजबूत कर दे |
| अक़्दामना | हमारे कदमों को |
| वन्सुरना | और हमारी सहायता कर |
| अलल कौमिल | उस समुदाय पर |
| काफिरीन | काफिरों के / इनकार करने वालों के |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "और जब वे जालूत और उसकी सेना के सामने (मैदान में) आए, तो उन्होंने दुआ की: 'हे हमारे पालनहार! हम पर धैर्य की वर्षा कर दे, हमारे कदमों को मजबूत कर दे और हमें काफिरों के समुदाय पर विजय दे।'"
सरल व्याख्या:
यह आयत उस निर्णायक क्षण का वर्णन करती है जब तालूत की वह छोटी-सी टोली, जिसने दो परीक्षाओं (नदी और डर) में सफलता पाई थी, अब सीधे तौर पर जालूत की विशाल सेना के सामने मैदान में उतरती है। यहाँ वे अपनी तैयारी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा दिखाते हैं – दुआ।
इस दुआ में तीन मुख्य बातें हैं:
"हम पर धैर्य की वर्षा कर दे": वे साधारण सब्र नहीं माँगते, बल्कि "अफ़रिग़" शब्द का प्रयोग करते हैं, जिसका अर्थ है बहुतायत में, लगातार उंडेलना। वे चाहते हैं कि अल्लाह उन पर सब्र की ऐसी बौछार कर दे कि उनका दिल कभी डगमगाए नहीं।
"हमारे कदमों को मजबूत कर दे": यह एक Physical और Spiritual दोनों तरह की मजबूती की माँग है। वे चाहते हैं कि युद्ध के मैदान में उनके कदम न हिलें, वे भागें नहीं और उनका ईमानी यकून मजबूत बना रहे।
"हमें काफिरों पर विजय दे": वे जीत की दुआ माँगते हैं, लेकिन इस शर्त के साथ कि पहले दो चीजें (सब्र और मजबूती) उन्हें मिल जाएँ। यह दिखाता है कि वे जानते हैं कि जीत अल्लाह की तरफ से है, और वह तभी मिलेगी जब वे उसके लायक बनेंगे।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
दुआ ही सबसे बड़ा हथियार: एक मोमिन की सबसे बड़ी तैयारी और सबसे शक्तिशाली हथियार अल्लाह से दुआ माँगना है। भले ही आप दुनियावी हथियारों से लैस हों, लेकिन दुआ के बिना सफलता अधूरी है।
सब्र की अहमियत: सब्र सिर्फ मुसीबत सहने का नाम नहीं है, बल्कि मुश्किल हालात में डटे रहने और अल्लाह के फैसले पर संतुष्ट रहने का नाम है। यह एक सक्रिय गुण है।
ईमानी मजबूती: "कदमों का मजबूत होना" स्थिरता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। मोमिन को हर हाल में, चाहे फितना कितना भी बड़ा क्यों न हो, अपने ईमान और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए।
विजय की शर्तें: जीत की दुआ से पहले सब्र और मजबूती की दुआ माँगना सिखाता है कि सफलता के लिए पहले अपने आप को (अपने दिल और अपने कर्म को) तैयार करो। जीत एक नतीजा है, प्रक्रिया नहीं।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
पैगंबर और सहाबा की दुआएँ: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके सहाबा हर मुश्किल, खासकर युद्ध के मैदान में, इसी तरह की दुआएँ किया करते थे। बद्र की लड़ाई से पहले आपकी लंबी दुआ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
सच्चे मोमिनों की पहचान: यह आयत उन सच्चे मोमिनों के गुण बताती है जो हर मुकाम पर अल्लाह की ओर रुजू करते हैं।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
व्यक्तिगत संघर्षों के लिए मार्गदर्शन: आज हर मुसलमान अपने जीवन में किसी न किसी "जालूत" (मुसीबत, परीक्षा, दुश्मन) का सामना कर रहा है। चाहे वह आर्थिक संकट हो, बीमारी हो, या ईमान की परीक्षा हो। यह आयत हमें सिखाती है कि ऐसे वक्त में हमें क्या दुआ माँगनी चाहिए: "ऐ अल्लाह, मुझे सब्र देना, मेरे इरादों को मजबूत करना और मुझे इस मुसीबत पर जीत देना।"
सामूहिक संघर्ष और दुआ: फिलिस्तीन जैसे मोर्चों पर लड़ रहे वहाँ के मुसलमानों के लिए यह दुआ एक Perfect Guide है। यह उनकी हौसला अफजाई करती है कि तुम्हारा रब तुम्हारे साथ है, बस उसी से मदद माँगो।
आध्यात्मिक तैयारी: यह आयत हमें याद दिलाती है कि किसी भी अच्छे काम की शुरुआत दुआ से करनी चाहिए। परीक्षा देने जा रहे हो, नौकरी का इंटरव्यू देने जा रहे हो, या कोई अच्छा प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हो, इस दुआ से start करो।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत प्रार्थना: यह दुआ कयामत तक हर मुसलमान के लिए एक शाश्वत प्रार्थना बनी रहेगी। चाहे भविष्य में कितनी भी Technological Advancement क्यों न हो जाए, इंसान की कमजोरी और उसके पालनहार पर निर्भरता हमेशा बनी रहेगी।
आशा का संदेश: भविष्य की चुनौतियाँ चाहे कितनी भी भयानक क्यों न हों, यह आयत हर मोमिन को यह आशा देगी कि उसके पास अल्लाह से बात करने और उसकी मदद माँगने का एक सीधा रास्ता है।
मनोवैज्ञानिक सहारा: एक ऐसे भविष्य में जहाँ मानसिक तनाव और अवसाम बढ़ने वाला है, यह दुआ एक मजबूत मनोवैज्ञानिक सहारा प्रदान करेगी। "सब्र" और "कदमों का मजबूत होना" इंसान को Mental Strength प्रदान करता है।
निष्कर्ष: आयत 2:250 एक Actionable Dua (क्रियान्वयन योग्य दुआ) प्रस्तुत करती है। यह सिखाती है कि मुश्किल घड़ी में घबराना नहीं चाहिए, बल्कि अल्लाह की शरण में जाना चाहिए और उससे तीन चीजें माँगनी चाहिए: अथाह सब्र, अडिग स्थिरता और दिव्य विजय। यह दुआ हर मुसलमान के दिल की धड़कन और जुबान की जान बननी चाहिए।