﴿تِلْكَ آيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ وَإِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 252
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| तिल्का | वे (ऊपर बताई गई आयतें) |
| आयातुल्लाह | अल्लाह की आयतें (निशानियाँ) हैं |
| नत्लूहा | हम पढ़ते / सुनाते हैं |
| अलैका | आप पर |
| बिल हक्क | सच्चाई के साथ |
| व-इन्नका | और निश्चय ही आप |
| ला-मिनल मुरसलीन | भेजे हुए (रसूलों) में से हैं |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "ये अल्लाह की आयतें हैं, जिन्हें हम सच्चाई के साथ आपकी ओर पढ़ते हैं, और निश्चय ही आप भेजे गए रसूलों में से हैं।"
सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली कई आयतों (तालूत और जालूत के किस्से सहित) के एक लंबे खंड का समापन करती है। यह एक Summary (सारांश) और Confirmation (पुष्टि) का काम करती है।
"ये अल्लाह की आयतें हैं": "तिल्का" (वे) शब्द पिछली आयतों में बताई गई सभी कहानियों, कानूनों और सबक की ओर इशारा करता है। यह स्पष्ट करता है कि ये सब अल्लाह के कलाम (वचन) हैं, किसी इंसान की बनाई हुई बातें नहीं।
"हम सच्चाई के साथ आपकी ओर पढ़ते हैं": यह बताता है कि क़ुरआन का ज्ञान पूरी तरह सत्य और तथ्य पर आधारित है। इसमें कोई मनगढ़ंत बातें या कल्पनाएँ नहीं हैं। यह वही (Revelation) है जो अल्लाह की ओर से सच्चाई के साथ उतारी गई है।
"और निश्चय ही आप भेजे गए रसूलों में से हैं": यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पद और हैसियत की सीधी और स्पष्ट पुष्टि है। यह उन लोगों के लिए एक दृढ़ जवाब है जो आपकी पैगंबरी पर सवाल उठाते थे। आप उसी कड़ी के अंतिम पैगंबर हैं जिसमें मूसा, दाऊद आदि पैगंबर शामिल थे।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
क़ुरआन का दिव्य स्रोत: क़ुरआन अल्लाह का कलाम है। इसकी हर कहानी, हर कानून और हर शिक्षा सत्य और हिक्मत (तत्वदर्शिता) से भरी हुई है। इस पर पूरा विश्वास रखना ईमान का हिस्सा है।
पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की पैगंबरी पर विश्वास: इस आयत में अल्लाह स्वयं अपने पैगंबर की पुष्टि कर रहा है। इसलिए, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के अंतिम पैगंबर होने पर दृढ़ विश्वास रखना हर मुसलमान का फर्ज है।
जिम्मेदारी का एहसास: यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) को और उम्मत को यह एहसास दिलाती है कि यह संदेश कोई मामूली चीज नहीं है, बल्कि अल्लाह का पवित्र और सच्चा संदेश है, जिसे दुनिया तक पहुँचाना है।
आश्वासन और सांत्वना: पैगंबर (स.अ.व.) को मक्का में बहुत विरोध और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में यह आयत आपको और आपके साथियों को यह आश्वासन देती है कि आप सही मार्ग पर हैं और अल्लाह आपके साथ है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
मक्का के मुशरिकों के लिए चुनौती: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के उन लोगों के लिए एक सीधी चुनौती थी जो पैगंबर (स.अ.व.) को पैगंबर मानने से इनकार करते थे। अल्लाह सीधे तौर पर कह रहा है कि मुहम्मद (स.अ.व.) मेरे भेजे हुए हैं।
मुसलमानों के ईमान को मजबूत करना: नए मुसलमानों और सहाबा के लिए यह आयत उनके ईमान को और मजबूत करती थी। उन्हें यकीन दिलाती थी कि वे जिस किताब और जिस पैगंबर पर ईमान लाए हैं, वह पूरी तरह सच्चा और अल्लाह की तरफ से है।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
पैगंबरी के दावे की पुष्टि: आज भी, गैर-मुस्लिम या कोई संदेह करने वाला व्यक्ति अगर पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की पैगंबरी पर सवाल उठाए, तो यह आयत सबसे स्पष्ट और सीधा जवाब है। अल्लाह खुद क़ुरआन में अपने पैगंबर की पुष्टि कर रहा है।
क़ुरआन पर अटूट विश्वास: आज के युग में जब क़ुरआन पर विभिन्न तरह के हमले होते हैं, यह आयत हर मुसलमान के दिल में क़ुरआन के प्रति अटूट विश्वास पैदा करती है। यह कोई साधारण किताब नहीं, बल्कि "आयातुल्लाह" (अल्लाह की निशानियों) का संग्रह है।
दावत का आधार: इस्लाम का प्रचार (दावत) करते समय, यह आयत एक मजबूत आधार प्रदान करती है। हम लोगों से कह सकते हैं कि यह किताब अल्लाह की ओर से है और जो इसे ला रहे हैं, वह अल्लाह के भेजे हुए पैगंबर हैं।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: कयामत तक, यह आयत क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की सत्यता का शाश्वत प्रमाण बनी रहेगी। जब तक दुनिया है, लोग इस आयत को पढ़कर इस सत्य को जान सकेंगे।
संदेहों का निवारण: भविष्य में जो भी नए संदेह और सवाल उठेंगे, इस आयत का सीधा और स्पष्ट संदेश हमेशा एक मजबूत जवाब होगा। यह आयत मुसलमानों के लिए एक "Root Certificate" (मूल प्रमाणपत्र) की तरह है जो पूरे धर्म की नींव को प्रमाणित करता है।
ईमान की नींव: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत ईमान की उस नींव को मजबूत करती रहेगी जिस पर पूरा इस्लामी जीवन खड़ा है – यानी क़ुरआन के दिव्य होने और पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के अंतिम पैगंबर होने पर विश्वास।
निष्कर्ष: आयत 2:252 बाहरी रूप से छोटी है, लेकिन इसका Message (संदेश) बहुत विशाल और मौलिक है। यह पूरे क़ुरआन और इस्लाम की नींव को दो बिंदुओं में समेटती है:
यह किताब (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से सच्चाई के साथ आई है।
हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के भेजे हुए सच्चे पैगंबर हैं।
यह आयत हर मुसलमान के लिए एक ऐसा मंत्र है जो उसके ईमान को ताजा करता है और उसे यह याद दिलाता है कि वह किस महान सत्य पर विश्वास रखता है।