﴿قَوْلٌ مَّعْرُوفٌ وَمَغْفِرَةٌ خَيْرٌ مِّن صَدَقَةٍ يَتْبَعُهَا أَذًى ۗ وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٌ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 263
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| कौलुन | (एक) कहना (बात) |
| मा'रूफुन | अच्छा / भला |
| व-मग़फिरतुन | और क्षमा / माफी |
| खैरुम | बेहतर है |
| मिन सदक़तिन | एक दान से |
| यत्बिऊहा | जिसके पीछे लगा हो |
| अज़ा | दुःख / तकलीफ |
| वal्लाहु | और अल्लाह |
| ग़निय्युन | बेपरवाह / बे-नियाज है |
| हलीमुन | बहुत सहनशील है |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "अच्छी बात कहना और क्षमा करना, उस दान से बेहतर है जिसके पीछे दुःख (तकलीफ) हो। और अल्लाह बे-नियाज (स्वयं-पूर्ण), सहनशील है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली दो आयतों (261-262) के संदेश को और स्पष्ट करते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करती है।
"अच्छी बात और क्षमा": यहाँ दो चीजों को श्रेष्ठ बताया गया है:
कौलुन मा'रूफुन (अच्छी बात): अगर आप किसी को दान देने की स्थिति में नहीं हैं, या कोई आपसे मदद माँग रहा है, तो उससे प्यार और नर्मी से बात करना, उसे सम्मान देना, उसे अच्छी सलाह देना, या मना करते समय भी कोमल शब्दों का इस्तेमाल करना।
मग़फिरतुन (क्षमा): अगर कोई आपसे मदद माँगते हुए कोई अप्रिय बात कह दे या ज़रूरतमंद होने के कारण व्यवहार में कठोरता दिखाए, तो उसे माफ कर देना और उसकी गलती को नजरअंदाज कर देना।
"उस दान से बेहतर है जिसके पीछे दुःख हो": आयत स्पष्ट कहती है कि अगर दान देने के बाद आप व्यक्ति को दुःख पहुँचाएँगे (जैसा कि पिछली आयत में बताया गया), तो ऐसे दान से बेहतर है कि आप दान ही न दें, बल्कि सिर्फ अच्छी बात बोलें और उसे माफ कर दें। क्योंकि ऐसा दान अल्लाह के यहाँ कबूल नहीं होता और समाज में बुराई फैलाता है।
"अल्लाह बे-नियाज, सहनशील है": आयत का अंत अल्लाह के दो गुणों के साथ होता है जो इस सिद्धांत का आधार हैं:
अल-ग़नी (बे-नियाज): अल्लाह को आपके दान की कोई जरूरत नहीं है। वह आपसे आपके दान के जरिए आपकी और गरीब की परीक्षा ले रहा है।
अल-हलीम (सहनशील): अल्लाह आपकी कमजोरियों और गलतियों पर बहुत सहनशील है। वह आपको तुरंत सज़ा नहीं देता। इसलिए आपको भी दूसरों के साथ सहनशील और माफ करने वाला बनना चाहिए।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
भावना, भौतिक सहायता से बढ़कर: कई बार भावनात्मक समर्थन और सम्मान, आर्थिक मदद से ज्यादा मूल्यवान होता है। एक गरीब व्यक्ति के लिए उसका सम्मान उसकी सबसे बड़ी पूँजी है।
इंसानियत सबसे बड़ा धर्म: अगर दान देकर किसी की इंसानियत को ठेस पहुँचाई जाए, तो ऐसा दान न करना ही बेहतर है। इंसानियत का धर्म, दान के धर्म से ऊपर है।
व्यवहार कुशलता का महत्व: इस्लाम सिर्फ इबादत का ही नहीं, बल्कि अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार का भी धर्म है। अच्छा व्यवहार एक बहुत बड़ी सदक़ा (दान) है।
अल्लाह के गुणों पर चलने की प्रेरणा: जैसे अल्लाह ग़नी और हलीम है, वैसे ही बंदे को भी दूसरों के प्रति बे-नियाज (निस्वार्थ) और सहनशील बनना चाहिए।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
मुनाफिकों की आदत सुधारना: मदीना के मुनाफिक और कुछ नए मुसलमान दान तो देते थे लेकिन बाद में माँगने वालों को ताने मारकर दुखी करते थे। यह आयत उन्हें सीधा संबोधित करती थी।
एक आदर्श समाज का निर्माण: इस आयत ने एक ऐसे समाज की नींव रखी जहाँ अमीर और गरीब के बीच प्रेम और सम्मान का रिश्ता था, न कि एहसान और अपमान का।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
सोशल मीडिया और दिखावे की संस्कृति: आज लोग दान की वीडियो बनाकर वायरल करते हैं, जिससे गरीब व्यक्ति का अपमान होता है। यह आयत स्पष्ट रूप से कहती है कि ऐसे दान से अच्छी बात बोलना बेहतर है।
मानसिक स्वास्थ्य: आज Depression और Anxiety का एक बड़ा कारण लोगों द्वारा दिया गया मानसिक दुःख (अज़ा) है। यह आयत हमें सिखाती है कि हम दूसरों के दिल को दुखाए बिना रहें।
कार्यस्थल और पारिवारिक संबंध: ऑफिस में बॉस द्वारा कर्मचारी की मदद के बाद उसे नीचा दिखाना, या परिवार में किसी की आर्थिक मदद करके उस पर हुकूमत जमाना - यह आयत इन सभी गलत आदतों पर रोक लगाती है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत मानवीय मूल्य: जब तक इंसान और इंसानियत रहेगी, "अच्छी बात और माफी" का यह सिद्धांत प्रासंगिक रहेगा। भविष्य की हर तकनीकी प्रगति के बावजूद, मानवीय संबंधों की यही बुनियाद रहेगी।
एआई और नैतिकता: जब AI रोबोट मानव सेवा में लगेंगे, तब भी उनके प्रोग्रामिंग में यह सिद्धांत शामिल होना चाहिए कि मदद करते समय इंसान की गरिमा का ख्याल रखा जाए।
वैश्विक शांति का आधार: भविष्य के वैश्विक समाज में, जहाँ संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच मदद का सिलसिला चलेगा, यह आयत शक्तिशाली देशों को सिखाएगी कि कमजोर देशों की मदद बिना शर्त और बिना उनकी संप्रभुता को ठेस पहुँचाए करनी चाहिए।
निष्कर्ष: आयत 2:263 इस्लाम की सुंदरता और संपूर्णता को दर्शाती है। यह सिखाती है कि इस्लाम सिर्फ "क्या करो" नहीं सिखाता, बल्कि "कैसे करो" यह भी सिखाता है। यह आयत हमें एक संवेदनशील, विनम्र और उदार इंसान बनने की शिक्षा देती है। यह हमें याद दिलाती है कि "दिल जीतना, जेब जीतने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।"