Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 2:27 - "अल्लजीना यनकुदूना अहदल्लाहि मिन बअदि मीसाकिही व यक़्तऊना मा अमरल्लाहु बिही अय्यूसला व युफ्सिदूना फिल अर्दि, उलाइका हुमुल खासिरून" (الَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ اللَّهِ مِن بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की सत्ताईसवीं आयत (2:27) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:27 - "अल्लजीना यनकुदूना अहदल्लाहि मिन बअदि मीसाकिही व यक़्तऊना मा अमरल्लाहु बिही अय्यूसला व युफ्सिदूना फिल अर्दि, उलाइका हुमुल खासिरून"

(الَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ اللَّهِ مِن بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ)

हिंदी अर्थ: "जो लोग अल्लाह के वचन को उसके पक्के करार के बाद तोड़ देते हैं और उसे (रिश्ते को) तोड़ देते हैं जिसे जोड़ने का अल्लाह ने आदेश दिया है और धरती में बिगाड़ फैलाते हैं। यही लोग घाटे में रहने वाले हैं।"

यह आयत पिछली आयत (2:26) में वर्णित "फासिकीन" (नाफ़रमानों) की पहचान को स्पष्ट करती है। यह बताती है कि वे कौन लोग हैं जो अल्लाह के दृष्टांतों से गुमराह होते हैं और जिनके लिए विनाश है। यह आयत उनके तीन प्रमुख अवगुणों (गुनाहों) का वर्णन करती है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • अल्लजीना (Allazeena): जो लोग (Those who)

  • यनकुदूना (Yanqudoona): तोड़ देते हैं (They break)

  • अहदल्लाहि (Ahdallaahi): अल्लाह के वचन को (The covenant of Allah)

  • मिन बअदि (Min ba'di): बाद (After)

  • मीसाकिही (Meethaaqihi): उसके पक्के करार के (Its firm covenant)

  • व यक़्तऊना (Wa yaqta'oona): और तोड़ देते हैं (And they cut)

  • मा (Maa): उसे (That which)

  • अमरल्लाहु (Amarallaahu): अल्लाह ने आदेश दिया है (Allah has ordered)

  • बिही (Bihi): उसके (It)

  • अय्यूसला (An yoosala): कि जोड़ा जाए (To be joined)

  • व युफ्सिदूना (Wa yufsidoona): और बिगाड़ फैलाते हैं (And they spread corruption)

  • फिल अर्दि (Fil ardi): धरती में (In the earth)

  • उलाइका (Ulaaika): यही लोग (Those are)

  • हुमुल (Humul): वही हैं (They are)

  • अल-खासिरून (Al-khaasiroon): घाटे में रहने वाले (The losers)


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

यह आयत "फासिकीन" (अवज्ञाकारियों) के तीन बड़े गुनाह गिनाती है, जो उन्हें सबसे बड़े "खासिरून" (घाटे में रहने वालों) की श्रेणी में डाल देते हैं:

1. अल्लाह के वचन को तोड़ना (Breaking the Covenant of Allah)

  • "यनकुदूना अहदल्लाहि मिन बअदि मीसाकिही" - "अल्लाह के वचन को उसके पक्के करार के बाद तोड़ देते हैं।"

  • "अहद" (वचन) क्या है? इसके कई स्तर हैं:

    • फितरती अहद: हर इंसान की आत्मा में यह स्वीकारोक्ति है कि अल्लाह ही उसका पालनहार है। यह जन्मजात वचन है।

    • ईश्वरीय मार्गदर्शन का अहद: जब अल्लाह मनुष्य को उसके पैगंबर और किताबें भेजता है, तो यह एक प्रकार का वचन होता है कि मनुष्य उस पर चलेगा।

    • मानवीय वचन: जब कोई व्यक्ति कलिमा पढ़कर मुसलमान बनता है, तो वह अल्लाह के साथ एक वचनबद्धता करता है कि वह उसकी इबादत करेगा और आज्ञा मानेगा।

  • "फासिक" लोग इस वचन को "तोड़" देते हैं। वे ईमान लाने के बाद कुफ्र में लौट जाते हैं या ईमान के बाद भी गुनाह करते रहते हैं।

2. रिश्ते तोड़ना (Severing the Ties)

  • "व यक़्तऊना मा अमरल्लाहु बिही अय्यूसला" - "और उसे (रिश्ते को) तोड़ देते हैं जिसे जोड़ने का अल्लाह ने आदेश दिया है।"

  • कौन-से रिश्ते? अल्लाह ने जिन रिश्तों को जोड़े रखने का आदेश दिया है, वे हैं:

    • अल्लाह के साथ रिश्ता: इबादत और आज्ञाकारिता का रिश्ता।

    • रिश्तेदारी के रिश्ते: माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के साथ अच्छे संबंध।

    • मानवीय रिश्ते: पड़ोसियों, अनाथों, गरीबों और सभी इंसानों के साथ अच्छा व्यवहार।

    • मोमिनीन के साथ रिश्ता: भाईचारे और एकता का रिश्ता।

  • "फासिक" लोग इन रिश्तों को तोड़ते हैं। वे रिश्तेदारी निभाने से कतराते हैं, समुदाय में फूट डालते हैं और लोगों के बीच बैर पैदा करते हैं।

3. धरती में बिगाड़ फैलाना (Spreading Corruption on Earth)

  • "व युफ्सिदूना फिल अर्दि" - "और धरती में बिगाड़ फैलाते हैं।"

  • "फसाद" (बिगाड़) क्या है? यह एक बहुत व्यापक अवधारणा है, जिसमें शामिल है:

    • सामाजिक फसाद: चोरी, डकैती, हत्या, अन्याय, अत्याचार।

    • नैतिक फसाद: बुराइयों, अश्लीलता और गुनाहों को फैलाना।

    • आस्था का फसाद: लोगों के ईमान को कमजोर करना, धर्म में संदेह पैदा करना।

    • पर्यावरणीय फसाद: धरती को नुकसान पहुँचाना, प्रदूषण फैलाना।

4. अंतिम परिणाम: सबसे बड़ा घाटा (The Ultimate Outcome: The Ultimate Loss)

  • "उलाइका हुमुल खासिरून" - "यही लोग घाटे में रहने वाले हैं।"

  • यहाँ "खुसरान" (घाटा) से तात्पर्य आख़िरत का घाटा है। ये लोग दुनिया में चाहे कितना भी धन और सुख क्यों न इकट्ठा कर लें, असली घाटा तो उनका यह है कि उन्होंने अल्लाह की रज़ा और जन्नत को गँवा दिया और इसके बदले में जहन्नम की यातना खरीद ली। यह सबसे बड़ा आर्थिक और आध्यात्मिक दिवालियापन है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • वचनबद्धता का महत्व: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अपने वचनों का पक्का होना चाहिए, खासकर अल्लाह के साथ किए गए वचन (जैसे नमाज, रोज़ा आदि) का। ईमान लेने के बाद उस पर डटे रहना ही सफलता है।

  • रिश्तों की अहमियत: इस्लाम रिश्तों को जोड़ने का धर्म है। हमें अपने परिवार, रिश्तेदारों और साथी मुसलमानों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने चाहिए। रिश्ते तोड़ना एक बहुत बड़ा गुनाह है।

  • समाज की जिम्मेदारी: हमें समाज में शांति और भलाई फैलाने वाला बनना चाहिए, बिगाड़ फैलाने वाला नहीं। हर छोटा-बड़ा गुनाह एक प्रकार का "फसाद" है जिससे बचना चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:27 उन लोगों की पहचान कराती है जो सच्चे अर्थों में घाटे में हैं। ये वे लोग हैं जो अल्लाह के वचन को तोड़ते हैं, इंसानी रिश्तों को काटते हैं और धरती पर बिगाड़ फैलाते हैं। यह आयत हर मुसलमान के लिए एक चेतावनी है कि वह इन तीनों बुराइयों से सावधान रहे। असली सफलता अल्लाह के वचन का पालन करने, रिश्तों को मजबूत करने और समाज में शांति व भलाई स्थापित करने में है। जो इन बातों को तोड़ता है, वह दुनिया और आख़िरत दोनों में घाटे से दो-चार होता है।