क़ुरआन की आयत 2:281 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण विवरण
यह आयत सूरह अल-बक़ारह के "सूद के खंड" (आयत 275-281) की अंतिम आयत है और पूरे प्रसंग को एक शक्तिशाली और गंभीर चेतावनी के साथ समाप्त करती है, जो मनुष्य के सांसारिक जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर इशारा करती है।
1. अरबी आयत (Arabic Verse):
وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
وَاتَّقُوا: "और डरो" (बचो, परहेज़ करो)
يَوْمًا: "एक ऐसे दिन से"
تُرْجَعُونَ: "तुम लौटाए जाओगे"
فِيهِ: "जिसमें"
إِلَى اللَّهِ: "अल्लाह की ओर"
ثُمَّ: "फिर"
تُوَفَّىٰ: "पूरा दिया जाएगा" (हर चीज़ का पूरा-पूरा हिसाब)
كُلُّ نَفْسٍ: "हर एक प्राणी/शख्स"
مَّا كَسَبَتْ: "जो कुछ उसने कमाया" (अच्छा या बुरा)
وَهُمْ: "और वे"
لَا يُظْلَمُونَ: "ज़ुल्म नहीं किए जाएंगे" (बिल्कुल भी अन्याय नहीं होगा)
3. आयत का हिंदी अनुवाद और पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
अनुवाद: "और उस दिन से डरो जिस दिन तुम अल्लाह की ओर लौटाए जाओगे। फिर हर व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया है (उसका पूरा बदला) दिया जाएगा, और उनपर ज़रा भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।"
व्याख्या:
यह आयत पिछली आयतों में दिए गए आर्थिक और सामाजिक निर्देशों (सूद का प्रतिबंध, कर्ज़दार को मोहलत देना) को एक गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदर्भ में रखती है।
अंतिम गंतव्य की याद (وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ): आयत की शुरुआत ही एक गंभीर चेतावनी से होती है। यह मनुष्य को यह याद दिलाती है कि इस दुनिया का जीवन अनंत नहीं है। एक दिन ऐसा आएगा जब हर किसी को अपने रब के सामने पेश होना है। "डरो" (इत्तिक़ा) शब्द में सिर्फ भय ही नहीं, बल्कि भक्ति, आज्ञाकारिता और अपने आप को बुराइयों से बचाने का पूरा अर्थ समाहित है।
पूर्ण और न्यायपूर्ण हिसाब (ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ): यह इस आयत का केंद्रीय सिद्धांत है। अल्लाह स्पष्ट करता है कि प्रलय के दिन कोई भी व्यक्ति बचकर नहीं जा सकेगा। हर इंसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का पूरा-पूरा हिसाब मिलेगा। यहाँ "जो कुछ उसने कमाया" शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। यह बताता है कि इंसान अपने कर्मों का फल स्वयं काटता है। सूद खाने, ज़ुल्म करने, या किसी के हक़ मारने का बुरा परिणाम भुगतना ही पड़ेगा, और दया, सदका व न्याय करने का अच्छा बदला अवश्य मिलेगा।
न्याय की पूर्ण गारंटी (وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ): आयत के अंत में अल्लाह इस बात की पूर्ण गारंटी देता है कि उस दिन किसी के साथ जरा सा भी अन्याय नहीं होगा। न किसी के अच्छे कर्म कम गिने जाएंगे, और न ही किसी के बुरे कर्म बढ़ाकर दिखाए जाएंगे। यह बयान मनुष्य के मन से "अन्याय" के किसी भी संदेह को दूर करता है और यह सुनिश्चित करता है कि फैसला पूरी तरह से न्याय पर आधारित होगा।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
जीवन का वास्तविक लक्ष्य: यह आयत हमें बताती है कि हमारे सभी दुनियावी कार्यों का अंतिम लक्ष्य आखिरत (प्रलय) है। हमें हमेशा इस बात को याद रखकर काम करना चाहिए कि एक दिन अल्लाह के सामने हमारा हिसाब होना है।
व्यक्तिगत जिम्मेदारी: हर व्यक्ति स्वयं अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार है। कोई दूसरा उसके पापों का भार नहीं उठाएगा। यह सिद्धांत इंसान को कर्म करने में सजग और ईमानदार बनाता है।
नैतिकता की जड़: सूद जैसे गुनाहों से बचने, गरीबों पर दया करने और न्याय करने की असली प्रेरणा यही आखिरत का विश्वास है। अगर हिसाब-किताब का दिन न हो, तो इंसान के लिए दुनिया में केवल लाभ-हानि ही एकमात्र मापदंड रह जाएगा।
आशा और भय का संतुलन: यह आयत मुसलमान के दिल में अल्लाह के भय (खौफ) के साथ-साथ उसकी न्यायप्रियता में आशा (रजा) भी पैदा करती है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत में (In the Past):
इस आयत के उतरने के समय, यह सहाबा (पैगंबर के साथियों) के लिए एक शक्तिशाली मोटिवेशन थी। इसने उन्हें अपनी जिंदगी बदलने, सूद जैसे गुनाहों को तुरंत छोड़ने और एक नए, पवित्र जीवन की शुरुआत करने की प्रेरणा दी। यह उनके लिए दुनियावी लाभ से ऊपर उठकर आखिरत के स्थायी पुण्य को प्राथमिकता देने का आधार बनी।वर्तमान में (In the Present):
आज का युग भौतिकवाद (Materialism) का युग है। लोग सिर्फ दुनिया की सफलता, पैसे और सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहे हैं। आखिरत और हिसाब-किताब का विचार उनके लिए एक दूर की और अवास्तविक बात लगती है।प्रासंगिकता: इस पृष्ठभूमि में, यह आयत एक सशक्त चेतावनी है। यह मुसलमानों को याद दिलाती है कि उनकी हर आर्थिक गतिविधि, हर लेन-देन और हर सामाजिक संबंध का एक नैतिक और आध्यात्मिक पहलू है। यह उन्हें भ्रष्टाचार, ब्याज, धोखाधड़ी और शोषण से बचने की ताकत देती है।
भविष्य में (In the Future):
जैसे-जैसे Technology और AI (Artificial Intelligence) का विकास होगा, मनुष्य और भी अधिक शक्तिशाली हो जाएगा। ऐसे में, नैतिकता के सवाल और भी जटिल होंगे। बिना किसी दैवीय जवाबदेही के, मनुष्य की शक्ति उसे विनाश की ओर ले जा सकती है।भविष्य की दृष्टि: यह आयत भविष्य के लिए एक स्थायी नैतिक Compass (कंपास) प्रदान करती है। यह सिखाती है कि हर वैज्ञानिक खोज, हर आर्थिक मॉडल और हर सामाजिक व्यवस्था को अंततः एक ऐसे दिन के प्रकाश में जांचा जाएगा जहाँ पूर्ण न्याय होगा। यह विचार मानवता को एक उच्च नैतिक मानक पर टिके रहने की प्रेरणा देगा।
निष्कर्ष: कुरआन की आयत 2:281 केवल एक धमकी नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए एक दयालु मार्गदर्शन है। यह हमें हमारे असली लक्ष्य से अवगत कराकर, हमारे दुनियावी जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करती है। यह पूरे सूद के प्रकरण को एक गहन और सार्थक समापन देती है, जो हर इंसान को उसके अंतिम स्थान की याद दिलाती है।