यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की उनतीसवीं आयत (2:29) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:29 - "हुवल्लजी खलका लकुम मा फिल अर्दि जमीआन सुम्मस तवा इलस्समाइ फसव्वाहुन्ना सबआ समवात, व हुवा बि कुल्लि शयइन अलीम"
(هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ اسْتَوَىٰ إِلَى السَّمَاءِ فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ ۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ)
हिंदी अर्थ: "वही तो है जिसने तुम्हारे लिए वह सब कुछ पैदा किया जो धरती में है। फिर वह आसमान की ओर मुखातिब हुआ और उन्हें सात आसमान के रूप में बना दिया, और वह हर चीज़ को जानने वाला है।"
यह आयत पिछली आयतों में चल रहे विषय को आगे बढ़ाती है। आयत २१-२२ में अल्लाह के एहसानों का जिक्र था, और आयत २८ में अल्लाह की शक्ति को मनुष्य के अपने अस्तित्व के माध्यम से समझाया गया था। अब यह आयत ब्रह्मांड की व्यवस्था और उसमें मनुष्य के लिए उपलब्ध संसाधनों की ओर हमारा ध्यान खींचती है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
हुवल्लजी (Huwallazee): वही है (He is the one who)
खलका (Khalaqa): पैदा किया (Created)
लकुम (Lakum): तुम्हारे लिए (For you)
मा (Maa): जो कुछ (Whatever)
फिल अर्दि (Fil ardi): धरती में है (Is in the earth)
जमीआन (Jamee'an): सब कुछ (All)
सुम्मा (Summa): फिर (Then)
इस्तवा (Istawa): मुखातिब हुआ / ऊपर उठा (Rose over / turned to)
इलस्समाइ (Ilassamaa'i): आसमान की ओर (Towards the heaven)
फसव्वाहुन्ना (Fasawwaahunna): तो उन्हें बना दिया (So He fashioned them)
सबआ (Sab'a): सात (Seven)
समवात (Samaawaat): आसमान (Heavens)
व हुवा (Wa Huwa): और वह (And He)
बि कुल्लि शयइन (Bikulli shay'in): हर चीज़ को (Of everything)
अलीम (Aleem): जानने वाला है (Is All-Knowing)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह आयत अल्लाह की सृष्टि के दो महान कार्यों का वर्णन करती है:
1. धरती और उसकी सभी चीजों का सृजन (Creation of the Earth and All it Contains)
"हुवल्लजी खलका लकुम मा फिल अर्दि जमीआन" - "वही तो है जिसने तुम्हारे लिए वह सब कुछ पैदा किया जो धरती में है।"
मनुष्य के लिए उपहार: यहाँ "लकुम" (तुम्हारे लिए) शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। अल्लाह ने धरती पर मौजूद सभी संसाधन – पानी, हवा, खनिज, पेड़-पौधे, जानवर, अनाज, फल – को मनुष्य की सेवा और उपयोग के लिए पैदा किया है।
यह अल्लाह की दूसरी महान कृपा है (पहली कृपा जीवन देना थी) – मनुष्य के जीवन-यापन और विकास के लिए संपूर्ण व्यवस्था तैयार करना।
2. सात आसमानों का निर्माण (The Formation of the Seven Heavens)
"सुम्मस तवा इलस्समाइ फसव्वाहुन्ना सबआ समवात" - "फिर वह आसमान की ओर मुखातिब हुआ और उन्हें सात आसमान के रूप में बना दिया।"
सृष्टि का क्रम: आयत में "सुम्मा" (फिर) शब्द का प्रयोग किया गया है, जो सृष्टि के एक क्रम (Sequence) को दर्शाता है। पहले धरती और उसके संसाधनों का सृजन हुआ, फिर ब्रह्मांड (आसमानों) को उसकी वर्तमान संरचना दी गई।
"सात आसमान": यह एक ऐसा तथ्य है जिसकी पूरी व्याख्या केवल अल्लाह ही बेहतर जानता है। इसके कई अर्थ हो सकते हैं:
ब्रह्मांड की विशाल परतें: आधुनिक विज्ञान ने भी ब्रह्मांड की विभिन्न परतों (वायुमंडल की परतें, गैलेक्सियाँ आदि) की बात कही है। "सात" का अर्थ पूर्णता और बहुलता से भी लिया जा सकता है।
एक पूर्ण व्यवस्था: यह इस बात का प्रतीक है कि अल्लाह ने ब्रह्मांड को एक पूर्ण, सटीक और संतुलित व्यवस्था के साथ बनाया है।
"इस्तवा" (मुखातिब हुआ): इसका अर्थ है कि अल्लाह की शक्ति और इच्छा ने ब्रह्मांड के निर्माण की ओर रुख किया और उसे पूर्ण किया। यह अल्लाह की सर्वोच्च सत्ता और नियंत्रण को दर्शाता है।
3. अल्लाह का पूर्ण ज्ञान (Allah's Complete Knowledge)
"व हुवा बि कुल्लि शयइन अलीम" - "और वह हर चीज़ को जानने वाला है।"
यह वाक्यांश इस पूर्ण सृष्टि के लिए एक तार्किक निष्कर्ष है। जिस सत्ता ने इस विशाल और जटिल ब्रह्मांड की रचना की है, वह निश्चित रूप से इसकी हर बड़ी-छोटी चीज, हर रहस्य और हर व्यवस्था से पूरी तरह परिचित है।
3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
कृतज्ञता (Shukr) का भाव: यह आयत हमारे अंदर अल्लाह के प्रति कृतज्ञता का भाव पैदा करती है। हमें हर नियामत (संसाधन) को अल्लाह का एहसान समझकर उसका शुक्र अदा करना चाहिए और उसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।
वैज्ञानिक चिंतन को प्रोत्साहन: यह आयत मनुष्य को ब्रह्मांड और प्रकृति के रहस्यों को समझने के लिए प्रोत्साहित करती है। हर वैज्ञानिक खोज अल्लाह की शक्ति और कला का प्रमाण देती है।
अल्लाह पर भरोसा (Tawakkul): जब हम जानते हैं कि इस विशाल ब्रह्मांड का निर्माता और नियंत्रक अल्लाह है जो हर चीज को जानता है, तो हमारा दिल उसी पर भरोसा करने को तैयार हो जाता है। हमें हर मामले में उसी पर भरोसा करना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:29 मनुष्य को उसके परिवेश और ब्रह्मांड के माध्यम से अल्लाह की शक्ति, ज्ञान और दया को पहचानने का आह्वान करती है। यह बताती है कि अल्लाह ने न केवल हमें जीवन दिया, बल्कि हमारे जीवन के लिए धरती पर संपूर्ण व्यवस्था की और फिर इस विशाल ब्रह्मांड को सात आसमानों के रूप में सजाया। यह आयत हमें सिखाती है कि हमारा कर्तव्य इस सृष्टि के रहस्यों को समझना, अल्लाह का शुक्रिया अदा करना और उसी की इबादत करना है, क्योंकि वही हर चीज का जानने वाला और हमारा सच्चा पालनहार है।