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कुरआन की आयत 3:102 की पूरी व्याख्या

 

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 102)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا (Yaa ayyuhal-lazeena aamanu): ऐ ईमान वालों!

  • اتَّقُوا (Ittaqoo): डरो (अल्लाह से), बचो (उसकी नाफ़रमानी से)।

  • اللَّهَ (Allaha): अल्लाह से।

  • حَقَّ تُقَاتِهِ (Haqqa tuqaatih): उसके डर का हक (यथोचित/वास्तविक रूप से)।

  • وَلَا تَمُوتُنَّ (Wa laa tamootunna): और तुम मरो हर्गिज नहीं।

  • إِلَّا (Illa): केवल, सिवाय।

  • وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ (Wa antum muslimoon): और तुम मुसलमान होकर (अर्थात इस्लाम की हालत पर)।


पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "ऐ ईमान वालो! अल्लाह से उस तरह डरो जैसे उससे डरने का हक है, और तुम्हारी मौत किसी और हालत में न हो, सिवाय इस हालत के कि तुम मुसलमान हो।"

यह आयत पूरे सिलसिले का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत करती है। पिछली आयतों में बाहरी खतरों और फितनों से सावधान करने के बाद, अब अल्लाह तआला ईमान वालों को उनकी आंतरिक स्थिति सुधारने का एक मौलिक निर्देश दे रहे हैं।

1. "अल्लाह से उस तरह डरो जैसे उससे डरने का हक है":
यहाँ "तक्वा" (अल्लाह का डर) की सबसे ऊँची Stage का जिक्र है। इसके कई मायने हैं:

  • पूर्ण आज्ञाकारिता: अल्लाह के हर हुक्म का पालन पूरी ईमानदारी और जुनून के साथ करना।

  • पूर्ण परहेज: अल्लाह की हर मनाही से पूरी तरह बचना, चाहे छोटा हो या बड़ा।

  • हर पल की जागरूकता: यह एहसास कि अल्लाह हर समय देख रहा है, इसलिए खुद को हर गुनाह और बुराई से बचाकर रखना।

  • दिल की हालत: दिल में अल्लाह का इतना डर और महब्बत हो कि उसकी नाराजगी का ख्याल ही सबसे बड़ा डर बन जाए।

हदीस में इसकी व्याख्या यह आती है कि अल्लाह की इतनी इबादत करो जितनी ताकत रखते हो, उसकी नाफरमानी से बचो और अल्लाह को हमेशा याद रखो।

2. "और तुम्हारी मौत किसी और हालत में न हो, सिवाय इस हालत के कि तुम मुसलमान हो":
यह पहले हिस्से का स्वाभाविक नतीजा है। इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान अपनी मौत का समय चुन सकता है। बल्कि, इसका आशय है:

  • जीवनभर का लक्ष्य: अपनी पूरी जिंदगी को इस तरह जियो कि तुम्हारा अंतिम पल ईमान और इस्लाम की हालत में ही आए। यह एक मुसलमान का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।

  • ईमान पर स्थिरता (Istqaamah): ईमान लाने के बाद, उस पर टिके रहना और उसी हालत में दुनिया से विदा होना सबसे बड़ी कामयाबी है।

  • हर पल की कोशिश: इसका मतलब यह है कि हर पल ऐसा काम करो जो तुम्हें ईमान की हालत में मजबूत रखे, न कि उससे दूर ले जाए।


सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):

  • तक्वा ही असली सुरक्षा है: बाहरी फितनों और बहकावों से बचने की असली ताकत अल्लाह का डर (तक्वा) ही है। जिसके दिल में अल्लाह का डर होगा, वह कभी गुमराह नहीं होगा।

  • ईमान की सुरक्षा सबसे जरूरी: दुनिया की हर चीज से पहले, अपने ईमान को बचाना और उसे बरकरार रखना सबसे महत्वपूर्ण है।

  • जीवन का उद्देश्य: एक मुसलमान का लक्ष्य दुनिया में धन या पद जमा करना नहीं, बल्कि अल्लाह की रजा हासिल करते हुए अपने अंतिम पल तक ईमान पर कायम रहना है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उन पहले मुसलमानों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत थी जिन्हें युद्ध, अत्याचार और गहरे फितनों का सामना करना पड़ा। यह आयत उन्हें यह याद दिलाती थी कि हर हाल में अल्लाह से डरते रहो और ईमान पर अडिग रहो, चाहे मौत ही क्यों न आ जाए।

  • वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • भौतिकवाद के युग में: आज का इंसान पैसे, करियर और सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है और अल्लाह का डर भूलता जा रहा है। यह आयत उसे उसके असली मकसद की याद दिलाती है।

    • नैतिक पतन के दौर में: जब चारों तरफ गुनाह और बुराइयाँ फैली हुई हैं, "तक्वा" ही वह हिफाजती दीवार है जो इंसान को इन सबसे बचा सकती है।

    • आध्यात्मिक शांति की तलाश: लोग शांति के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। यह आयत बताती है कि असली शांति अल्लाह के डर और उसकी आज्ञापालन में ही है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक आने वाली हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है। यह हमेशा मनुष्य को उसके अस्तित्व के मूल उद्देश्य की याद दिलाती रहेगी: "अल्लाह से डरो और मुसलमान बनकर मरो।" यही सच्ची सफलता है। यह आयत हर मुसलमान के लिए एक दुआ और एक जीवन-मंत्र है।