﴿وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat 104)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَلْتَكُن (Wal takun): और अवश्य होनी चाहिए।
مِّنكُمْ (Minkum): तुम में से।
أُمَّةٌ (Ummatun): एक समूह / एक जमाअत।
يَدْعُونَ (Yad'oon): बुलाते हैं।
إِلَى الْخَيْرِ (Ilal Khairi): भलाई की ओर।
وَيَأْمُرُونَ (Wa yaamuroon): और आदेश देते हैं।
بِالْمَعْرُوفِ (Bil Ma'roofi): अच्छे (ज्ञात) काम का।
وَيَنْهَوْنَ (Wa yanhawn): और रोकते हैं।
عَنِ الْمُنكَرِ (Anil Munkari): बुरे (अनैतिक) काम से।
وَأُولَٰئِكَ (Wa ulaaika): और वही लोग।
هُمُ (Humu): वही हैं।
الْمُفْلِحُونَ (Al-Muflihoon): सफलता पाने वाले।
पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और तुम्हारे बीच से कुछ लोगों का एक समूह अवश्य होना चाहिए जो भलाई की ओर बुलाए, अच्छे कामों का आदेश दे और बुरे कामों से रोके। और वही लोग ही सफलता पाने वाले हैं।"
यह आयत पिछली आयत (3:103) में बताई गई एकता के उद्देश्य को स्पष्ट करती है। एकता सिर्फ इकट्ठा होने के लिए नहीं है, बल्कि एक सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए है। यह एक सामाजिक जिम्मेदारी (Social Duty) का आह्वान है।
1. "तुम्हारे बीच से एक समूह अवश्य होना चाहिए":
यह एक सामूहिक फर्ज (फर्ज-ए-किफाया) है। इसका मतलब यह नहीं कि हर व्यक्ति को यह काम अकेले करना है, बल्कि समुदाय में से कुछ लोगों का एक ऐसा समूह जरूर होना चाहिए जो यह जिम्मेदारी संभाले।
अगर कोई भी समूह यह काम नहीं करता, तो पूरी कौम (Community) गुनाहगार होगी।
2. इस समूह के तीन मुख्य कार्य:
"भलाई की ओर बुलाए": यह सबसे व्यापक कार्य है। इसमें इस्लाम की दावत (इन्वाइटेशन), ज्ञान का प्रसार (तालीम), और हर प्रकार की भलाई को बढ़ावा देना शामिल है।
"अच्छे कामों का आदेश दे": यह 'अम्र बिल मारूफ' है। इसमें नमाज, रोजा, सच बोलना, एहसान करना जैसे सभी ज्ञात और शरीयत द्वारा तय अच्छे कामों को करने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल है।
"बुरे कामों से रोके": यह 'नही अनिल मुनकर' है। इसमें बुराइयों जैसे झूठ, बेइमानी, जुल्म, और हर प्रकार के गुनाह को समाज से दूर करने की कोशिश करना शामिल है।
3. "और वही लोग सफलता पाने वाले हैं":
यहाँ "सफलता" (फलाह) से मतलब दुनिया और आखिरत दोनों की कामयाबी है।
दुनिया में: क्योंकि ऐसा समूह समाज को भ्रष्टाचार, अराजकता और पतन से बचाता है।
आखिरत में: क्योंकि यह अल्लाह का एक महत्वपूर्ण आदेश पूरा करने का काम है, जिसका बदला जन्नत है।
सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):
सक्रिय नागरिक का दायित्व: एक मुसलमान का काम सिर्फ अपनी इबादत तक सीमित नहीं है। उसे समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और भलाई को फैलाना चाहिए।
संगठित प्रयास का महत्व: अकेले व्यक्ति का प्रयास सीमित होता है। इस्लाम संगठित समूह (जमाअत) बनाकर काम करने का हुक्म देता है।
सफलता का मापदंड: असली सफलता धन-दौलत नहीं, बल्कि अल्लाह के इस आदेश को पूरा करने में है। यह समाज के निर्माण और सुधार में योगदान देने वालों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में: यह आयत मदीना के इस्लामी राज्य की नींव का एक मूल सिद्धांत थी। पैगंबर ﷺ और सहाबा का पूरा समूह इसी भूमिका में था। वे लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाते, अच्छाई का आदेश देते और बुराई से रोकते थे।
वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
सामाजिक सुधार: आज समाज में भ्रष्टाचार, अनैतिकता, और हिंसा बढ़ रही है। ऐसे में मुसलमानों की जिम्मेदारी है कि वे संगठित होकर इन बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाएं और नैतिकता को बढ़ावा दें।
शैक्षिक और दावती संस्थान: मदरसे, इस्लामिक संगठन, और दावती केंद्र इसी आयत के आदेश का पालन करने वाले आधुनिक समूह हैं।
डिजिटल अम्र-बिल-मारूफ: सोशल मीडिया और इंटरनेट अब भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकने का एक शक्तिशाली माध्यम बन गया है।
भविष्य (Future) के लिए: जब तक दुनिया रहेगी, भलाई और बुराई का संघर्ष जारी रहेगा। यह आयत हमेशा मुसलमानों को यह याद दिलाती रहेगी कि उन्हें इस संघर्ष में एक सक्रिय और संगठित भूमिका निभानी है। यह उनकी पहचान और सफलता की कुंजी है। भविष्य की चुनौतियाँ चाहे कैसी भी हों, 'अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर' का सिद्धांत हमेशा मार्गदर्शन करता रहेगा।