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कुरआन की आयत 3:119 की पूरी व्याख्या

 

﴿هَا أَنتُمْ أُولَاءِ تُحِبُّونَهُمْ وَلَا يُحِبُّونَكُمْ وَتُؤْمِنُونَ بِالْكِتَابِ كُلِّهِ وَإِذَا لَقُوكُمْ قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا عَضُّوا عَلَيْكُمُ الْأَنَامِلَ مِنَ الْغَيْظِ ۚ قُلْ مُوتُوا بِغَيْظِكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 119)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • هَا أَنتُمْ أُولَاءِ (Haa antum ulaa'i): लो! तुम वही लोग हो।

  • تُحِبُّونَهُمْ (Tuhibboonahum): तुम उनसे प्यार करते हो।

  • وَلَا يُحِبُّونَكُمْ (Wa laa yuhibbonakum): और वे तुमसे प्यार नहीं करते।

  • وَتُؤْمِنُونَ بِالْكِتَابِ كُلِّهِ (Wa tu'minoona bil-kitaabi kullihi): और तुम पूरी किताब पर ईमान रखते हो।

  • وَإِذَا لَقُوكُمْ (Wa idhaa laqookum): और जब वे तुमसे मिलते हैं।

  • قَالُوا آمَنَّا (Qaaloo aamannaa): कहते हैं "हम ईमान लाए"।

  • وَإِذَا خَلَوْا (Wa idhaa khalaw): और जब वे एकांत में होते हैं।

  • عَضُّوا عَلَيْكُمُ الْأَنَامِلَ مِنَ الْغَيْظِ (Addoo 'alaikumul-anaamila minal-ghaizh): गुस्से से तुम पर उंगलियाँ चबाने लगते हैं।

  • قُلْ (Qul): (आप) कह दीजिए।

  • مُوتُوا بِغَيْظِكُمْ (Mootoo bi-ghaizhikumm): अपने गुस्से में मर जाओ।

  • إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (Innallaaha 'aleemum bi-zaatis-sudoor): निश्चय ही अल्लाह दिलों की बातों को जानने वाला है।


पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "लो! तुम वही लोग हो कि तुम उनसे प्यार करते हो, और वे तुमसे प्यार नहीं करते। और तुम (अपनी और उनकी) पूरी किताब पर ईमान रखते हो। और जब वे तुमसे मिलते हैं तो कहते हैं, 'हम ईमान लाए', और जब एकांत में होते हैं तो गुस्से से तुम पर उँगलियाँ चबाने लगते हैं। (ऐ पैगंबर!) आप कह दें: 'अपने गुस्से में मर जाओ।' निश्चय ही अल्लाह दिलों (के भेद) को जानने वाला है।"

यह आयत पिछली आयत (3:118) में दी गई चेतावनी को और स्पष्ट करते हुए मुनाफिकों (पाखंडियों) के दोहरे चरित्र और मोमिनों की भोली-भाली प्रकृति को उजागर करती है।

1. "तुम उनसे प्यार करते हो, और वे तुमसे प्यार नहीं करते":

  • यह मोमिनों की एक स्वाभाविक और भोली प्रवृत्ति को दर्शाता है। वे दिल के साफ होते हैं और हर किसी के साथ भाईचारे और अच्छाई का व्यवहार करते हैं।

  • दूसरी ओर, दुश्मनों (मुनाफिकों और काफिरों) के दिलों में कुव्वत-ए-बसीरत (घृणा और द्वेष) भरा होता है।

2. "तुम पूरी किताब पर ईमान रखते हो":

  • यह मोमिनों की एक और महान विशेषता है। वे सभी अल्लाह की किताबों (कुरआन, तौरात, इंजील) और सभी पैगंबरों पर ईमान रखते हैं। उनका ईमान व्यापक और समावेशी है।

  • यह बात उन अहले-किताब के विपरीत है जो सिर्फ अपनी किताब का एक हिस्सा मानते थे और पैगंबर मुहम्मद ﷺ का इनकार करते थे।

3. मुनाफिकों का दोहरा चरित्र:

  • सार्वजनिक रूप में: "हम ईमान लाए" – वे दिखावा करते हैं, डरते हैं, या कोई दुनियावी फायदा लेने के लिए झूठ बोलते हैं।

  • एकांत में: "उँगलियाँ चबाने लगते हैं" – यह एक अरबी मुहावरा है जो अत्यधिक क्रोध, ईर्ष्या और हताशा को दर्शाता है। वे मुसलमानों की सफलता और एकता को देखकर जलते हैं और उनके विनाश की कामना करते हैं।

4. "अपने गुस्से में मर जाओ":

  • यह अल्लाह का पैगंबर ﷺ को दिया गया आदेश है। यह कोई शाप (curse) नहीं, बल्कि एक तथ्य की घोषणा है।

  • इसका मतलब है: तुम्हारा गुस्सा और घृणा तुम्हारे अपने लिए ही विनाशकारी है। यह तुम्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा है, जबकि मोमिन तुम्हारी वजह से सुरक्षित और खुश हैं। तुम अपने ही जहर में मरोगे।

5. "अल्लाह दिलों की बातों को जानने वाला है":

  • यह आयत का निष्कर्ष है। अल्लाह उनके छिपे हुए गुस्से और ईर्ष्या को जानता है और उसी के अनुसार उन्हें उनका बदला देगा।


सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):

  • भोलेपन से काम न लें: ईमानदार और भले बनो, लेकिन दुनिया में इतने भोले भी मत बनो कि हर किसी की बाहरी बातों पर विश्वास कर लो।

  • दोहरे चरित्र वालों से सावधान: ऐसे लोगों से सजग रहो जिनके कर्म और शब्द, उनके दिल की बात से मेल नहीं खाते।

  • अल्लाह पर भरोसा: चूंकि अल्लाह दिलों का हाल जानता है, इसलिए दुश्मनों की चालों और उनके गुस्से से घबराने की जरूरत नहीं है। अल्लाह की मदद काफी है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में: यह आयत सीधे तौर पर मदीना के मुनाफिकों (पाखंडियों) और शत्रुतापूर्ण यहूदियों के बारे में थी, जो बाहर से दोस्ताना व्यवहार करते थे लेकिन अंदर से मुसलमानों से नफरत करते थे।

  • वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • छद्म मित्र (Fake Friends): आज भी ऐसे लोग मिलेंगे जो आपके सामने आपकी तारीफ करेंगे लेकिन पीठ पीछे आपकी बुराई करेंगे और आपकी सफलता से जलेंगे। यह आयत ऐसे लोगों की पहचान करना सिखाती है।

    • सोशल मीडिया और समाज: सोशल मीडिया पर लोग बाहर से तो 'लाइक' और सपोर्टिव कमेंट करते हैं, लेकिन अंदर से ईर्ष्या और गुस्सा रखते हैं। यह आयत इस मनोविज्ञान को समझाती है।

    • अंतर-धार्मिक संबंध: दूसरे धर्मों या विचारधाराओं के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखो, लेकिन उन्हें इतना भी अंतरंग मत बनाओ जो तुम्हारे विरुद्ध साजिश कर रहे हों।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि:

    • दुश्मन की मीठी जुबान पर मत आओ।

    • अपनी भलाई और ईमानदारी जारी रखो, भले ही दूसरे बुरा चाहें।

    • अंतिम न्याय अल्लाह के हाथ में है, जो दिलों का राज़ जानता है।

यह आयत हर मुसलमान को यह दुआ सिखाती है: "ऐ अल्लाह! हमें दुश्मनों की चालों से बचाए रख, और हमें उन लोगों की पहचान करने की समझ दे जिनके दिलों में हमारे लिए बुराई है।"