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कुरआन की आयत 3:125 की पूरी व्याख्या

 

अरबी आयत (Arabic Verse):

﴿بَلَىٰ ۚ إِن تَصْبِرُوا وَتَتَّقُوا وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَٰذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم بِخَمْسَةِ آلَافٍ مِّنَ الْمَلَائِكَةِ مُسَوِّمِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 125)


शब्दार्थ (Word Meanings):

  • بَلَىٰ (Balaa): हाँ, बिल्कुल (पिछले सवाल का जवाब)।

  • إِن تَصْبِرُوا (In tasbiroo): यदि तुम सब्र करो।

  • وَتَتَّقُوا (Wa tattaqoo): और ताक़वा (अल्लाह का डर) रखो।

  • وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَٰذَا (Wa ya'tookum min fawrihim haazaa): और वे (दुश्मन) तुम पर इसी क्षण चढ़ आएँ।

  • يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم (Yumdidkum rabbukum): तुम्हारा रब तुम्हें मदद पहुँचाएगा।

  • بِخَمْسَةِ آلَافٍ (Bi-khamsati aalafin): पाँच हज़ार की संख्या से।

  • مِّنَ الْمَلَائِكَةِ (Minal-malaa'ikati): फ़रिश्तों के।

  • مُسَوِّمِينَ (Musawwimeen): चिन्हित/पहचान वाले (विशेष रूप से तैयार)।


सरल व्याख्या (Simple Explanation):

इस आयत का अर्थ है: "हाँ, बिल्कुल (पर्याप्त है)! यदि तुम सब्र करो और ताक़वा (अल्लाह का डर) रखो, और ये दुश्मन तुम पर इसी वक्त टूट पड़ें, तो तुम्हारा रब पाँच हज़ार चिन्हित फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा।"

यह आयत पिछली आयत (3:124) में पूछे गए सवाल ("क्या तीन हज़ार फ़रिश्ते काफी नहीं हैं?") का जवाब है। यह सिर्फ एक आश्वासन ही नहीं, बल्कि एक शर्त के साथ एक और बड़े वादे का एलान है।


गहन विश्लेषण और सबक (In-Depth Analysis & Lessons):

1. शर्तों के साथ वादा (A Conditional Promise):
अल्लाह की मदद 'ऑटोमेटिक' नहीं है। यह दो चीजों पर निर्भर करती है:

  • सब्र (Sabr): मुसीबत के वक्त धैर्य, अनुशासन और दृढ़ता बनाए रखना।

  • तक़वा (Taqwa): अल्लाह का डर, यानी उसकी नाफ़रमानी से बचते हुए उसके हुक्म पर चलना।

2. बढ़ी हुई मदद (Escalating Help):
पिछली आयत में ३,००० फ़रिश्तों का जिक्र था। अब यह संख्या बढ़ाकर ५,००० कर दी गई। यह दर्शाता है कि अल्लाह की मदद उसके बंदों की जरूरत और उनकी ईमानदारी के अनुसार बढ़ती जाती है।

3. विशेष रूप से तैयार सहायता (Specially Designated Help):
"मुसव्विमीन" शब्द बहुत खास है। इसका मतलब है ऐसे फ़रिश्ते जो विशेष रूप से चिन्हित, पहचाने जाने योग्य, या इस काम के लिए तैयार किए गए हैं। यह कोई साधारण मदद नहीं, बल्कि एक 'स्पेशल फोर्स' की तरह है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में:
यह आयत बद्र के युद्ध से ठीक पहले के माहौल को दर्शाती है, जहाँ अल्लाह ने मुसलमानों को उनकी ईमानदारी और हालात के अनुसार मदद का भरोसा दिलाया।

वर्तमान (Present) में एक आधुनिक दृष्टिकोण (With a Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में, यह आयत हमारे लिए एक शक्तिशाली जीवन-दर्शन प्रस्तुत करती है:

  • सफलता का फॉर्मूला (The Formula for Success): आज की दुनिया 'ओवरनाइट सक्सेस' चाहती है। यह आयत बताती है कि असली और टिकाऊ सफलता का फॉर्मूला है: सब्र + तक़वा = दिव्य सहायता। चाहे करियर हो, रिश्ते हों, या कोई लक्ष्य, बिना धैर्य और ईमानदारी के सच्ची कामयाबी नहीं मिलती।

  • 'सब्र' का आधुनिक अर्थ (The Modern Meaning of 'Sabr'):

    • यह हार मानकर बैठ जाना नहीं है।

    • यह लगातार प्रयास, कंसिस्टेंसी और ग्रिट है। एक स्टूडेंट का रोज पढ़ना, एक एंटरप्रेन्योर का लगातार कोशिश करना, एक इंसान का बुरी आदत छोड़ने का संघर्ष - यह सब 'सब्र' के आधुनिक रूप हैं।

  • 'तक़वा' का आधुनिक अर्थ (The Modern Meaning of 'Taqwa'):

    • यह सिर्फ नमाज़-रोज़ा नहीं है।

    • यह ईमानदारी, इंटिग्रिटी और एथिक्स है। ऑफिस में बिना बताए पैसे न लेना, एग्जाम में नकल न करना, बिजनेस में धोखा न देना, गलत जानकारी न फैलाना - यह सब आज के जमाने का 'तक़वा' है।

  • बढ़ती हुई मदद (Escalating Help in Modern Life):

    • जब हम किसी संकट (जैसे फाइनेंशियल प्रॉब्लम, हेल्थ इश्यू) में सब्र और ईमानदारी से जूझते हैं, तो अल्लाह की मदद अप्रत्याशित तरीकों से आती है।

    • यह मदद एक अचानक मिला मौका, एक अनजान व्यक्ति की सहायता, एक नया आइडिया, या आंतरिक शक्ति के रूप में आ सकती है। जैसे-जैसे हमारा इम्तिहान कठिन होता है, वैसे-वैसे अल्लाह की मदद और मजबूत होती जाती है (३,००० से ५,००० फ़रिश्तों की तरह)।

  • 'चिन्हित' सहायता - डिवाइन इंटरवेंशन ( 'Marked' Help - Divine Intervention):

    • "मुसव्विमीन" शब्द हमें बताता है कि अल्लाह की मदद बेतरतीब नहीं होती। वह विशेष रूप से डिजाइन की हुई, सटीक और पहचानने योग्य होती है।

    • जब हमें कोई समाधान इतना सही और टाइमली मिलता है कि लगे जैसे सीधे अल्लाह की तरफ से आया है - वही आज के जमाने की 'मुसव्विमीन' मदद है।

भविष्य (Future) के लिए:
यह आयत भविष्य की हर चुनौती के लिए एक कार्य-योजना (Action Plan) देती है:

  1. हिम्मत न हारो (सब्र रखो)।

  2. सही रास्ते पर बने रहो (तक़वा अपनाओ)।

  3. विश्वास रखो कि अल्लाह की विशेष सहायता तुम्हारे साथ आएगी।

सारांश (Conclusion):
यह आयत हमें सिखाती है कि अल्लाह की मदद पाने के लिए हमें 'क्वालीफाई' करना होता है। और यह क्वालीफिकेशन है - धैर्य और ईमानदारी का। यह कोई जादू की छड़ी नहीं, बल्कि एक डिवाइन सिस्टम है। आज के दौर में, जहाँ लोग शॉर्टकट ढूंढते हैं, यह आयत हमें याद दिलाती है कि सब्र और तक़वा का रास्ता ही वह 'स्पेशल फोर्स' एक्टिवेट करता है जो हमें हर मुश्किल से पार ले जाती है।