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कुरआन की आयत 3:172 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

الَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِلَّهِ وَالرَّسُولِ مِن بَعْدِ مَا أَصَابَهُمُ الْقَرْحُ ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا مِنْهُمْ وَاتَّقَوْا أَجْرٌ عَظِيمٌ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • الَّذِينَ اسْتَجَابُوا : जिन्होंने स्वीकार किया

  • لِلَّهِ وَالرَّسُولِ : अल्लाह और रसूल की पुकार को

  • مِن بَعْدِ : के बाद

  • مَا أَصَابَهُمُ الْقَرْحُ : जो उन्हें घाव पहुँचा (उहुद की चोट)

  • ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا : जिन्होंने अच्छा किया

  • مِنْهُمْ وَاتَّقَوْا : उनमें से और डरे (अल्लाह से)

  • أَجْرٌ عَظِيمٌ : बड़ा बदला है

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"जिन लोगों ने उहुद में घाव लगने के बाद भी अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया। उनमें से जिन्होंने अच्छे कर्म किए और तक्वा (अल्लाह का डर) अपनाया, उनके लिए बड़ा बदला है।"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उहुद की लड़ाई के ठीक बाद की घटना से संबंधित है। उहुद में मुसलमानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, कई लोग घायल हुए थे, और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी जख्मी हो गए थे। ऐसे मुश्किल समय में जब अबू सुफयान की सेना वापस जा रही थी, पैगंबर ने घायल सहाबा को फिर से दुश्मन का पीछा करने का आदेश दिया। इस आयत में उन वीर सहाबा की प्रशंसा की गई है जो घावों के बावजूद फिर से धर्मयुद्ध के लिए तैयार हो गए।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:

  1. वफादारी की मिसाल: मुश्किल समय में भी अल्लाह और रसूल के आदेशों का पालन करना सच्ची वफादारी है।

  2. लगन और दृढ़ता: असफलता या चोट के बाद भी हिम्मत न हारना और फिर से कोशिश करना।

  3. तक्वा का महत्व: अच्छे कर्मों के साथ-साथ अल्लाह का डर रखना भी जरूरी है।

  4. बड़े इनाम का वादा: ऐसी कुर्बानियों के लिए अल्लाह ने बड़े बदले का वादा किया है।


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • हिम्मत और साहस: आज के युवाओं के लिए यह आयत एक प्रेरणा है कि असफलता के बाद भी हिम्मत न हारें और फिर से कोशिश करें। चाहे पढ़ाई हो, करियर हो, या इस्लामी काम, हार के बाद भी जूझते रहना चाहिए।

  • आज्ञापालन: आज के समय में लोग आराम और सुविधा के चलते धार्मिक कर्तव्यों से भागते हैं। यह आयत सिखाती है कि मुश्किल हालात में भी अल्लाह और रसूल के आदेशों का पालन करना चाहिए।

  • समर्पण की भावना: आज के मुसलमानों में जिहाद और इस्लामी कर्तव्यों के प्रति जो उदासीनता है, उसके लिए यह आयत एक चेतावनी है कि उहुद के घायल सहाबा ने कैसा जज्बा दिखाया था।

  • धैर्य और संयम: व्यक्तिगत समस्याओं और मुश्किल हालात में भी धैर्य न खोएं और अल्लाह पर भरोसा रखें।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "मुश्किल समय में अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करने वालों के लिए बड़ा इनाम है।" भविष्य में चाहे चुनौतियाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:172 उन वीर सहाबा के जज्बे और समर्पण का वर्णन करती है जिन्होंने उहुद की लड़ाई में घाव लेने के बाद भी पैगंबर के आह्वान पर फिर से दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार हो गए। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि मुश्किल हालात में भी अल्लाह और रसूल के आदेशों का पालन करना चाहिए, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, और अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए अल्लाह ने बड़े इनाम का वादा किया है। यह आयत आज के आरामतलब और सुविधाभोगी युग में हमारे लिए एक चुनौती और प्रेरणा दोनों है।