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कुरआन की आयत 3:51 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِنَّ اللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ ۗ هَٰذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 51)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِنَّ اللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ (Innal-Laaha Rabbee wa Rabbukum): निश्चित रूप से अल्लाह ही मेरा पालनहार है और तुम्हारा भी पालनहार है।

  • فَاعْبُدُوهُ (Fa'buduh): तो तुम उसी की इबादत (बन्दगी) करो।

  • هَٰذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ (Haazaa Siraatum Mustaqeem): यही सीधा मार्ग है।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के संदेश का सार (Core Message) प्रस्तुत करती है। पिछली आयतों में उनके चमत्कारों और मिशन के उद्देश्य का वर्णन करने के बाद, यह आयत बताती है कि उनकी दावत (आह्वान) का केंद्रीय विषय क्या था।

हज़रत ईसा लोगों से कहते हैं:

  1. "अल्लाह ही मेरा पालनहार है और तुम्हारा भी पालनहार है": यह वाक्य "तौहीद" (एकेश्वरवाद) की नींव रखता है। हज़रत ईसा स्वयं को और सभी मनुष्यों को एक ही ईश्वर का दास बताते हैं। वह खुद को अल्लाह का पुत्र या भगवान होने का दर्जा देने की बजाय, अपने आपको एक बन्दा (अब्द) ही बताते हैं। यह बयान उनकी वास्तविक और इस्लामी हैसियत को स्पष्ट करता है।

  2. "तो तुम उसी की इबादत (बन्दगी) करो": पहले वाक्य में जिस एक ईश्वर की पहचान कराई गई, दूसरे वाक्य में उसी की उपासना करने का आदेश दिया गया है। इबादत का मतलब सिर्फ नमाज़ और रोज़ा ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में अल्लाह की इच्छा के आगे समर्पण करना है।

  3. "यही सीधा मार्ग है": अंत में, हज़रत ईसा इस एकेश्वरवाद और उपासना के मार्ग को "सिरात-ए-मुस्तकीम" घोषित करते हैं। यही वह सीधा, स्पष्ट और सही रास्ता है जो इंसान को अल्लाह की नाराज़गी और गुमराही से बचाकर उसकी रज़ा और जन्नत तक पहुँचाता है।

संक्षेप में, यह आयत स्पष्ट करती है कि हज़रत ईसा का मिशन लोगों को अपनी पूजा करने के लिए नहीं, बल्कि उस एक अल्लाह की पूजा करने के लिए प्रेरित करना था, जो उनका भी रब है और सारी मानवजाति का भी।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. सभी पैगंबरों का एक ही संदेश: इस आयत से स्पष्ट है कि हज़रत ईसा का मूल संदेश वही था जो हज़रत मूसा, हज़रत इब्राहीम और अंत में हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का था - "ला इलाहा इल्लल्लाह" (अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं)।

  2. ईसा (अलैहिस्सलाम) की सही हैसियत: यह आयत हज़रत ईसा की दैवीयता (Divinity) या ईश्वर-पुत्र होने के सिद्धांत का स्पष्ट खंडन करती है। वह स्वयं को अल्लाह का बन्दा और उसका पैगंबर बता रहे हैं।

  3. जीवन का लक्ष्य: इंसान के जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल और केवल एक अल्लाह की इबादत करना और "सिरात-ए-मुस्तकीम" पर चलना है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: हज़रत ईसा के समय में, यह संदेश यहूदियों के लिए एक सुधार था, जो रब्बानियों (धार्मिक विद्वानों) ने धर्म में बहुत सी जटिलताएँ पैदा कर दी थीं, और उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शन था जो बाद में ईसाई बने। यह उन्हें सीधे और सरल एकेश्वरवाद की ओर लौटने का आह्वान था।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के दौर में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • अंतर-धार्मिक समझ: यह आयत ईसाइयों और मुसलमानों के बीच एक साझा आधार प्रदान करती है। दोनों ही हज़रत ईसा को अल्लाह का पैगंबर मानते हैं और इस आयत के संदेश - एक ईश्वर की उपासना - से सहमत हो सकते हैं।

    • इस्लामी Identity: यह मुसलमानों को उनके मूल संदेश "तौहीद" की याद दिलाती है और यह स्पष्ट करती है कि इस्लाम हज़रत ईसा सहित सभी पैगंबरों के मूल संदेश का ही विस्तार और पूर्णता है।

    • आध्यात्मिक भटकाव: आज का मनुष्य सांसारिकता और अनेक प्रकार की आध्यात्मिक भ्रांतियों में भटका हुआ है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि शांति और सफलता का रास्ता केवल एक ईश्वर की सेवा में है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी। यह हमेशा इस बात का प्रमाण पेश करती रहेगी कि सभी पैगंबरों का धर्म मूल रूप से एक ही था और मानवजाति का लक्ष्य भी एक ही है - अपने एकमात्र पालनहार, अल्लाह, की इबादत करना। यही "सीधा मार्ग" है।