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कुरआन की आयत 3:76 की पूरी व्याख्या

 

﴿بَلَىٰ مَنْ أَوْفَىٰ بِعَهْدِهِ وَاتَّقَىٰ فَإِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 76)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • بَلَىٰ (Balā): बेशक! (निश्चित रूप से)

  • مَنْ أَوْفَىٰ بِعَهْدِهِ (Man awfā bi'ahdihi): जो कोई अपने वादे को पूरा करे।

  • وَاتَّقَىٰ (Wattaqā): और डरता रहे (अल्लाह से)।

  • فَإِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ (Fa-innal-lāha yuhibbul-muttaqeen): तो निश्चित रूप से अल्लाह डर रखने वालों से प्यार करता है।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत पिछली आयत में वर्णित अहले-किताब की गलत धारणा का सीधा और स्पष्ट खंडन करती है। जहाँ वह यह मानते थे कि गैर-यहूदियों के साथ वादा तोड़ने या धोखा देने में कोई पाप नहीं है, वहीं अल्लाह यहाँ सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत स्थापित करता है।

आयत का आरंभ "बला" (बेशक!) शब्द से होता है, जो पिछली गलतफहमी को दृढ़ता से खारिज करता है। फिर अल्लाह दो विशेषताएँ बताता है जो एक व्यक्ति को अल्लाह के निकट ले जाती हैं:

  1. "जो कोई अपने वादे को पूरा करे": यहाँ "अहद" (वादा) एक व्यापक अर्थ रखता है। इसमें शामिल है:

    • अल्लाह के साथ किया गया वादा (ईमान लाना और उस पर अमल करना)

    • इंसानों के साथ किए गए वादे और समझौते (व्यापारिक, सामाजिक, वैवाहिक)

    • अमानत में ईमानदारी
      यह सिद्धांत किसी धर्म, जाति या रंग के भेद के बिना सभी के लिए है।

  2. "और डरता रहे (अल्लाह से)": "तक्वा" (अल्लाह का डर) वह आंतरिक शक्ति है जो इंसान को वादा पूरा करने और हर गलत काम से रोकती है। जिसके दिल में अल्लाह का डर होता है, वह कभी भी धोखा नहीं दे सकता, चाहे सामने वाला किसी भी समुदाय का क्यों न हो।

परिणाम: ऐसे व्यक्ति के लिए अल्लाह एक बहुत ही खूबसूरत वादा करता है: "तो निश्चित रूप से अल्लाह डर रखने वालों से प्यार करता है।" अल्लाह का प्यार प्राप्त करना ही सबसे बड़ी सफलता है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. वादे की पाबंदी ईमान का हिस्सा है: एक मुसलमान के लिए अपना वचन निभाना और अमानत में ईमानदार रहना उसके ईमान का अटूट अंग है, भले ही सामने वाला दुश्मन ही क्यों न हो।

  2. तक्वा (अल्लाह का डर) ही असली कसौटी: इंसान की नैतिकता की असली कसौटी यह है कि जब कोई देखने वाला न हो, तब भी वह अल्लाह के डर से गुनाह न करे।

  3. अल्लाह का प्यार सर्वोच्च पुरस्कार: एक मोमिन का सबसे बड़ा लक्ष्य अल्लाह का प्यार और रिज़ा (खुशी) हासिल करना है, और यह तक्वा और वादे की पाबंदी से ही मिलता है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत यहूदियों की संकीर्ण सोच को खारिज करके एक सार्वभौमिक इस्लामी नैतिकता की नींव रखती थी। इसने मुसलमानों को सिखाया कि ईमानदारी सभी के साथ रखनी है।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • व्यापारिक नैतिकता: आज के व्यापारिक माहौल में धोखाधड़ी और वादाखिलाफी आम है। यह आयत हर मुसलमान व्यापारी को याद दिलाती है कि उसकी सफलता धोखे से नहीं, बल्कि ईमानदारी और अल्लाह के डर से मिलेगी।

    • अंतर-धार्मिक संबंध: गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार में भी मुसलमानों को वादा पूरा करना चाहिए। इससे इस्लाम की सच्ची तस्वीर पेश होती है।

    • व्यक्तिगत चरित्र: यह आयत हमें अपने रोजमर्रा के छोटे-बड़े वादों (जैसे समय पर पहुँचना, किसी की मदद करना) को गंभीरता से लेने की प्रेरणा देती है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मानवता के लिए "विश्वास और ईमानदारी के सार्वभौमिक सिद्धांत" का प्रतीक बनी रहेगी। एक डिजिटल और अंतर्संबंधित दुनिया में, जहाँ वादे और अमानतें (डेटा, जानकारी) और भी महत्वपूर्ण हो गए हैं, यह आयत हर युग के मुसलमानों को ईमानदारी और अल्लाह के डर के साथ जीने का मार्गदर्शन देती रहेगी। यह आयत यह भी सुनिश्चित करेगी कि मुसलमानों की पहचान हमेशा वादे की पाबंदी और तक्वा के गुणों से जुड़ी रहे।