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कुरआन की आयत 3:83 की पूरी व्याख्या

 

﴿أَفَغَيْرَ دِينِ اللَّهِ يَبْغُونَ وَلَهُ أَسْلَمَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 83)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • أَفَغَيْرَ دِينِ اللَّهِ يَبْغُونَ (A-fa-ghaira deenil-laahi yabghoon): तो क्या अल्लाह के दीन (धर्म) के अलावा वह (और कुछ) तलाश करते हैं?

  • وَلَهُ أَسْلَمَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ (Wa lahu aslama man fis-samaawaati wal-ard): जबकि आकाशों और धरती में जो है, (सबने) उसी के आगे समर्पण किया है।

  • طَوْعًا وَكَرْهًا (Taw'an wa karhan): खुशी से और मजबूरी से।

  • وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ (Wa ilaihi yurja'oon): और उसी की ओर (सबको) लौटना है।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत एक बहुत ही गहरा तार्किक और दार्शनिक सवाल पूछती है। यह उन लोगों की मानसिकता पर चोट करती है जो इस्लाम को छोड़कर कोई और धर्म या जीवन-पद्धति ढूँढ रहे हैं।

आयत के तीन मुख्य भाग हैं:

  1. एक तार्किक प्रश्न: "तो क्या अल्लाह के दीन के अलावा वह और कुछ तलाश करते हैं?"
    यह सवाल हैरानी और नापसंदगी भरा है। इसका मतलब है: जबकि सारा ब्रह्मांड अल्लाह के एक ही धर्म (आज्ञाकारिता और समर्पण) पर चल रहा है, फिर इंसान ही क्यों कोई दूसरा रास्ता ढूँढ रहा है? "दीन" से यहाँ मतलब है जीवन जीने का वह तरीका जो अल्लाह ने बनाया है - इस्लाम।

  2. एक सार्वभौमिक सत्य: "जबकि आकाशों और धरती में जो है, (सबने) उसी के आगे समर्पण किया है।"
    यहाँ "इस्लाम" का मूल अर्थ सामने आता है - 'आत्मसमर्पण'। पूरा ब्रह्मांड अल्लाह के बनाए नियमों के आगे समर्पित है:

    • सूरज, चाँद, तारे सब अल्लाह के नियम से चल रहे हैं।

    • पेड़-पौधे, जानवर, हवा-पानी सब प्रकृति के नियमों का पालन कर रहे हैं।
      यह पूरी सृष्टि अल्लाह की इच्छा के आगे "मुसलमान" (आज्ञाकारी) है।

  3. समर्पण के दो रूप और अंतिम लौटना:

    • खुशी से (तवअन): ईमान वाले लोग, फरिश्ते - यह खुशी से अल्लाह के आगे झुकते हैं।

    • मजबूरी से (करहन): काफिर, प्रकृति के तत्व - यह मजबूरी से अल्लाह के नियमों के आगे झुके हुए हैं। एक काफिर चाहे ईमान न लाए, लेकिन मौत का नियम उस पर भी लागू होगा।

    • "और उसी की ओर (सबको) लौटना है": यह अंतिम सत्य है। चाहे कोई माने या न माने, मरने के बाद हर किसी को अल्लाह के सामने ही पेश होना है और उसी के हिसाब-किताब के अनुसार फैसला होगा।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. इस्लाम प्रकृति का धर्म है: इस्लाम कोई नया या अजनबी धर्म नहीं है। यह वही तरीका है जिस पर पूरा ब्रह्मांड चल रहा है। इंसान का काम इस प्राकृतिक धर्म के साथ सामंजस्य बैठाना है।

  2. समर्पण ही जीवन का सार है: असली सफलता अल्लाह की इच्छा के आगे स्वेच्छा से झुकने में है, न कि उसके खिलाफ जाने में। विद्रोह केवल इंसान को ही नुकसान पहुँचाता है।

  3. अंतिम सत्य को स्वीकार करो: चूंकि अंत में सबको अल्लाह के पास लौटना है, इसलिए समझदारी इसी में है कि इंसान अपनी जिंदगी में ही उसके आगे समर्पण कर दे और उसकी रजा हासिल करे।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत अरब के मुशरिकों और अहले-किताब के लिए एक दमदार दलील थी। यह उनसे पूछती थी कि जब पूरी कायनात एक अल्लाह की बनाई हुई व्यवस्था के आगे झुकी हुई है, तो फिर तुम मूर्तियों या संकीर्ण मतों को क्यों पकड़े हुए हो?

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: आधुनिक विज्ञान भी यही कहता है कि पूरा ब्रह्मांड सटीक नियमों (Laws of Nature) के अनुसार चल रहा है। यह आयत उन नियमों के नियंता (अल्लाह) की ओर इशारा करती है।

    • आध्यात्मिक खोज: आज का इंसान शांति और सच्चाई की तलाश में भटक रहा है। यह आयत उसे बताती है कि सच्ची शांति तो उसी एक खुदा के आगे समर्पण में है जिसने ये सब बनाया है।

    • मुसलमानों के लिए गर्व: यह आयत हर मुसलमान के दिल में यह गर्व भरती है कि वह उसी धर्म पर है जो पूरे ब्रह्मांड का धर्म है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मानवता के लिए "एकेश्वरवाद और समर्पण का सार्वभौमिक तर्क" बनी रहेगी। भविष्य में चाहे विज्ञान कितनी भी उन्नति कर ले, यह आयत हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि ब्रह्मांड का हर कण एक ही खुदा के आगे समर्पित है और अंततः सबको उसी की ओर लौटना है। यह आयत इंसान को हमेशा प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलने की प्रेरणा देती रहेगी।