﴿وَيُعَلِّمُهُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالْإِنْجِيلَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 48)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَيُعَلِّمُهُ (Wa Yu'allimuhu): और वह (अल्लाह) उसे सिखाएगा।
الْكِتَابَ (Al-Kitaaba): किताब (लिखना-पढ़ना)।
وَالْحِكْمَةَ (Wal-Hikmata): और हिक्मत (गूढ़ ज्ञान/तत्वदर्शिता)।
وَالتَّوْرَاةَ (Wat-Tawraata): और तौरात (वह किताब जो हज़रत मूसा पर उतारी गई)।
وَالْإِنْجِيلَ (Wal-Injeela): और इंजील (वह किताब जो हज़रत ईसा पर उतारी गई)।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) को दिए जाने वाले अल्लाह के विशेष ज्ञान और समर्थन का वर्णन करती है। अल्लाह सिर्फ उन्हें एक चमत्कारी बच्चा बनाकर ही नहीं छोड़ देता, बल्कि उन्हें पूरी तरह से शिक्षित और प्रशिक्षित करके भेजता है, ताकि वह अपने पैगंबरी के मिशन को पूरा कर सकें।
इस आयत में उन्हें चार प्रकार का ज्ञान दिए जाने का उल्लेख है:
किताब (लिखना-पढ़ना): इसका मतलब साक्षरता और बुनियादी ज्ञान से है। एक पैगंबर के रूप में उन्हें लिखने-पढ़ने का कौशल सिखाया गया ताकि वह दिव्य संदेश को समझ और संरक्षित कर सकें।
हिक्मत (तत्वदर्शिता): यह सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि "गहरी समझ और बुद्धिमत्ता" है। यह वह क्षमता है जिससे इंसान सही और गलत में फर्क कर पाता है, जीवन के रहस्यों को समझ पाता है और लोगों को सही ढंग से समझा पाता है। यह हज़रत ईसा को दी गई सबसे बड़ी देन थी।
तौरात: यह वह पवित्र ग्रंथ है जो हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। हज़रत ईसा को उस समय मौजूद धार्मिक पुस्तक का पूरा ज्ञान दिया गया, ताकि वह उसकी पुष्टि कर सकें और उसके सही अर्थ लोगों के सामने रख सकें।
इंजील: यह वह नई और अंतिम दिव्य किताब है जो सीधे हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारी गई। अल्लाह ने उन्हें यह ज्ञान दिया कि इंजील क्या है और उसे लोगों तक कैसे पहुँचाना है।
संक्षेप में, अल्लाह ने हज़रत ईसा को "दुनियावी ज्ञान, दार्शनिक गहराई, पिछले धर्मों का ज्ञान और अपना नया संदेश" – इन सभी से समृद्ध करके भेजा।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
ज्ञान का महत्व: अल्लाह ने अपने पैगंबर को सबसे पहले ज्ञान दिया। इससे साबित होता है कि ईश्वर की नज़र में ज्ञान और बुद्धिमत्ता का स्थान सबसे ऊँचा है। अंधविश्वास और अज्ञानता ईमान का हिस्सा नहीं हैं।
संतुलित शिक्षा: एक आदर्श शिक्षा वह है जिसमें "दुनियावी ज्ञान" (किताब) और "आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता" (हिक्मत) दोनों का समन्वय हो। सिर्फ डिग्री लेना काफी नहीं, बल्कि जीवन को समझने की दृष्टि भी जरूरी है।
अतीत का सम्मान और भविष्य का मार्गदर्शन: हज़रत ईसा को पुराने धर्मग्रंथ (तौरात) का ज्ञान दिया गया, जो अतीत का सम्मान है, और नए ग्रंथ (इंजील) का ज्ञान दिया गया, जो भविष्य का मार्गदर्शन है। यह सिखाता है कि हमें अपनी जड़ों को जानते हुए भी आगे बढ़ना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: हज़रत ईसा के समय में, यह ज्ञान उनकी पैगंबरी की पुष्टि के लिए जरूरी था। यहूदी विद्वान उनसे तौरात के बारे में सवाल करते थे, और उनका संपूर्ण ज्ञान ही उनके तर्कों का जवाब था। इसने उनकी दलील को मजबूत बनाया।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:
शिक्षा प्रणाली के लिए: आज की शिक्षा प्रणाली अक्सर "किताब" (डिग्री) तक सीमित रह जाती है, "हिक्मत" (चरित्र निर्माण, नैतिकता) पीछे छूट जाती है। यह आयत एक संतुलित शिक्षा का आदर्श प्रस्तुत करती है।
धार्मिक अध्ययन: यह आयत मुसलमानों को प्रोत्साहित करती है कि वे न सिर्फ कुरआन, बल्कि पिछली किताबों (तौरात, इंजील) का भी ज्ञान हासिल करें ताकि उनकी समझ व्यापक बने।
बच्चों की परवरिश: हमें अपने बच्चों को सिर्फ स्कूली शिक्षा ही नहीं, बल्कि जीवन की हिक्मत (समझदारी, अच्छे संस्कार) भी सिखानी चाहिए।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मानवता के सामने "ज्ञान के समग्र मॉडल" को प्रस्तुत करती रहेगी। भविष्य की दुनिया चाहे जितनी तकनीकी रूप से उन्नत हो जाए, लेकिन अगर उसमें "हिक्मत" (जीवन मूल्य, नैतिकता) नहीं होगी, तो वह विनाशकारी साबित होगी। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को हमेशा ज्ञान और बुद्धिमत्ता के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती रहेगी।