बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम (अल्लाह के नाम से जो अत्यंत दयालु और कृपाशील है)
आयत का अरबी पाठ:
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاءً ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ وَالْأَرْحَامَ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا
शब्दार्थ:
يَا أَيُّهَا النَّاسُ: हे लोगों!
اتَّقُوا رَبَّكُم: अपने रब से डरो (अर्थात उसकी अवज्ञा से बचो)
الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ: जिसने तुम्हें एक ही जान (आदम) से पैदा किया
وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا: और उसी (जान) से उसकी जोड़ी (हौवा) को पैदा किया
وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء: और उन दोनों से बहुत-से मर्द और औरतें फैला दीं
وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ: और अल्लाह से डरो, जिसके नाम पर तुम एक-दूसरे से अपने हक मांगते हो
وَالْأَرْحَامَ: और रिश्ते-नातों (के टूटने) से भी डरो
إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا: बेशक अल्लाह तुमपर निगरान रखने वाला है
सरल व्याख्या:
यह आयत सीधे तौर पर पूरी मानवजाति को संबोधित करती है। अल्लाह तआला लोगों को तीन बातों का आदेश दे रहा है:
अपने रब से डरो: उस अल्लाह से डरो जिसने तुम सबको एक ही मूल (हज़रत आदम अलैहिस्सलाम) से पैदा किया। फिर उसी से उनकी जोड़ी (हज़रत हौवा) को बनाया और आज पूरी दुनिया में फैले हुए करोड़ों पुरुष और महिलाएं उन्हीं दोनों की संतान हैं।
अल्लाह के नाम की sanctity का ख्याल रखो: उस अल्लाह से डरो जिसके नाम की कसम खाकर तुम एक-दूसरे से अपने अधिकारों की मांग करते हो। उस पवित्र नाम का सम्मान करो।
रिश्तों-नातों का ख्याल रखो: अपने खून के रिश्तों (जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे, रिश्तेदार) के अधिकारों का पालन करो और उन्हें तोड़ने से डरो।
आयत का अंत इस बात की चेतावनी के साथ होता है कि अल्लाह हर समय तुमपर नज़र रखे हुए है। इसलिए उसकी निगाह में कोई भी गलत काम छिपा नहीं रह सकता।
आयत से सीख (Lesson):
मानवीय एकता (Human Unity): चूंकि पूरी मानवता की शुरुआत एक ही पूर्वज से हुई है, इसलिए जाति, रंग, नस्ल, क्षेत्र या राष्ट्रीयता का अहंकार बिल्कुल निराधार है। सभी इंसान मूल रूप से भाई-भाई हैं।
अल्लाह की निगरानी में जीवन (Life under God's Watch): अल्लाह की हर वक्त की निगरानी का एहसास इंसान को हर गुनाह और गलत काम से बचाता है और उसे एक जिम्मेदार जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी (Family & Social Responsibility): रिश्तों की अहमियत पर ज़ोर दिया गया है। परिवार समाज की मूल इकाई है और उसके बंधन मजबूत रहने से ही समाज मजबूत बनता है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत के संदर्भ में:
इस आयत ने उस जमाने में एक क्रांतिकारी संदेश दिया था जब अरब समाज में जातीय अहंकार, ग़ुलामी और औरतों के साथ भेदभाव चरम पर था। इसने स्पष्ट कर दिया कि सभी इंसान मूल रूप से बराबर हैं।
वर्तमान संदर्भ :
आज का दुनिया जिस चुनौतियों से घिरी है, उनमें यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
नस्लवाद और भेदभाव (Racism & Discrimination): आज भी दुनिया नस्लीय घृणा, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता से जूझ रही है। यह आयत इन सभी बुराइयों की जड़ पर प्रहार करती है और मानवीय एकता का संदेश देती है।
पारिवारिक मूल्यों का ह्रास (Decline of Family Values): आज पारिवारिक बंधन टूट रहे हैं, बुजुर्गों की उपेक्षा हो रही है और रिश्तों की अहमियत कम हो रही है। यह आयत "अल-अरहाम" (रिश्ते-नातों) की हिफाज़त का आदेश देकर एक मजबूत समाज की नींव रखती है।
जवाबदेही का अभाव (Lack of Accountability): आधुनिक दौर में, खासकर अनाम इंटरनेट की दुनिया में, लोगों में जवाबदेही की भावना कम होती जा रही है। यह आयत याद दिलाती है कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर हम पर नज़र रखे हुए है, जो हमें आंतरिक रूप से नैतिक और ईमानदार बनने की प्रेरणा देता है।
नारीवाद और लैंगिक समानता (Feminism & Gender Equality): आयत में पुरुष और महिला दोनों का उल्लेख एक साथ किया गया है, यह दर्शाता है कि दोनों का मूल एक है और दोनों ही इंसानी सम्मान के हकदार हैं। यह लैंगिक न्याय की बुनियादी शिक्षा देता है।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की मानवता के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक के रूप में रहेगी। जब तक इंसान रहेंगे, एकता, नैतिकता, पारिवारिक बंधन और ईश्वर के प्रति जवाबदेही की ज़रूरत बनी रहेगी। यह आयत इन्हीं शाश्वत मूल्यों की ओर इशारा करती है।
निष्कर्ष:
कुरआन की यह आयत केवल एक धार्मिक आदेश नहीं है, बल्कि मानव समाज के सुचारू और शांतिपूर्ण संचालन के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शिका है। यह हमें हमारी जड़ों, हमारी ज़िम्मेदारियों और हमारे अंतिम लक्ष्य का एहसास कराती है।