आयत का अरबी पाठ:
وَمَن يُهَاجِرْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ يَجِدْ فِي الْأَرْضِ مُرَاغَمًا كَثِيرًا وَسَعَةً ۚ وَمَن يَخْرُجْ مِن بَيْتِهِ مُهَاجِرًا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ يُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ أَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
हिंदी अनुवाद:
"और जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत (प्रवास) करे, वह धरती में बहुत-सी जगह (आश्रय) और समृद्धि पाएगा। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की ओर हिजरत करने के लिए अपने घर से निकले, फिर उसे मौत आ पहुँचे (रास्ते में ही मर जाए), तो निश्चय ही उसका अज्र (प्रतिफल) अल्लाह के जिम्मे हो गया। और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है।"
📖 आयत का सार और सीख:
इस आयत का मुख्य संदेश अल्लाह की राह में कदम बढ़ाने वालों के लिए दुनिया और आखिरत दोनों में अच्छाई का वादा है। यह हमें सिखाती है:
प्रयास का पुरस्कार: अल्लाह की राह में उठाया गया कदम कभी बेकार नहीं जाता। चाहे इंसान मंजिल तक पहुँचे या रास्ते में ही रह जाए, उसका प्रयास पूरा का पूरा कबूल होता है।
दुनियावी और आखिरती फायदा: हिजरत करने वाले को दोनों ही जहानों में फायदा मिलता है - दुनिया में नई जगह और रोजी (सकून और समृद्धि) और आखिरत में अल्लाह की खुशी और जन्नत।
नियत का महत्व: अगर नियत (इरादा) खालिस अल्लाह और उसके रसूल के लिए है, तो अल्लाह सिर्फ नतीजा देखने वाला नहीं, बल्कि नियत और कोशिश को कबूल करने वाला है।
🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):
हिजरत के लिए प्रोत्साहन: जब यह आयत उतरी, तो कई मुसलमान मक्का से मदीना हिजरत करने में डर और अनिश्चितता महसूस कर रहे थे। यह आयत उनके लिए एक दिव्य वादा और गारंटी थी कि उनका त्याग और संघर्ष बेकार नहीं जाएगा।
मक्का से मदीना की यात्रा: उस समय हिजरत एक कठिन और जोखिम भरी यात्रा थी। लोग अपना घर-बार, संपत्ति और रिश्तेदार छोड़ रहे थे। इस आयत ने उनके हौसले को बुलंद किया और यह विश्वास दिलाया कि अल्लाह उन्हें मदीना में बेहतर जीवन देगा।
शहीदों का सम्मान: उन लोगों के लिए विशेष安慰 जो हिजरत के रास्ते में शहीद हो गए। यह आयत स्पष्ट करती है कि ऐसे लोग पूरे इनाम के हकदार हैं, क्योंकि उनकी नियत पूरी थी और वह अल्लाह के रास्ते में कदम बढ़ा चुके थे।
💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):
एक आधुनिक दर्शक के लिए, इस आयत की प्रासंगिकता बहुत व्यापक और प्रेरणादायक है:
1. आध्यात्मिक और नैतिक हिजरत (Spiritual & Moral Migration):
बुराई से अच्छाई की ओर बढ़ना: आज हिजरत का सबसे बड़ा सबक यह है कि अगर कोई गलत रास्ते पर है, बुरे माहौल में फंसा है, या पाप की जिंदगी जी रहा है, तो उसे "हिजरत" करके अच्छाई और नेकी की तरफ आना चाहिए। यह आंतरिक हिजरत (Internal Migration) है।
करियर और जीवन में बदलाव: नौकरी, व्यवसाय या रहने की जगह बदलने का फैसला, अगर हलाल रोजी और बेहतर जीवन की तलाश में है, तो यह भी एक तरह की हिजरत है जिसके लिए अल्लाह से अच्छे नतीजे की उम्मीद की जा सकती है।
2. प्रयास और इरादे का महत्व:
नतीजे की चिंता छोड़ना: आज का इंसान अक्सर सफलता-असफलता के चक्र में फंसा रहता है। यह आयत सिखाती है कि इरादा और ईमानदार कोशिश, नतीजे से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर कोई अच्छे काम की शुरुआत करे और बीच में ही उसकी मृत्यु हो जाए, तो अल्लाह उसकी पूरी कोशिश का पूरा इनाम देगा।
स्टार्टअप और नई शुरुआत: कोई भी नया व्यवसाय शुरू करना, नई पढ़ाई शुरू करना - इन सभी में जोखिम होता है। यह आयत हिम्मत देती है कि अगर नियत सही है और कोशिश ईमानदार है, तो अल्लाह की मदद और रहमत जरूर मिलेगी।
3. सामाजिक सकारात्मक परिवर्तन:
समाज सुधार के काम: जो लोग समाज में बुराइयों के खिलाफ लड़ते हैं, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, या सामाजिक बदलाव के लिए काम करते हैं - उनके लिए यह आयत बहुत बड़ी प्रेरणा है। चाहे उन्हें तुरंत सफलता न मिले, लेकिन अल्लाह के यहाँ उनका पूरा इनाम सुरक्षित है।
4. भविष्य के लिए संदेश:
आशावाद और सक्रियता: भविष्य की पीढ़ियों के लिए यह आयत एक जीवन दर्शन देती है - डर और अनिश्चितता के बावजूद सही रास्ते पर चलने का साहस करो। अल्लाह तुम्हारे साथ है और तुम्हारा हर कदम, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, कभी बेकार नहीं जाएगा।
निष्कर्ष:
कुरआन की यह आयत मुसलमानों को सकारात्मक Initiative (पहल) लेने, जोखिम उठाने और अल्लाह पर भरोसा रखने की प्रेरणा देती है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह की राह में उठाया गया कदम दुनिया और आखिरत दोनों में सफलता की कुंजी है। चाहे मंजिल मिले या न मिले, रास्ता ही असली कमाई है, और अल्लाह राही की हर जरूरत को पूरा करने वाला है।
वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)।