आयत का अरबी पाठ:
وَلَا تُجَادِلْ عَنِ الَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنفُسَهُمْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا
हिंदी अनुवाद :
"और तुम उन लोगों की तरफ़ से बहस (झगड़ा) मत करो जो अपने आप को धोखा देते हैं। निश्चय ही अल्लाह उस व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो बहुत धोखेबाज और गुनहगार हो।"
📖 आयत का सार और सीख:
इस आयत का मुख्य संदेश धोखेबाजों और गुनहगारों का साथ न देने के बारे में है। यह हमें सिखाती है:
गलत लोगों का साथ न देना: ऐसे लोगों का बचाव न करें जो जानबूझकर गलत काम करते हैं और खुद को धोखा देते हैं।
अल्लाह की नाराजगी: अल्लाह उन लोगों से प्यार नहीं करता जो धोखेबाज और बड़े गुनाह करने वाले हैं।
नैतिक साहस: सच्चाई के लिए खड़े होना और गलत काम करने वालों का साथ न देना।
🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):
यहूदियों के साथ एक घटना: यह आयत एक विशेष घटना के संदर्भ में उतरी जब कुछ लोग चोरी के एक मामले में दोषी यहूदियों का पक्ष ले रहे थे।
न्याय की स्थापना: इस आयत ने स्पष्ट कर दिया कि गुनहगारों का बचाव करना गलत है, भले ही वे आपके अपने क्यों न हों।
सामाजिक जिम्मेदारी: इसने मुसलमानों को सिखाया कि समाज में न्याय कायम करने के लिए गलत लोगों का साथ नहीं देना चाहिए।
💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):
1. व्यक्तिगत जीवन में सिद्धांत:
रिश्तों में ईमानदारी: परिवार या दोस्तों के गलत कामों का बचाव न करना।
नैतिक मूल्य: चाहे कोई भी हो, गलत का साथ न देना।
2. सामाजिक जिम्मेदारी:
भ्रष्टाचार विरोध: भ्रष्ट लोगों का बचाव न करना।
सामाजिक बुराइयाँ: समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाना।
3. पेशेवर जीवन:
कार्यस्थल ईमानदारी: ऑफिस में गलत काम करने वाले सहकर्मियों का साथ न देना।
व्यावसायिक नैतिकता: व्यापार में धोखाधड़ी करने वालों का बचाव न करना।
4. धार्मिक और सामुदायिक जीवन:
धार्मिक नेतृत्व: धार्मिक मामलों में गलत लोगों का पक्ष न लेना।
सामुदायिक न्याय: समुदाय में गुनहगारों का बचाव न करना।
5. डिजिटल युग में प्रासंगिकता:
सोशल मीडिया जिम्मेदारी: ऑनलाइन गलत information फैलाने वालों का बचाव न करना।
साइबर अपराध: साइबर अपराधियों का साथ न देना।
6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:
वैश्विक न्याय: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत काम करने वाले देशों या संगठनों का बचाव न करना।
पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वालों का साथ न देना।
निष्कर्ष:
कुरआन की यह आयत सिद्धांतों और नैतिकता पर जोर देती है। यह सिखाती है कि सच्चा ईमानदार व्यक्ति वही है जो गलत काम करने वालों का बचाव नहीं करता, भले ही वे उसके अपने क्यों न हों। आधुनिक युग में जहाँ लोग रिश्तों या स्वार्थ के कारण गलत लोगों का साथ देते हैं, यह आयत और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। यह हमें याद दिलाती है कि अल्लाह की नजर में गुनहगारों का बचाव करना भी एक तरह का गुनाह है।
वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)।