1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
يُوصِيكُمُ اللَّهُ فِي أَوْلَادِكُمْ ۖ لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الْأُنثَيَيْنِ ۚ فَإِن كُنَّ نِسَاءً فَوْقَ اثْنَتَيْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ ۖ وَإِن كَانَتْ وَاحِدَةً فَلَهَا النِّصْفُ ۚ وَلِأَبَوَيْهِ لِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُ وَلَدٌ ۚ فَإِن لَّمْ يَكُن لَّهُ وَلَدٌ وَوَرِثَهُ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ الثُّلُثُ ۚ فَإِن كَانَ لَهُ إِخْوَةٌ فَلِأُمِّهِ السُّدُسُ ۚ مِن بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِي بِهَا أَوْ دَيْنٍ ۗ آبَاؤُكُمْ وَأَبْنَاؤُكُمْ لَا تَدْرُونَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعًا ۚ فَرِيضَةً مِّنَ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهُ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"अल्लाह तुम्हें तुम्हारी संतानों (के मिरास/विरासत) के बारे में आदेश देता है: एक पुरुष का हिस्सा दो महिलाओं के बराबर है। फिर अगर सिर्फ दो से अधिक महिलाएं (वारिस) हों, तो उनके लिए मृतक द्वारा छोड़े गए धन का दो-तिहाई हिस्सा है। और अगर केवल एक (बेटी) ही हो, तो उसके लिए आधा हिस्सा है। और मृतक के माता-पिता में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है, अगर मृतक की अपनी संतान (बेटा या बेटी) हो। लेकिन अगर मृतक की कोई संतान न हो और सिर्फ उसके माता-पिता ही वारिस हों, तो उसकी माँ के लिए तिहाई हिस्सा है। फिर अगर मृतक के भाई-बहन (भी) हों, तो उसकी माँ के लिए छठा हिस्सा है। (ये सारे बंटवारे) उस वसीयत (विल/Will) के पूरा करने के बाद होंगे, जो मृतक ने की हो, या उसके कर्ज (ऋण) को चुकाने के बाद। तुम्हारे लिए यह जानना मुश्किल है कि तुम्हारे माता-पिता और तुम्हारी संतानों में से कौन तुम्हारे लिए फायदे (और हित) की दृष्टि से अधिक नज़दीक है। (यह) अल्लाह की तरफ से एक निर्धारित हिस्सा है। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, तत्वदर्शी है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
इस आयत के कई महत्वपूर्ण सबक हैं:
न्याय और उचित बंटवारा: इस्लाम से पहले के अरब समाज में महिलाओं और नाबालिग बच्चों को विरासत से वंचित कर दिया जाता था। यह आयत एक क्रांतिकारी कदम थी, जिसने महिलाओं को विरासत में निश्चित हिस्सा देकर उनके आर्थिक अधिकार सुनिश्चित किए।
पारिवारिक जिम्मेदारी: विरासत का बंटवारा केवल पैसे का मामला नहीं है। यह पारिवारिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। उस ज़माने में पुरुष पर पूरे परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी (माता-पिता, बहन-बीवी, बच्चे) होती थी, इसलिए उसका हिस्सा अधिक रखा गया। महिला का हिस्सा पूरी तरह से उसकी अपनी निजी संपत्ति होती है, जिसपर परिवार का कोई दावा नहीं होता।
वसीयत और कर्ज की अहमियत: आयत साफ कहती है कि विरासत का बंटवारा मृतक की वसीयत (अगर उसने कोई बनाई हो) और उसके कर्ज को चुकाने के बाद ही होगा। इससे यह सबक मिलता है कि किसी के ऊपर कर्ज न छोड़ा जाए और उसकी अंतिम इच्छा का सम्मान किया जाए।
अल्लाह की दूरदर्शिता: आयत के अंत में कहा गया है कि "तुम नहीं जानते कि तुम्हारे लिए कौन ज़्यादा फायदेमंद है।" यह इस बात का संकेत है कि यह बंटवारा मनुष्य की सीमित समझ से परे, सर्वज्ञाता अल्लाह की ओर से है और इसमें सभी के हित छिपे हैं।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
सामाजिक क्रांति: 7वीं सदी के अरब में, जहाँ बेटियों को ज़िंदा दफन कर दिया जाता था और उन्हें संपत्ति का कोई अधिकार नहीं था, यह आयत एक बड़ा सुधार था। इसने महिलाओं को समाज में एक सम्मानजनक और आत्मनिर्भर स्थान दिया।
कानूनी व्यवस्था: इसने एक ऐसी व्यवस्था दी, जहाँ अनाथ और कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा हुई और संपत्ति के बंटवारे में होने वाले झगड़ों को समाप्त किया।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance - Contemporary Audience Perspective):
महिला सशक्तिकरण: आज के दौर में, जहाँ महिला अधिकारों पर ज़ोर दिया जा रहा है, यह आयत इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम ने 1400 साल पहले ही महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता का अधिकार दे दिया था। यह मुसलमान महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करती है।
पारिवारिक विवादों का समाधान: आज भी ज़्यादातर परिवारों में संपत्ति के बंटवारे को लेकर कलेश होते हैं। इस आयत में दिया गया स्पष्ट और न्यायपूर्ण फॉर्मूला इन विवादों को रोक सकता है, बशर्ते लोग इसे ईमानदारी से लागू करें।
वित्तीय जिम्मेदारी: यह आयत हमें वित्तीय अनुशासन सिखाती है - जीते-जी अपने कर्ज चुकाना और वसीयत लिखना एक जिम्मेदार नागरिक और अच्छे मुसलमान का लक्षण है।
चुनौती और गलतफहमी: आज का समाज इस बात पर सवाल उठाता है कि पुरुष को महिला से दोगुना हिस्सा क्यों मिलता है। समकालीन दृष्टिकोण से, इसकी व्याख्या उस ऐतिहासिक-सामाजिक संदर्भ में करना ज़रूरी है जहाँ पुरुष की वित्तीय ज़िम्मेदारी अधिक थी। आज अगर सामाजिक संरचना बदल गई है और महिला भी समान रूप से आय अर्जित कर रही है, तो इस पर नए सिरे से विचार-विमर्श की गुंजाइश इस्लामी विद्वानों के बीच मौजूद है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक समाज और परिवार बना रहेगा, संपत्ति के न्यायपूर्ण बंटवारे की आवश्यकता बनी रहेगी। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी और न्यायसंगत मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी।
सामाजिक स्थिरता: एक निष्पक्ष विरासत कानून समाज में आर्थिक असमानता को कम करके स्थिरता ला सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि धन कुछ हाथों में केंद्रित न होकर पूरे परिवार में बंट जाए।
लचीलापन: आयत में वसीयत का प्रावधान भविष्य की अनिश्चितताओं और व्यक्तिगत परिस्थितियों के लिए एक लचीलेपन का दरवाज़ा खुला छोड़ता है। व्यक्ति अपनी विशेष ज़रूरतों के मुताबिक वसीयत के ज़रिए कुछ हिस्सा अलग से दे सकता है।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:11 केवल एक विरासत नियम ही नहीं, बल्कि एक संपूर्ण सामाजिक दर्शन है। यह न्याय, समानता, पारिवारिक जिम्मेदारी और वित्तीिक अनुशासन का संदेश देती है। अतीत में इसने एक क्रांति लाई, वर्तमान में यह मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है और भविष्य में यह एक ऐसी नींव रखती है, जिसपर एक न्यायपूर्ण और संतुलित समाज का निर्माण किया जा सकता है।