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कुरआन की आयत 4:110 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَمَن يَعْمَلْ سُوءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ اللَّهَ يَجِدِ اللَّهَ غَفُورًا رَّحِيمًا

हिंदी अनुवाद:
"और जो कोई बुराई करे या अपने ऊपर ज़ुल्म करे, फिर अल्लाह से माफ़ी माँगे, तो वह अल्लाह को बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान पाएगा।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश तौबा और अल्लाह की दया की महानता के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. माफ़ी की संभावना: चाहे कोई कितनी भी बड़ी गलती कर ले, अल्लाह की दया के दरवाजे हमेशा खुले हैं।

  2. सच्ची तौबा का महत्व: गलती के बाद सच्चे दिल से माफ़ी माँगना मोमिन की पहचान है।

  3. आशा का संदेश: कोई भी गुनाह अल्लाह की माफ़ी से बड़ा नहीं है।


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • मुनाफिकों और गुनहगारों के लिए आशा: पिछली आयतों में गुनहगारों की निंदा के बाद, यह आयत उनके लिए आशा का संदेश लेकर आती है।

  • इस्लाम की दया का पैगाम: प्रारंभिक इस्लामी समाज में नए-नए मुसलमानों के लिए यह आयत एक सांत्वना थी कि उनकी पिछली गलतियाँ माफ की जा सकती हैं।

  • मानवीय कमजोरी की स्वीकृति: इस आयत ने स्वीकार किया कि इंसान से गलतियाँ होती हैं और अल्लाह उसे माफ करने को तैयार है।


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. व्यक्तिगत आध्यात्मिकता:

  • मानसिक शांति: गलतियों के बाद माफ़ी माँगने से मन का बोझ हल्का होता है।

  • आत्म-सुधार: तौबा इंसान को बेहतर इंसान बनने का मौका देती है।

2. सामाजिक और पारिवारिक संबंध:

  • रिश्तों की मरम्मत: गलती मानकर माफ़ी माँगने से टूटे रिश्ते जुड़ सकते हैं।

  • सामाजिक सद्भाव: समाज में लोग एक-दूसरे की गलतियों को माफ करना सीखते हैं।

3. मानसिक स्वास्थ्य:

  • अपराधबोध से मुक्ति: माफ़ी माँगने से गिल्ट की भावना कम होती है।

  • भावनात्मक स्वास्थ्य: तौबा इंसान को भावनात्मक रूप से हल्का करती है।

4. पेशेवर जीवन:

  • करियर विकास: पेशेवर गलतियों से सीखना और आगे बढ़ना।

  • लीडरशिप: अच्छे नेता वही होते हैं जो अपनी गलतियाँ मानते हैं और सुधारते हैं।

5. युवाओं के लिए मार्गदर्शन:

  • गलत रास्ते से वापसी: नशे या अन्य बुराइयों में फंसे युवाओं के लिए आशा का संदेश।

  • नई शुरुआत: जीवन में कहीं भी, कभी भी नई शुरुआत करने का साहस।

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • वैश्विक सद्भाव: राष्ट्रों के बीच पुराने विवादों को माफ करके आगे बढ़ना।

  • पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरण के साथ की गई गलतियों के लिए तौबा और सुधार।


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत अल्लाह की असीम दया और क्षमा का सबसे सुंदर चित्रण है। यह सिखाती है कि इंसानी जीवन में गलतियाँ होना स्वाभाविक है, लेकिन असली बुद्धिमानी सच्चे दिल से तौबा करने में है। आधुनिक युग में जहाँ लोग डिप्रेशन, एंग्जाइटी और निराशा से जूझ रहे हैं, यह आयत एक मरहम का काम करती है। यह हमें याद दिलाती है कि कोई भी इंसान कितनी भी गहरी गलती में क्यों न हो, अल्लाह की दया का दरवाजा उसके लिए हमेशा खुला है

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)।