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कुरआन की आयत 4:131 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ اتَّقُوا اللَّهَ ۚ وَإِن تَكْفُرُوا فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدًا

हिंदी अनुवाद:
"और आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। और हमने तुमसे पहले अहले-किताब को और तुम्हें भी यही हिदायत की है कि अल्लाह से डरो। और अगर तुम कुफ्र करोगे तो (उससे अल्लाह को कोई नुकसान नहीं) क्योंकि आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। और अल्लाह बेनियाज़ (स्वतंत्र) और हर प्रशंसा के लायक है।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश अल्लाह की संप्रभुता और तक़्वा (ईश्वर-भय) की सार्वभौमिक आवश्यकता के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. अल्लाह की संपूर्ण संप्रभुता: पूरी सृष्टि अल्लाह की है

  2. सार्वभौमिक हिदायत: सभी लोगों के लिए तक़्वा का संदेश

  3. अल्लाह की स्वतंत्रता: अल्लाह किसी के ईमान या कुफ्र से प्रभावित नहीं होता

  4. अल्लाह की प्रशंसा: वह सभी प्रशंसा का हकदार है


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • सार्वभौमिक संदेश: यह आयत यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों सभी को संबोधित करती है

  • तक़्वा का महत्व: सभी पैगंबरों का एक ही मूल संदेश - अल्लाह से डरो

  • अल्लाह की महानता: मूर्तिपूजकों को अल्लाह की संप्रभुता का एहसास कराना


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. आध्यात्मिक जीवन:

  • तक़्वा की प्रासंगिकता: आधुनिक युग में भी ईश्वर-भय का महत्व

  • एकेश्वरवाद: सभी धर्मों में एक ईश्वर की अवधारणा

  • आध्यात्मिक एकता: विभिन्न धर्मों के बीच साझा मूल्य

2. सामाजिक जीवन:

  • नैतिक आधार: तक़्वा के बिना नैतिकता अधूरी

  • सामाजिक न्याय: अल्लाह के भय से समाज में न्याय

  • अंतरधार्मिक संवाद: विभिन्न धर्मों के बीच साझा आधार

3. व्यक्तिगत विकास:

  • जिम्मेदारी का एहसास: अल्लाह के सामने जवाबदेही

  • आत्म-निरीक्षण: अपने कर्मों का मूल्यांकन

  • चरित्र निर्माण: तक़्वा से मजबूत चरित्र

4. वैश्विक परिप्रेक्ष्य:

  • सार्वभौमिक मूल्य: सभी मानवों के लिए साझा नैतिकता

  • वैश्विक शांति: तक़्वा से विश्व शांति की ओर

  • पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी

5. आधुनिक चुनौतियाँ:

  • भौतिकवाद के बीच: आध्यात्मिकता का संरक्षण

  • नैतिक संकट: तक़्वा से नैतिक मूल्यों की रक्षा

  • सामाजिक असंतुलन: ईश्वर-भय से सामाजिक संतुलन

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • तकनीकी युग में धर्म: डिजिटल युग में धार्मिक मूल्य

  • वैश्विक नागरिकता: विश्व समुदाय में नैतिक जिम्मेदारी

  • मानवता का भविष्य: तक़्वा पर आधारित बेहतर विश्व


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत अल्लाह की संपूर्ण संप्रभुता और तक़्वा की सार्वभौमिक आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। यह सिखाती है कि पूरी सृष्टि अल्लाह की है और उसने सभी लोगों को एक ही संदेश दिया है - अल्लाह से डरो। आधुनिक युग में जहाँ लोग भौतिकवाद और नास्तिकता की ओर बढ़ रहे हैं, यह आयत आध्यात्मिक जागरूकता और नैतिक जिम्मेदारी का संदेश देती है। अल्लाह बेनियाज़ और हमीद है - वह किसी का मोहताज नहीं और सारी प्रशंसाएँ उसी के लिए हैं।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)