कुरआन की आयत 4:136 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي أَنزَلَ مِن قَبْلُ ۚ وَمَن يَكْفُرْ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا

हिंदी अनुवाद:
"ऐ ईमान वालों! अल्लाह पर, उसके रसूल पर, और उस किताब पर ईमान लाओ जो उसने अपने रसूल पर उतारी और उन किताबों पर भी जो उससे पहले उतारी गईं। और जो कोई अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन से इन्कार करे, तो वह भटककर बहुत दूर निकल गया।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश ईमान के सभी आवश्यक अंगों पर पूर्ण विश्वास की महत्ता के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. ईमान की पूर्णता: ईमान के सभी रुक्न (स्तंभ) पर विश्वास जरूरी

  2. पैगंबरों और किताबों पर ईमान: सभी पैगंबरों और आसमानी किताबों पर ईमान

  3. गहरी गुमराही की चेतावनी: ईमान के किसी भी हिस्से को नकारने का परिणाम

  4. ईमान की निरंतरता: ईमान को मजबूत और सक्रिय रखना


ईमान के रुक्न (स्तंभ):

  1. अल्लाह पर ईमान

  2. फ़रिश्तों पर ईमान

  3. आसमानी किताबों पर ईमान

  4. पैगंबरों पर ईमान

  5. आख़िरत के दिन पर ईमान

  6. तक़दीर पर ईमान


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • अहले-किताब के लिए मार्गदर्शन: यहूदी और ईसाई जो पिछली किताबों को मानते थे लेकिन कुरआन और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल0) को नहीं मानते थे

  • नए मुसलमानों के लिए शिक्षा: जो लोग नए-नए मुसलमान हुए थे, उन्हें ईमान के पूरे तत्व समझाना

  • ईमान की पुष्टि: मोमिनीन के ईमान को और मजबूत करना


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. आध्यात्मिक जीवन:

  • ईमान की पूर्णता: ईमान के सभी हिस्सों पर पूरा विश्वास

  • तौहीद की समझ: अल्लाह की एकता और उसके गुणों का ज्ञान

  • आख़िरत की तैयारी: मृत्यु के बाद के जीवन के लिए तैयारी

2. अंतरधार्मिक संबंध:

  • धार्मिक सहिष्णुता: दूसरे धर्मों के पैगंबरों और किताबों का सम्मान

  • साझा मूल्य: विभिन्न धर्मों में साझा आस्था के बिंदु

  • धार्मिक एकता: इब्राहीमी धर्मों के बीच सामान्य आधार

3. वैज्ञानिक युग में ईमान:

  • विज्ञान और ईमान: वैज्ञानिक खोजों और ईमान के बीच सामंजस्य

  • तकनीक और आस्था: डिजिटल युग में ईमान की रक्षा

  • आधुनिक चुनौतियाँ: नास्तिकता और भौतिकवाद के बीच ईमान

4. सामाजिक जीवन:

  • नैतिक आधार: ईमान के सिद्धांतों पर आधारित नैतिकता

  • सामाजिक न्याय: ईमान से प्रेरित सामाजिक सेवा

  • पारिवारिक मूल्य: ईमानी परिवार का निर्माण

5. शैक्षिक संदर्भ:

  • इस्लामी शिक्षा: ईमान के सिद्धांतों की शिक्षा

  • आधुनिक शिक्षा: धार्मिक और दुनियावी शिक्षा का संतुलन

  • बौद्धिक विकास: ईमान और ज्ञान का समन्वय

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • युवा पीढ़ी: नई पीढ़ी को ईमान की शिक्षा

  • वैश्विक समुदाय: विश्व समुदाय में मुसलमान की पहचान

  • तकनीकी भविष्य: AI और डिजिटल युग में ईमान की प्रासंगिकता


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत ईमान की पूर्णता और उसके सभी आवश्यक अंगों पर जोर देती है। यह सिखाती है कि सच्चा ईमान सिर्फ अल्लाह पर विश्वास तक सीमित नहीं, बल्कि उसके फ़रिश्तों, किताबों, पैगंबरों और आख़िरत के दिन पर भी विश्वास को शामिल करता है। आधुनिक युग में जहाँ लोग अक्सर ईमान के कुछ हिस्सों को चुनकर मानते हैं और कुछ को नकारते हैं, यह आयत पूर्ण और संतुलित आस्था का संदेश देती है। ईमान के किसी भी हिस्से को नकारना गहरी गुमराही की ओर ले जाता है, इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है कि वह ईमान के सभी रुक्न पर पूरा विश्वास रखे।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)