कुरआन की आयत 4:139 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

الَّذِينَ يَتَّخِذُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاءَ مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۚ أَيَبْتَغُونَ عِندَهُمُ الْعِزَّةَ فَإِنَّ الْعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا

हिंदी अनुवाद:
"जो लोग मोमिनीन को छोड़कर काफिरों को अपना दोस्त बनाते हैं। क्या वह उनके पास इज्जत तलाश करते हैं? हालाँकि सारी इज्जत तो अल्लाह ही के लिए है।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश काफिरों को दोस्त बनाने की मनाही और असली इज्जत का स्रोत के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. दोस्ती की सीमाएँ: मोमिनीन को छोड़कर काफिरों से दोस्ती न करना

  2. इज्जत का गलत स्रोत: काफिरों से इज्जत की तलाश गलत है

  3. इज्जत का सही स्रोत: असली इज्जत सिर्फ अल्लाह के पास है

  4. वफादारी का महत्व: मोमिनीन के प्रति वफादारी जरूरी


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • मुनाफिकीन की रणनीति: मदीना के पाखंडी जो मुसलमानों और काफिरों दोनों से दोस्ती रखते थे

  • कमजोर ईमान वाले: जो लोग काफिरों से इज्जत और समर्थन की तलाश करते थे

  • इज्जत की गलत समझ: दुनियावी इज्जत को असली इज्जत समझना


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. आध्यात्मिक जीवन:

  • दोस्ती का चुनाव: दोस्तों का चुनाव ईमान के आधार पर करना

  • अल्लाह पर भरोसा: इज्जत और सम्मान सिर्फ अल्लाह से माँगना

  • वफादारी: मुसलमानों के प्रति वफादार रहना

2. सामाजिक जीवन:

  • सामाजिक संबंध: गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार की सीमाएँ

  • समाज में एकता: मुस्लिम समुदाय में एकजुटता

  • सामाजिक प्रभाव: गलत संगत के प्रभाव से बचना

5. शैक्षिक जीवन:

  • शैक्षिक सहयोग: ज्ञान के आदान-प्रदान में सीमाएँ

  • शैक्षिक प्रभाव: गलत विचारों के प्रभाव से बचना

6. डिजिटल युग में प्रासंगिकता:

  • सोशल मीडिया दोस्ती: ऑनलाइन दोस्ती के चुनाव

  • डिजिटल प्रभाव: इंटरनेट के गलत प्रभाव से बचाव

7. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • वैश्विक समुदाय: वैश्विक मुस्लिम समुदाय की मजबूती

  • तकनीकी सहयोग: टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मुस्लिम सहयोग

  • सांस्कृतिक संरक्षण: इस्लामी पहचान और संस्कृति की रक्षा


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत मुसलमानों के लिए दोस्ती के मापदंड और इज्जत के सही स्रोत को स्पष्ट करती है। यह सिखाती है कि मोमिनीन को छोड़कर काफिरों से दोस्ती करना गलत है और असली इज्जत सिर्फ अल्लाह के पास है। आधुनिक युग में जहाँ लोग दुनियावी इज्जत और लाभ के लिए गलत संबंध बनाते हैं, यह आयत सही दोस्ती और असली इज्जत का मार्ग दिखाती है। हर मुसलमान का फर्ज है कि वह अपनी दोस्ती और वफादारी में अल्लाह की मरज़ी का ख्याल रखे और सिर्फ अल्लाह से इज्जत की उम्मीद करे।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)