1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۖ كِتَابَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَاءَ ذَٰلِكُمْ أَن تَبْتَغُوا بِأَمْوَالِكُم مُّحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ ۚ فَمَا اسْتَمْتَعْتُم بِهِ مِنْهُنَّ فَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَاضَيْتُم بِهِ مِن بَعْدِ الْفَرِيضَةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"और (विवाह में वर्जित हैं) सभी सती-साध्वी स्त्रियाँ (यानी दूसरों की पत्नियाँ), सिवाय उन (दासियों) के जो तुम्हारे अधिकार में हों। (यह) अल्लाह की ओर से तुमपर लिखा हुआ (नियम) है। इनके अलावा (अन्य स्त्रियों) से तुम्हारे लिए विवाह करना हलाल किया गया है, इस शर्त पर कि तुम अपने धन (महर) से (उनसे) विवाह करो, पवित्रता की इच्छा से, व्यभिचार की इच्छा से नहीं। फिर जिन (स्त्रियों) से तुम (वैवाहिक) सुख प्राप्त करो, उन्हें उनका महर (निर्धारित उपहार) अनिवार्य रूप से अदा करो। और महर तय हो जाने के बाद अगर आपसी सहमति से (महर में कुछ कमी या बदलाव) करो, तो तुमपर कोई पाप नहीं है। निश्चित रूप से अल्लाह सब कुछ जानने वाला, तत्वदर्शी है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
वैवाहिक संबंधों की पवित्रता: यह आयत विवाह को एक पवित्र और कानूनी बंधन के रूप में स्थापित करती है। इसका उद्देश्य यौन संबंधों को केवल वैध विवाह के दायरे में लाकर समाज में नैतिकता और शालीनता कायम करना है।
महिला का आर्थिक अधिकार (महर): आयत फिर से इस बात पर जोर देती है कि महर पत्नी का एक पूर्ण और निर्विवाद अधिकार है। इसे "फ़रीज़ा" (अनिवार्य दायित्व) कहा गया है, जिसे पति को अदा करना ही होगा।
पारस्परिक सहमति और लचीलापन: आयत में पति-पत्नी की आपसी सहमति ("तरादी") को महत्व दिया गया है। महर तय हो जाने के बाद, अगर पत्नी अपनी मर्जी से कुछ रियायत देती है या महर बदलती है, तो इसमें कोई पाप नहीं है। यह वैवाहिक जीवन में पारस्परिक समझ और लचीलेपन का सिद्धांत स्थापित करता है।
उद्देश्य की शुद्धता: आयत विवाह के उद्देश्य को स्पष्ट करती है - "मुह्सिनीन" (पवित्र रहने वाले) बनने के लिए, न कि "मुसाफिहीन" (व्यभिचारी) बनने के लिए। यानी विवाह का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि एक पवित्र जीवनसाथी के साथ नैतिक और धार्मिक जीवन बिताना है।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
सामाजिक व्यवस्था: इस्लाम से पहले, अरब समाज में यौन संबंधों के regarding कोई स्पष्ट नियम नहीं थे। इस आयत ने एक स्पष्ट और नैतिक ढाँचा प्रदान किया, जिसने समाज में अनैतिकता पर अंकुश लगाया।
महिलाओं के अधिकार: उस ज़माने में महिलाओं को अक्सर वस्तु की तरह देखा जाता था। महर की अनिवार्यता ने उन्हें एक सम्मानजनक स्थान और आर्थिक सुरक्षा प्रदान की।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
विवाह की पवित्रता का संदेश: आज के युग में, जहाँ लिव-इन रिलेशनशिप और कैज़ुअल रिलेशन आम हैं, यह आयत विवाह की पवित्रता और स्थिरता के महत्व पर जोर देती है। यह युवाओं को एक जिम्मेदार और नैतिक जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा दे सकती है।
महिला सशक्तिकरण: महर का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। यह स्त्री को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है और विवाह में उसकी सहमति और महत्व को रेखांकित करता है। यह दहेज जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ एक इस्लामी समाधान है।
वैवाहिक समझौते में लचीलापन: "आपसी सहमति के बाद" का सिद्धांत पति-पत्नी के बीच प्यार, समझौता और सहयोग को बढ़ावा देता है। यह दर्शाता है कि इस्लाम वैवाहिक जीवन में मानवीय भावनाओं और आपसी तालमेल को महत्व देता है।
दास प्रथा का संदर्भ: आयत में "मा मलकत ऐमानुकुम" (दासियों) का उल्लेख एक ऐतिहासिक संदर्भ है। इस्लाम ने दास प्रथा को एक ऐसी प्रक्रिया के through खत्म किया जो उस समय की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता में व्यावहारिक थी। आज, चूंकि दास प्रथा का अस्तित्व नहीं है, इसलिए इस हिस्से का संदर्भ ऐतिहासिक है और आधुनिक युग में इसकी कोई व्यावहारिक प्रासंगिकता नहीं है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत नैतिक ढाँचा: मानव समाज चाहे कितना भी बदल जाए, विवाह की पवित्रता, स्त्री के अधिकार और पारस्परिक सहमति के ये सिद्धांत सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे।
स्थिर समाज का आधार: एक स्वस्थ और स्थिर समाज के निर्माण के लिए, परिवार की इकाई मजबूत होनी चाहिए। यह आयत उसी की नींव रखती है।
मानवीय मूल्य: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को सम्मान, ईमानदारी, जिम्मेदारी और नैतिकता के मानवीय मूल्यों का संदेश देती रहेगी।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:24 वैवाहिक जीवन के लिए एक संपूर्ण और संतुलित मार्गदर्शन प्रस्तुत करती है। यह अतीत में एक सामाजिक क्रांति लाने वाली आयत थी, वर्तमान में विवाह की पवित्रता और महिला अधिकारों का संरक्षण करने वाली आयत है और भविष्य के लिए एक नैतिक और स्थिर समाज के निर्माण का आधार है। यह आयत इस्लाम के व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है।