Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:30 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ عُدْوَانًا وَظُلْمًا فَسَوْفَ نُصْلِيهِ نَارًا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और जो कोई अत्याचार और ज़ुल्म के साथ ऐसा करेगा, तो हम उसे जलती आग (जहन्नम) में डालेंगे, और यह अल्लाह पर बहुत आसान है।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. कर्मों का परिणाम: यह आयत पिछली आयत (4:29) में दिए गए निषेधों का गंभीर परिणाम बताती है। यह सिखाती है कि मनुष्य के हर कर्म का एक दुष्परिणाम होता है, खासकर जब वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

  2. अत्याचार और ज़ुल्म की गंभीरता: आयत में दो शब्दों का प्रयोग हुआ है - "उद्वान" (द्रोह, सीमा लांघना) और "ज़ुल्म" (अन्याय, अत्याचार)। इससे पता चलता है कि किसी के माल को हड़पना या किसी की जान लेना सिर्फ एक अपराध ही नहीं, बल्कि अल्लाह के खिलाफ विद्रोह और उसके बंदों पर अत्याचार है।

  3. अल्लाह की न्यायप्रणाली: आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह की न्यायप्रणाली पूर्णतः न्यायसंगत है। वह हर अत्याचार को देख रहा है और उसके लिए एक गंभीर दंड है।

  4. अल्लाह की शक्ति: "यह अल्लाह पर बहुत आसान है" - यह वाक्य अल्लाह की पूर्ण शक्ति और प्रभुता को दर्शाता है। उसके लिए किसी को भी दंड देना कोई कठिन कार्य नहीं है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • सामाजिक व्यवस्था के लिए चेतावनी: जब यह आयत उतरी, तो इसने नए मुस्लिम समाज को एक स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर वे अल्लाह के बताए हुए नियमों का उल्लंघन करेंगे, तो उन्हें सिर्फ दुनिया में ही नहीं, बल्कि आखिरत में भी कड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी। इससे समाज में अनुशासन बना रहा।

  • अत्याचार के खिलाफ रोक: इस आयत ने लोगों के मन में अल्लाह के भय (तकवा) को पैदा किया, जिससे वे दूसरों का माल हड़पने या उनकी हत्या करने से डरते थे।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • आर्थिक अपराधों के खिलाफ चेतावनी: आज के युग में जहाँ बैंक धोखाधड़ी, कर चोरी, इनसाइडर ट्रेडिंग, मिलावटखोरी और भ्रष्टाचार जैसे आर्थिक अपराध आम हैं, यह आयत एक स्पष्ट चेतावनी है कि ऐसे कर्मों का केवल कानूनी ही नहीं, बल्कि एक दैवीय दंड भी है।

  • हत्या और आतंकवाद के खिलाफ संदेश: बेगुनाह लोगों की हत्या, आतंकवाद और हिंसक अपराधों के मामले में यह आयत बहुत प्रासंगिक है। यह स्पष्ट करती है कि ऐसे कार्य "उद्वान व ज़ुल्म" हैं और इनके करने वालों के लिए जहन्नम की यातना है।

  • नैतिक अवरोध का निर्माण: जब कानून और पुलिस हर जगह नज़र नहीं रख सकती, तो ईमान और आखिरत के भय का यह संदेश व्यक्ति के अंदर एक नैतिक अवरोध (Moral Compass) पैदा करता है जो उसे गलत काम करने से रोकता है।

  • सामाजिक न्याय के प्रति जागरूकता: यह आयत हमें याद दिलाती है कि किसी के साथ अन्याय करना सिर्फ एक सामाजिक अपराध नहीं है, बल्कि अल्लाह के खिलाफ एक बगावत है। यह सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए काम करने की प्रेरणा देती है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • तकनीकी अपराधों के लिए चेतावनी: भविष्य में साइबर क्राइम, डेटा चोरी, AI का दुरुपयोग और डिजिटल हैकिंग जैसे नए रूपों में "दूसरे का माल हड़पना" जारी रहेगा। यह आयत इन सभी रूपों को "उद्वान व ज़ुल्म" बताकर एक शाश्वत चेतावनी देती रहेगी।

  • नैतिकता का शाश्वत आधार: चाहे समाज कितना भी धर्मनिरपेक्ष या आधुनिक क्यों न हो जाए, न्याय और नैतिकता का सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा। यह आयत उसी की याद दिलाती रहेगी।

  • जीवन की पवित्रता का संदेश: भविष्य की जैव-नैतिक चुनौतियों (जैसे अनैतिक क्लोनिंग, यूथेनेशिया का दुरुपयोग) के संदर्भ में, "ज़ुल्म" की यह अवधारणा मानव जीवन की पवित्रता की रक्षा करती रहेगी।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:30 अल्लाह की न्यायप्रणाली की गंभीरता को दर्शाती है। यह अतीत में एक सामाजिक नियंत्रण और नैतिक शिक्षा का साधन थी, वर्तमान में आर्थिक अनैतिकता और हिंसा के खिलाफ एक दिव्य चेतावनी है और भविष्य की तकनीकी एवं नैतिक चुनौतियों के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक है। यह आयत हमें यह याद दिलाती है कि हमारे कर्मों की जिम्मेदारी सिर्फ इस दुनिया तक सीमित नहीं है।