Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:61 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَىٰ مَا أَنزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ رَأَيْتَ الْمُنَافِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और जब उन (मुनाफिकों) से कहा जाता है कि आओ उस (किताब) की ओर जो अल्लाह ने उतारी है और रसूल की ओर, तो आप मुनाफिकों (पाखंडियों) को देखेंगे कि वे आपसे मुँह फेर लेते हैं।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. मुनाफिकी की पहचान: यह आयत मुनाफिकों (पाखंडियों) के एक महत्वपूर्ण लक्षण को उजागर करती है - जब उन्हें अल्लाह के कानून (कुरआन) और पैगंबर (स.अ.व.) के फैसले की ओर बुलाया जाता है, तो वह साफ इनकार कर देते हैं और मुँह फेर लेते हैं।

  2. दावा और हकीकत का फर्क: ये लोग ज़ुबानी तौर पर तो ईमान का दावा करते हैं, लेकिन जब अमल का वक्त आता है तो उनकी असलियत सामने आ जाती है।

  3. सत्य से विमुखता: मुनाफिक सत्य को सुनना और मानना नहीं चाहते। उनकी इस विमुखता (मुँह फेरने) में एक जिद और अहंकार छिपा होता है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • मदीना के मुनाफिकों का व्यवहार: यह आयत मदीना के उन मुनाफिकों के बारे में उतरी थी जब उन्हें पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के पास फैसले के लिए आमंत्रित किया जाता था, तो वे इनकार कर देते थे और यहूदियों की अदालतों में चले जाते थे।

  • ईमान की कसौटी: यह आयत प्रारंभिक मुस्लिम समाज के लिए एक कसौटी थी कि कौन सच्चा मोमिन है और कौन मुनाफिक।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • आधुनिक मुनाफिकी के रूप: आज के युग में मुनाफिकी के कई रूप देखने को मिलते हैं:

    • वे लोग जो इस्लाम की बातें तो करते हैं लेकिन जब कुरआन और सुन्नत के अनुसार जीने की बात आती है तो मुँह फेर लेते हैं।

    • वे लोग जो धार्मिक रस्में तो निभाते हैं लेकिन इस्लामी कानून (शरीयत) को अपने जीवन में लागू नहीं करना चाहते।

    • वे लोग जो इस्लाम के स्पष्ट आदेशों (जैसे ब्याज, पर्दा, हलाल-हराम) को मानने से कतराते हैं।

  • आत्म-मूल्यांकन का आह्वान: यह आयत हर उस व्यक्ति से आत्म-मूल्यांकन करने को कहती है जो खुद को मुसलमान कहता है: क्या जब कुरआन और सुन्नत की बात आती है तो हम उसे सिर-आँखों पर लेते हैं या फिर मुँह फेर लेते हैं?

  • सच्चे ईमान की शर्त: यह आयत सिखाती है कि सच्चा ईमान अल्लाह और उसके रसूल के हर आदेश को दिल से स्वीकार करना और उस पर चलना है।

  • समाज में पाखंड की पहचान: यह आयत हमें समाज में पाखंड के विभिन्न रूपों को पहचानना सिखाती है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया में ईमान और कुफ्र का अस्तित्व रहेगा, मुनाफिकी भी रहेगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को इस खतरे से सचेत करती रहेगी।

  • इस्लामी पहचान का संकट: भविष्य के और अधिक धर्मनिरपेक्ष और भौतिकवादी समाज में, यह आयत मुसलमानों को उनकी इस्लामी पहचान बनाए रखने में मदद करेगी।

  • सत्य के प्रति समर्पण: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को सिखाएगी कि उन्हें हर हाल में सत्य (कुरआन और सुन्नत) के प्रति समर्पित रहना चाहिए, चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:61 मुनाफिकी (पाखंड) के एक मौलिक लक्षण को उजागर करती है। यह अतीत में मुनाफिकों की पहचान कराने वाली आयत थी, वर्तमान में हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहार के लिए एक कसौटी है और भविष्य के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह आयत हमें सिखाती है कि सच्चा ईमान केवल ज़ुबानी दावा नहीं, बल्कि अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों को पूरी तरह से स्वीकार करना और उन पर अमल करना है।