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कुरआन की आयत 5:26 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ ۛ أَرْبَعِينَ سَنَةً ۛ يَتِيهُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 26)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • قَالَ: (अल्लाह ने) कहा।

  • فَإِنَّهَا: तो निश्चय ही वह (भूमि)।

  • مُحَرَّمَةٌ: हराम (वर्जित) है।

  • عَلَيْهِمْ: उन पर।

  • أَرْبَعِينَ: चालीस।

  • سَنَةً: साल।

  • يَتِيهُونَ: भटकते रहेंगे।

  • فِي: में।

  • الْأَرْضِ: धरती पर।

  • فَلَا: तो नहीं।

  • تَأْسَ: दुखी/उदास हो।

  • عَلَى: पर।

  • الْقَوْمِ: कौम।

  • الْفَاسِقِينَ: नाफ़रमानों के।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"(अल्लाह ने) कहा: 'तो निश्चय ही वह (भूमि) उन पर चालीस साल के लिए हराम (वर्जित) कर दी गई है। वे धरती में (बेसहारा) भटकते रहेंगे। अतः आप (मूसा) इस नाफ़रमान कौम पर दुखी न हों।'"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत बनी इस्राईल की सामूहिक नाफ़रमानी और कायरता पर अल्लाह के अंतिम फैसले का ऐलान करती है। यह हज़रत मूसा की दुआ का जवाब है और एक गंभीर सबक है।

1. अल्लाह का फैसला: "फइन्नहा मुहर्रमतुन अलैहिम"

  • हज़रत मूसा के अलगाव की दुआ का जवाब देते हुए अल्लाह ने फैसला सुनाया कि वह पवित्र भूमि (अर्द-ए-मुक़द्दस) अब उस पीढ़ी पर "हराम" (वर्जित) है।

  • यह सिर्फ एक मनाही नहीं थी; यह एक दैवीय प्रतिबंध था। उनकी नियति (तक़दीर) में यह लिख दिया गया कि वे उसमें प्रवेश नहीं कर पाएँगे।

2. सज़ा की अवधि और प्रकृति: "अर्बईना सनतन यतीहूना फिल अर्द"

  • अवधि: "चालीस साल"। यह वह समय था जब तक वह नाफ़रमान पीढ़ी पूरी तरह खत्म हो गई। एक नई पीढ़ी तैयार हुई जो डर और कायरता से मुक्त थी।

  • सज़ा का स्वरूप: "यतीहूना" - वे बेसहारा, लक्ष्यहीन, इधर-उधर भटकते रहेंगे।

    • यह भटकन सिर्फ भौगोलिक नहीं थी, बल्कि आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक भी थी।

    • उनका कोई ठिकाना नहीं था, कोई मकसद नहीं था। वह सिनाई के रेगिस्तान में लक्ष्यहीन घूमते रहे।

3. हज़रत मूसा के लिए सांत्वना: "फला तअस अलल कौमिल फासिक़ीन"

  • अल्लाह ने हज़रत मूसा को यह कहकर सांत्वना दी: "आप इस नाफ़रमान कौम पर दुखी न हों।"

  • "ला तअस" का अर्थ है दुख, पछतावा या अफसोस न करना।

  • इसका तर्क यह था:

    • आपने अपना कर्तव्य (दावत और चेतावनी) पूरा कर दिया।

    • उन्होंने अपनी पसंद स्वयं चुन ली है।

    • अब वह अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अपने कर्मों का फल भुगतेंगे। उनके लिए दुखी होना व्यर्थ है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. अवज्ञा का परिणाम: अल्लाह के स्पष्ट आदेश के बाद भी नाफ़रमानी करने का परिणाम हमेशा विनाश और लक्ष्यहीनता होता है।

  2. दैवीय न्याय में देरी इनकार नहीं: अल्लाह का फैसला तुरंत नहीं आया, लेकिन आया जरूर। चालीस साल की सजा यह दिखाती है कि अल्लाह का इंसाफ तय है, भले ही वह देरी से आए।

  3. दाइयों के लिए सबक: जो लोग अल्लाह के मार्ग पर बुलाते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी केवल संदेश पहुँचाना है। अगर लोग नहीं मानते, तो उनके लिए अफसोस करने की जरूरत नहीं है।

  4. पीढ़ीगत परिवर्तन: कभी-कभी बुराई में डूबी हुई एक पूरी पीढ़ी को हटाकर एक नई, ईमान वाली पीढ़ी को तैयार करना ही अल्लाह की हिकमत (तत्वदर्शिता) होती है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • बनी इस्राईल की ऐतिहासिक सजा: यह आयत बनी इस्राईल के लिए एक ऐतिहासिक वास्तविकता थी। उन्होंने वास्तव में 40 साल तक सिनाई के रेगिस्तान में भटकन भरी जिंदगी बिताई।

  • मुसलमानों के लिए चेतावनी: यह मुसलमानों के लिए एक जीवंत चेतावनी थी कि अल्लाह के आदेशों से विमुख होने का यही परिणाम होता है।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • मुस्लिम समुदाय की स्थिति: आज का मुस्लिम समुदाय कई मायनों में एक "आध्यात्मिक भटकाव" (यतीहूना) का शिकार है। उनके पास कुरआन और सुन्नत का मार्गदर्शन है (पवित्र भूमि), लेकिन वह उस पर अमल करने से कतराते हैं (प्रवेश नहीं करना)। नतीजा यह है कि वह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं और दिशाहीन हैं।

  • व्यक्तिगत जीवन में भटकाव: एक व्यक्ति के रूप में, जब हम अल्लाह के आदेशों (नमाज, रोजा, ईमानदारी) की अवहेलना करते हैं, तो हमारा जीवन भी लक्ष्यहीन और अशांत हो जाता है। यह हमारी "व्यक्तिगत भटकाव" है।

  • दाइयों के लिए सांत्वना: आज जो लोग इस्लामी कार्य कर रहे हैं और लोगों की उदासीनता या विरोध देखकर निराश होते हैं, उनके लिए यह आयत सांत्वना है: "फला तअस" - दुखी मत हो। आपका काम संदेश पहुँचाना है, लोगों के दिल बदलना नहीं।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • सामूहिक नाफ़रमानी का परिणाम: भविष्य में भी, यदि कोई समुदाय अल्लाह के स्पष्ट मार्गदर्शन को ठुकराकर कायरता और अवज्ञा दिखाएगा, तो उसका भी अंत बनी इस्राईल जैसा ही होगा - लक्ष्यहीनता और अपमान।

  • एक स्थायी दैवीय नियम: "अवज्ञा → दैवीय प्रतिबंध → भटकन और अपमान" का यह नियम हर युग और हर समुदाय पर लागू होता है। यह आयत इस नियम को क़यामत तक के लिए स्थापित करती है।

  • आशा का संदेश: यह आयत यह भी दर्शाती है कि अल्लाह की सजा एक पीढ़ी तक सीमित हो सकती है। एक नई पीढ़ी, जो ईमान और साहस से भरी हो, उसे फिर से मौका मिलता है। यह भविष्य के लिए आशा की किरण है।

निष्कर्ष: यह आयत हमें अल्लाह के न्याय और उसकी हिकमत (तत्वदर्शिता) का बोध कराती है। यह हमें चेतावनी देती है कि अल्लाह के मार्ग से भटकने का परिणाम जीवन की सार्थकता और लक्ष्य का खो जाना है। साथ ही, यह उन लोगों के लिए सांत्वना है जो लोगों को सही रास्ता दिखाने का प्रयास करते हैं। यह सबक इतिहास के हर दौर में उतना ही प्रासंगिक और शिक्षाप्रद है।