﴿لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَا بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لِأَقْتُلَكَ ۖ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ﴾
(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 28)
अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)
- لَئِن: यदि तूने (शपथ सहित)। 
- بَسَطتَ: बढ़ाई। 
- إِلَيَّ: मेरी ओर। 
- يَدَكَ: अपना हाथ। 
- لِتَقْتُلَنِي: ताकि तू मुझे मार डाले। 
- مَا أَنَا: मैं नहीं हूँ। 
- بِبَاسِطٍ: बढ़ाने वाला। 
- يَدِي: अपना हाथ। 
- إِلَيْكَ: तेरी ओर। 
- لِأَقْتُلَكَ: ताकि मैं तुझे मार डालूँ। 
- إِنِّي: निश्चय ही मैं। 
- أَخَافُ: डरता हूँ। 
- اللَّهَ: अल्लाह से। 
- رَبَّ: पालनहार। 
- الْعَالَمِينَ: सारे संसार का। 
पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)
"(हाबील ने कहा) 'यदि तू मुझे मार डालने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाएगा, तो (सुन ले) मैं तुझे मार डालने के लिए तेरी ओर हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। निश्चय ही मैं अल्लाह से डरता हूँ, जो सारे संसार का पालनहार है।'"
विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत हाबील के उस उत्तर का दूसरा भाग है जो उसने अपने भाई काबील की हत्या की धमकी के जवाब में दिया। यह एक नेक इंसान की मानसिकता, उसके सिद्धांतों और अल्लाह के प्रति उसके गहरे डर को दर्शाती है।
1. सिद्धांतों की दृढ़ता: "मा अन बि-बासितिन यदिया इलैका लि-अक़तु लका"
- हाबील ने स्पष्ट घोषणा की कि भले ही तू मुझे मारने के लिए हाथ बढ़ाए, लेकिन मैं तुझे मारने के लिए तेरी ओर हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। 
- यह एक सक्रिय और सचेतन निर्णय था। यह कायरता नहीं थी, बल्कि एक सिद्धांतपूर्ण अहिंसा थी। उसने बुराई का जवाब बुराई से देने से इनकार कर दिया। 
2. अहिंसा का कारण: "इन्नी अखाफुल्लाह"
- हाबील ने अपने इस फैसले का कारण बताया: "निश्चय ही मैं अल्लाह से डरता हूँ।" 
- यह डर (खौफ) कोई साधारण भय नहीं था। यह "तक्वा" था - अल्लाह की अवज्ञा और उसकी सज़ा का एक गहन, जागरूक भय। 
- उसके लिए, काबील को मार देना केवल एक शारीरिक हत्या नहीं होती, बल्कि अल्लाह की नाराजगी मोल लेने जैसा होता। 
3. अल्लाह की विशालता का बोध: "रब्बल आलमीन"
- हाबील ने अल्लाह को "रब्बल आलमीन" (सारे संसार का पालनहार) कहकर पुकारा। 
- इससे उसके डर की गहराई का पता चलता है। वह सिर्फ अपने निजी अल्लाह से नहीं डर रहा था, बल्कि उस सर्वशक्तिमान से डर रहा था जिसका अधिकार पूरे ब्रह्मांड पर है और जो हर छोटे-बड़े कर्म का हिसाब लेगा। 
4. हाबील के चरित्र का चित्रण:
- साहसी: वह डरकर भागा नहीं, बल्कि स्पष्टवादी था। 
- नैतिक रूप से दृढ़: उसने बदला लेने के अपने अवसर को ठुकरा दिया। 
- अल्लाह-केंद्रित: उसकी हर सोच और कार्रवाई का केंद्र अल्लाह की प्रसन्नता और उसका भय था। 
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)
- अल्लाह का डर सर्वोच्च है: जिसे अल्लाह का सच्चा डर होता है, वह किसी इंसान के डर या लालच में कोई गलत काम नहीं करता। 
- बुराई का जवाब बुराई से न दें: इस्लाम आत्मरक्षा की अनुमति देता है, लेकिन हाबील का रवैया हमें सिखाता है कि बदला लेने की मानसिकता और आक्रामकता गलत है। 
- आंतरिक शक्ति: सच्ची ताकत दूसरों को नुकसान पहुँचाने में नहीं, बल्कि अपने गुस्से और बुराइयों पर काबू पाने में है। 
- ईमान की परीक्षा: ईमान की सच्ची परीक्षा तब होती है जब आपको गुस्सा आ रहा होता है और बदला लेने का मौका होता है। सच्चा मोमिन वही है जो अल्लाह के डर से ऐसा नहीं करता। 
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):
- मानवीय नैतिकता का आदर्श: यह आयत हमेशा से नैतिकता, अहिंसा और अल्लाह के भय का सर्वोच्च उदाहरण रही है। 
- पैगंबरों के लिए मार्गदर्शन: यह दर्शाती है कि अल्लाह के नबी और उनके सच्चे अनुयायी किस तरह दमन और अत्याचार का सामना करते हैं। 
2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):
- व्यक्तिगत संघर्ष और गुस्सा प्रबंधन: आज, हर इंसान अपने जीवन में ऐसी स्थितियों से गुजरता है जहाँ उसे गुस्सा आता है और बदला लेने का मन करता है (झगड़े, धोखाधड़ी, अपमान)। यह आयत हमें याद दिलाती है कि "इन्नी अखाफुल्लाह" (मैं अल्लाह से डरता हूँ) कहने का साहस दिखाएँ। 
- सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष: दुनिया भर में हिंसा और बदले की संस्कृति फैली हुई है। यह आयत एक वैकल्पिक मार्ग दिखाती है - सिद्धांतों पर डटे रहना और अल्लाह के न्याय पर भरोसा करना। 
- आतंकवाद और उग्रवाद का खंडन: इस्लाम के दुश्मन इसे एक हिंसक धर्म कहते हैं। हाबील का यह उत्तर इसका सबसे स्पष्ट खंडन है। यह दर्शाता है कि इस्लाम की नींव "अल्लाह का भय" और "अनुचित हिंसा से इनकार" में है। 
3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नैतिकता: भविष्य में, जब AI और अन्य शक्तिशाली तकनीकें मनुष्य के हाथ में होंगी, यह आयत एक महत्वपूर्ण नैतिक मार्गदर्शक बनेगी। यह सिखाएगी कि "क्या हम कुछ कर सकते हैं?" के बजाय सवाल यह होना चाहिए कि "क्या अल्लाह की नजर में हमें यह करना चाहिए?" 
- एक शाश्वत नैतिक कम्पास: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, "अल्लाह का भय" हमेशा मनुष्य को अनैतिकता और हिंसा से रोकने का सबसे बड़ा कारण बना रहेगा। 
- संघर्ष समाधान का मार्ग: भविष्य के संघर्षों (व्यक्तिगत, राष्ट्रीय, वैश्विक) के समाधान के लिए हाबील का दृष्टिकोण (सिद्धांत + अहिंसा + अल्लाह पर भरोसा) एक शाश्वत मॉडल प्रस्तुत करेगा। 
निष्कर्ष: यह आयत मानव इतिहास में नैतिक साहस का एक उज्ज्वल उदाहरण है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची जीत दूसरे को शारीरिक रूप से हराने में नहीं, बल्कि अपने निचले स्वभाव (गुस्सा, ईर्ष्या, हिंसा) पर विजय पाने में है। हाबील का "इन्नी अखाफुल्लाह" का वाक्य हर युग के मुसलमान के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जो उसे हर गलत कदम उठाने से पहले सोचने पर मजबूर करता है। यह संदेश आज के युग में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।