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कुरआन की आयत 5:34 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُوا عَلَيْهِمْ ۖ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 34)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • إِلَّا: सिवाय।

  • الَّذِينَ: जो लोग।

  • تَابُوا: तौबा कर ली (पश्चाताप किया)।

  • مِن قَبْلِ: पहले।

  • أَن: कि।

  • تَقْدِرُوا: तुम सक्षम हो जाओ।

  • عَلَيْهِمْ: उन पर (पकड़ने में)।

  • فَاعْلَمُوا: तो जान लो।

  • أَنَّ: कि।

  • اللَّهَ: अल्लाह।

  • غَفُورٌ: बड़ा क्षमा करने वाला है।

  • رَّحِيمٌ: बड़ा दयावान है।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"सिवाय उन लोगों के, जिन्होंने तौबा कर ली इससे पहले कि तुम उन पर काबू पा लो। तो जान लो कि अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (5:33) में बताए गए कठोर दंड के लिए एक महत्वपूर्ण अपवाद (Exception) और अल्लाह की असीम दया का दर्पण है। यह दर्शाती है कि इस्लाम में सज़ा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि सुधार का मौका देना भी है।

1. अपवाद की शर्त: "इल्लल्लज़ीना ताबू मिन कब्लि अन तक़दिरू अलैहिम"

  • यह रियायत (छूट) केवल उन्हीं अपराधियों के लिए है जो "ताबू" - यानी सच्चे मन से तौबा कर लेते हैं।

  • तौबा की समय सीमा: यह तौबा तब तक मान्य है "इससे पहले कि तुम उन पर काबू पा लो।"

    • इसका मतलब है कि जब तक राज्य की सत्ता उन्हें पकड़ने में सक्षम नहीं हुई है, उनके पास सुधरने का मौका है।

    • एक बार पकड़े जाने के बाद की गई तौबा, दंड से मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि आखिरत में माफी के लिए हो सकती है।

2. सच्ची तौबा क्या है?
सच्ची तौबा में तीन चीजें शामिल हैं:

  • अतीत के पापों पर पछतावा (अन-नदम): अपने किए पर सच्चा दुख और पश्चाताप।

  • तुरंत छोड़ देना (अल-इक़ला): उस पाप को तुरंत और पूरी तरह से छोड़ देना।

  • दृढ़ संकल्प (अज-ज़म): भविष्य में कभी उस पाप को न दोहराने का ठोस इरादा।

3. अल्लाह के गुणों की याद: "फअलमू अन्नल्लाहा गफूरुर रहीम"

  • आयत का अंत अल्लाह के दो गुणों के साथ होता है:

    • "गफूर" - बार-बार और बड़े से बड़े पापों को क्षमा करने वाला।

    • "रहीम" - अपने बंदों के प्रति अत्यंत दयालु।

  • यह हर मुसलमान को यह याद दिलाता है कि अल्लाह की दया उसके गुस्से पर भारी है। वह हर उस व्यक्ति को माफ करने को तैयार है जो सच्चे मन से लौटता है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. दरवाज़ा-ए-तौबा हमेशा खुला है: अल्लाह किसी भी पापी के लिए सुधार का दरवाजा कभी बंद नहीं करता, चाहे उसका पाप कितना भी बड़ा क्यों न हो।

  2. समय पर सुधार जरूरी है: सुधार के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है, लेकिन जितनी जल्दी तौबा की जाए, उतना ही बेहतर है। मौत या पकड़े जाने से पहले का समय सबसे कीमती है।

  3. न्याय और दया का संतुलन: इस्लामी कानून में न्याय के साथ-साथ दया और सुधार के लिए भी पूरा स्थान है।

  4. आशा का संदेश: यह आयत हर पापी के लिए आशा की किरण है। कोई भी व्यक्ति अल्लाह की दया से निराश नहीं होना चाहिए।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • अपराधियों के लिए मौका: प्रारंभिक इस्लामी राज्य में, यह आयत उन लोगों के लिए एक सुनहरा अवसर थी जो गलत रास्ते पर चलकर डाकू या विद्रोही बन गए थे। वह बिना किसी डर के वापस लौट सकते थे और समाज का एक जिम्मेदार सदस्य बन सकते थे।

  • समाज में सुधार: इसने कई लोगों को अपराध की दुनिया छोड़कर सही रास्ते पर आने के लिए प्रेरित किया।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • आतंकवादियों और अपराधियों के लिए सुधार कार्यक्रम: आज कई देशों में, आतंकवादियों और संगठित अपराधियों के पुनर्वास (Rehabilitation) के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यह आयत उन्हें एक धार्मिक और नैतिक आधार प्रदान करती है। यह संदेश दिया जा सकता है कि यदि वे सच्चे मन से आतंकवाद और अपराध छोड़ दें, तो उन्हें मुख्यधारा में वापस लिया जा सकता है।

  • व्यक्तिगत जीवन में तौबा: आज का इंसान पापों (झूठ, धोखा, गलत काम) में डूबा हुआ है। यह आयत हर उस व्यक्ति के लिए आशा का संदेश है जो अपने अतीत से डरता है। यह कहती है कि अल्लाह पर भरोसा रखो और सच्चे दिल से तौबा करो, वह माफ कर देगा।

  • न्यायिक सुधार: आधुनिक कानूनी प्रणालियों में भी "गुपचुप समर्पण" (Surrender) या "सहयोग" करने वाले अपराधियों को कम सजा का प्रावधान है। यह आयत इसी सिद्धांत की पुष्टि करती है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • साइबर अपराधियों के लिए मौका: भविष्य में, साइबर आतंकवाद और हैकिंग जैसे नए रूपों में "फसाद फिल अर्द" (धरती में बिगाड़) करने वालों के लिए भी, यदि वे राज्य के हाथ में आने से पहले ही अपना रास्ता बदल लें और क्षतिपूर्ति करें, तो उन्हें सुधार का मौका दिया जा सकता है।

  • एक शाश्वत आशा का स्रोत: जब तक दुनिया है, इंसान से गलतियाँ होती रहेंगी। यह आयत कयामत तक हर गुनहगार के लिए आशा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी। यह उसके लिए अल्लाह के दरवाजे पर दस्तक देने का साहस देगी।

  • मानवीयकरण की भावना: एक ऐसे भविष्य में जहाँ तकनीक और कानून और भी कठोर हो सकते हैं, यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि हर अपराधी के पीछे एक "इंसान" है जिसके सुधरने की संभावना है। न्याय के साथ दया और सुधार का सिद्धांत हमेशा प्रासंगिक रहेगा।

निष्कर्ष: यह आयत इस्लाम के संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है। यह एक ओर समाज की सुरक्षा के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती है, तो दूसरी ओर हर पापी के लिए "सुधार का द्वार" भी खुला रखती है। यह अल्लाह की असीम दया और उसके "गफूर" और "रहीम" होने का प्रमाण है। यह संदेश हर युग में मानवता के लिए सुधार, आशा और आध्यात्मिक शांति