﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ ۚ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُوا ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ ۚ مَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَٰكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ﴾
(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 6)
अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)
पहला भाग: वज़ू (वुदू) के अंग
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا: हे ईमान वालो!
إِذَا: जब।
قُمْتُمْ: तुम खड़े हो।
إِلَى الصَّلَاةِ: नमाज़ के लिए।
فَاغْسِلُوا: तो धो लो।
وُجُوهَكُمْ: अपने चेहरे।
وَأَيْدِيَكُمْ: और अपने हाथों को।
إِلَى الْمَرَافِقِ: कोहनियों समेत।
وَامْسَحُوا: और मल लो (पोंछ लो)।
بِرُءُوسِكُمْ: अपने सिरों पर।
وَأَرْجُلَكُمْ: और अपने पैरों को।
إِلَى الْكَعْبَيْنِ: टखनों समेत।
दूसरा भाग: गुस्ल (स्नान)
وَإِن كُنتُمْ: और यदि तुम हो।
جُنُبًا: जुनुबी (बड़ी अशुद्धि की हालत में)।
فَاطَّهَّرُوا: तो पूरी तरह शुद्ध हो जाओ (गुस्ल करो)।
तीसरा भाग: तयम्मुम (वैकल्पिक शुद्धि)
وَإِن كُنتُم: और यदि तुम हो।
مَّرْضَىٰ: बीमार।
أَوْ: या।
عَلَىٰ سَفَرٍ: सफर पर।
أَوْ: या।
جَاءَ أَحَدٌ مِّنكُم: तुम में से कोई आया हो।
مِّنَ الْغَائِطِ: शौच (टॉयलेट) से।
أَوْ: या।
لَامَسْتُمُ: तुमने छुआ हो।
النِّسَاءَ: औरतों को (स्त्री-पुरुष संबंध बनाए हों)।
فَلَمْ تَجِدُوا: तो यदि तुमने न पाया।
مَاءً: पानी।
فَتَيَمَّمُوا: तो तयम्मुम कर लो।
صَعِيدًا: मिट्टी (साफ जमीन) से।
طَيِّبًا: पाक (शुद्ध)।
فَامْسَحُوا: तो मल लो (पोंछ लो)।
بِوُجُوهِكُمْ: अपने चेहरों पर।
وَأَيْدِيكُم: और अपने हाथों पर।
مِّنْهُ: उस (मिट्टी) से।
चौथा भाग: सिद्धांत और उद्देश्य
مَا يُرِيدُ اللَّهُ: अल्लाह नहीं चाहता।
لِيَجْعَلَ: कि बना दे।
عَلَيْكُم: तुम पर।
مِّنْ حَرَجٍ: कोई तंगी (कठिनाई)।
وَلَٰكِن: बल्कि।
يُرِيدُ: वह चाहता है।
لِيُطَهِّرَكُمْ: ताकि तुम्हें पाक करे।
وَلِيُتِمَّ: और ताकि पूरी करे।
نِعْمَتَهُ: अपनी नेमत।
عَلَيْكُمْ: तुम पर।
لَعَلَّكُمْ: ताकि तुम।
تَشْكُرُونَ: शुक्रगुज़ारी करो।
पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)
"हे ईमान वालो! जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो अपने चेहरे धो लो और हाथ कोहनियों समेत धो लो, और अपने सिर का मसह (पोंछ) कर लो और पैर टखनों समेत (धो लो)। और यदि तुम जुनुबी (बड़ी नापाकी की हालत में) हो तो (गुस्ल करके) पाक हो जाओ। और यदि तुम बीमार हो या सफर पर हो या तुम में से कोई शौच (टॉयलेट) से आया हो या तुमने स्त्रियों को छुआ हो (स्त्री-पुरुष संबंध बनाए हों) और तुम्हें पानी न मिले तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो और उससे अपने चेहरे और हाथों पर मसह कर लो। अल्लाह तुम पर कोई तंगी (कठिनाई) नहीं चाहता, बल्कि वह तो चाहता है कि तुम्हें पाक करे और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दे, ताकि तुम शुक्र अदा करो।"
विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत इस्लाम में शुद्धता (तहारत) के नियमों की सबसे महत्वपूर्ण आयत है। यह तीन प्रकार की शुद्धि का वर्णन करती है:
1. वज़ू (छोटी शुद्धि - Wudu):
उद्देश्य: नमाज़ जैसी इबादतों के लिए शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार होना।
चरण:
चेहरा धोना: माथे के बालों के शुरुआत से लेकर ठोड़ी तक और एक कान से दूसरे कान तक।
हाथ धोना: उंगलियों की युक्तियों से लेकर कोहनियों समेत।
सिर का मसह करना: गीले हाथों से सिर के एक हिस्से पर पोंछना।
पैर धोना: टखनों समेत।
2. गुस्ल (बड़ी शुद्धि - Ghusl):
उद्देश्य: बड़ी अशुद्धि (जनाबत) के बाद पूर्ण रूप से शुद्ध होना। यह अवस्था यौन संबंध, स्वप्नदोष आदि के बाद आती है।
विधि: पूरे शरीर पर पानी बहाना, मुँह और नाक में पानी डालना ताकि कोई जगह सूखी न रहे।
3. तयम्मुम (वैकल्पिक शुद्धि - Tayammum):
उद्देश्य: जब पानी उपलब्ध न हो या उसके उपयोग से स्वास्थ्य को खतरा हो, तो शुद्धि प्राप्त करने का विकल्प।
शर्तें:
पानी का न मिलना या बीमारी/चोट के कारण उपयोग न कर सकना।
सफर की हालत में पानी की कमी होना।
विधि: साफ मिट्टी या धूल पर हाथ मारकर, उससे चेहरे और हाथों (कोहनियों समेत) पर मसह करना।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)
शुद्धता ईमान का हिस्सा है: इस्लाम में बाहरी सफाई को आंतरिक शुद्धता और ईमान से जोड़ा गया है। एक स्वच्छ शरीर एक पवित्र आत्मा का निवास स्थान है।
अनुशासन और व्यवस्था: वज़ू का तरीका एक निश्चित अनुशासन सिखाता है, जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी व्यवस्था लाता है।
सहजता और लचीलापन: तयम्मुम की अनुमति यह सिद्ध करती है कि इस्लाम एक कठोर धर्म नहीं है। यह मनुष्य की व्यावहारिक कठिनाइयों को समझता है और उनके लिए रास्ता प्रदान करता है।
ईश्वर की दया: आयत के अंत में स्पष्ट कहा गया है कि अल्लाह लोगों पर कठोरता नहीं चाहता, बल्कि उन्हें शुद्ध करना और अपनी नेमत पूरी करना चाहता है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):
सामाजिक क्रांति: 7वीं सदी के अरब में, यह आयत स्वच्छता की एक क्रांति लेकर आई। इसने एक अनुशासित और स्वच्छ समुदाय का निर्माण किया, जो उस समय की आम सामाजिक स्थितियों से बहुत आगे था।
आध्यात्मिक तैयारी: इसने मुसलमानों को नमाज़ जैसी इबादतों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने का एक मूर्त तरीका दिया।
2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):
वैज्ञानिक पुष्टि: आधुनिक विज्ञान ने वज़ू के स्वास्थ्य लाभों की पुष्टि की है। दिन में कई बार हाथ, मुँह, नाक और पैर धोने से कीटाणु दूर होते हैं, रक्त संचार बेहतर होता है और ताजगी मिलती है। यह एक व्यावहारिक स्वच्छता अभ्यास है।
मानसिक स्वास्थ्य: वज़ू एक ध्यान (मेडिटेशन) जैसी क्रिया है। यह तनाव कम करती है और मन को इबादत के लिए केंद्रित करती है।
यात्रा और आपात स्थिति: आज के यात्रा प्रधान युग में, तयम्मुम का प्रावधान एक वरदान है। हवाई अड्डों, अस्पतालों या पानी की कमी वाले इलाकों में मुसलमान इसका उपयोग कर सकते हैं।
3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):
जल संरक्षण: भविष्य में बढ़ते जल संकट के मद्देनजर, वज़ू में पानी की बर्बादी न करने का इस्लामी निर्देश और तयम्मुम का विकल्प और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा। यह टिकाऊ जीवन (Sustainable Living) का इस्लामी मॉडल प्रस्तुत करता है।
स्वच्छता का स्थायी मानक: चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाए, शारीरिक स्वच्छता के ये मूलभूत नियम सदैव प्रासंगिक रहेंगे। भविष्य की महामारियों से बचाव में भी यह अभ्यास सहायक सिद्ध हो सकता है।
आध्यात्मिक संतुलन: एक डिजिटल और भौतिकवादी भविष्य में, वज़ू एक ऐसी दैनिक क्रिया बनी रहेगी जो मनुष्य को उसके शरीर, उसकी स्वच्छता और उसके पालनहार से जोड़ती है, जिससे जीवन में आध्यात्मिक संतुलन बना रहता है।
निष्कर्ष: यह आयत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान का निर्देश नहीं है। यह स्वच्छता, अनुशासन, लचीलेपन और कृतज्ञता के सिद्धांतों पर आधारित एक संपूर्ण जीवनशैली का प्रतीक है। इसकी शिक्षाएँ मानवता के लिए हर युग में समान रूप से मूल्यवान और लाभकारी हैं।