यहाँ कुरआन की पहली आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 1) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 1:1 - "बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम" (بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ)
हिंदी अर्थ: "अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है।"
यह आयत पवित्र कुरआन की पहली आयत है और इसे "बिस्मिल्लाह" (Bismillah) के नाम से जाना जाता है। यह न केवल कुरआन की शुरुआत है, बल्कि हर सूरह (अध्याय) की शुरुआत (सूरह-ए-तौबा को छोड़कर) भी इसी से होती है। इस्लाम में यह अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण वाक्य है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
बि- (Bi-) : इसका अर्थ है "से", "के द्वारा" या "के साथ"। यह उपसर्ग (Preposition) किसी कार्य की शुरुआत को अल्लाह के नाम के साथ जोड़ता है।
इस्मि (Ismi) : इसका अर्थ है "नाम"। यह "इसम" शब्द से बना है।
अल्लाह (Allah) : यह ईश्वर का विशेष और व्यक्तिगत नाम है। यह केवल एक सर्वशक्तिमान, अद्वितीय ईश्वर (मोनोथिज़्म) के लिए प्रयोग होता है। यह नाम उसकी सभी दिव्य विशेषताओं को समेटे हुए है।
अर-रहमान (Ar-Rahman) : इसका अर्थ है "अत्यंत कृपाशील" या "परम दयालु"। यह अल्लाह का एक गुणसूचक नाम (Attribute) है।
इस दया का दायरा बहुत विशाल है, जो इस दुनिया में हर चीज़, चाहे वह मुसलमान हो या गैर-मुसलमान, ईमानदार हो या अविश्वासी, सबको समेटता है। हवा, पानी, रोज़ी, स्वास्थ्य आदि सब उसी की "रहमान" दया के प्रतीक हैं।
अर-रहीम (Ar-Raheem) : इसका अर्थ है "अपार दयावान" या "अत्यंत दया करने वाला"।
यह दया विशेष रूप से आखिरत (परलोक) में और इस दुनिया में केवल उन लोगों के लिए है जो ईमान लाते हैं और अच्छे कर्म करते हैं। यह एक स्थायी और चिरंतन दया है।
बि- (Bi-) : इसका अर्थ है "से", "के द्वारा" या "के साथ"। यह उपसर्ग (Preposition) किसी कार्य की शुरुआत को अल्लाह के नाम के साथ जोड़ता है।
इस्मि (Ismi) : इसका अर्थ है "नाम"। यह "इसम" शब्द से बना है।
अल्लाह (Allah) : यह ईश्वर का विशेष और व्यक्तिगत नाम है। यह केवल एक सर्वशक्तिमान, अद्वितीय ईश्वर (मोनोथिज़्म) के लिए प्रयोग होता है। यह नाम उसकी सभी दिव्य विशेषताओं को समेटे हुए है।
अर-रहमान (Ar-Rahman) : इसका अर्थ है "अत्यंत कृपाशील" या "परम दयालु"। यह अल्लाह का एक गुणसूचक नाम (Attribute) है।
इस दया का दायरा बहुत विशाल है, जो इस दुनिया में हर चीज़, चाहे वह मुसलमान हो या गैर-मुसलमान, ईमानदार हो या अविश्वासी, सबको समेटता है। हवा, पानी, रोज़ी, स्वास्थ्य आदि सब उसी की "रहमान" दया के प्रतीक हैं।
अर-रहीम (Ar-Raheem) : इसका अर्थ है "अपार दयावान" या "अत्यंत दया करने वाला"।
यह दया विशेष रूप से आखिरत (परलोक) में और इस दुनिया में केवल उन लोगों के लिए है जो ईमान लाते हैं और अच्छे कर्म करते हैं। यह एक स्थायी और चिरंतन दया है।
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
हर कार्य की शुरुआत अल्लाह के नाम से:
"बिस्मिल्लाह" बोलने का सीधा-सा अर्थ है कि मैं यह काम सिर्फ अपनी शक्ति से नहीं, बल्कि अल्लाह की दी हुई शक्ति और उसकी मदद से शुरू कर रहा/रही हूँ। यह अहंकार (Ego) को खत्म करता है और विनम्रता पैदा करता है।
अल्लाह के दो महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन:
रहमान (सार्वभौमिक दया): यह बताता है कि अल्लाह की दया सभी जीवों के लिए है। कोई भी उसकी दया से वंचित नहीं है। यह गुण मनुष्य के मन में अल्लाह के प्रति प्रेम और आशा पैदा करता है।
रहीम (विशेष दया): यह गुण मुसलमानों को यह याद दिलाता है कि सच्चे ईमान और अच्छे कर्मों के द्वारा ही वे अल्लाह की उस विशेष दया के हकदार बन सकते हैं, जो जन्नत (स्वर्ग) का रास्ता दिखाती है। यह गुण भय (खौफ) और आशा (रजा) के बीच संतुलन बनाता है।
ज्ञान का स्रोत:
कुरआन ज्ञान और मार्गदर्शन की किताब है। इसकी शुरुआत "बिस्मिल्लाह" से करके अल्लाह यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान और मार्गदर्शन केवल उसी के नाम से प्राप्त किया जा सकता है। बिना उसकी मदद के, कोई भी सच्ची समझ हासिल नहीं कर सकता।
आशीर्वाद और सुरक्षा:
मुसलमानों का मानना है कि कोई भी काम "बिस्मिल्लाह" कहकर शुरू किया जाए, तो उस काम में अल्लाह की विशेष बरकत (आशीर्वाद) होती है और वह काम शैतान के बुरे प्रभाव से सुरक्षित रहता है।
हर कार्य की शुरुआत अल्लाह के नाम से:
"बिस्मिल्लाह" बोलने का सीधा-सा अर्थ है कि मैं यह काम सिर्फ अपनी शक्ति से नहीं, बल्कि अल्लाह की दी हुई शक्ति और उसकी मदद से शुरू कर रहा/रही हूँ। यह अहंकार (Ego) को खत्म करता है और विनम्रता पैदा करता है।
अल्लाह के दो महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन:
रहमान (सार्वभौमिक दया): यह बताता है कि अल्लाह की दया सभी जीवों के लिए है। कोई भी उसकी दया से वंचित नहीं है। यह गुण मनुष्य के मन में अल्लाह के प्रति प्रेम और आशा पैदा करता है।
रहीम (विशेष दया): यह गुण मुसलमानों को यह याद दिलाता है कि सच्चे ईमान और अच्छे कर्मों के द्वारा ही वे अल्लाह की उस विशेष दया के हकदार बन सकते हैं, जो जन्नत (स्वर्ग) का रास्ता दिखाती है। यह गुण भय (खौफ) और आशा (रजा) के बीच संतुलन बनाता है।
ज्ञान का स्रोत:
कुरआन ज्ञान और मार्गदर्शन की किताब है। इसकी शुरुआत "बिस्मिल्लाह" से करके अल्लाह यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान और मार्गदर्शन केवल उसी के नाम से प्राप्त किया जा सकता है। बिना उसकी मदद के, कोई भी सच्ची समझ हासिल नहीं कर सकता।
आशीर्वाद और सुरक्षा:
मुसलमानों का मानना है कि कोई भी काम "बिस्मिल्लाह" कहकर शुरू किया जाए, तो उस काम में अल्लाह की विशेष बरकत (आशीर्वाद) होती है और वह काम शैतान के बुरे प्रभाव से सुरक्षित रहता है।
3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
एक मुसलमान अपने दैनिक जीवन के लगभग हर काम की शुरुआत "बिस्मिल्लाह" से करता है, जैसे:
खाना खाने से पहले
सफर पर निकलने से पहले
पढ़ाई शुरू करने से पहले
कोई नया प्रोजेक्ट या व्यवसाय शुरू करने से पहले
सोने और जागने के समय
इस तरह, यह आयत मनुष्य के पूरे जीवन को अल्लाह की याद और उसके सहारे से जोड़ देती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
"बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम" सिर्फ एक आयत नहीं है; यह इस्लामी जीवन-दर्शन की आधारशिला है। यह ईश्वर की सर्वोच्चता, उसकी सार्वभौमिक दया और विशेष कृपा का एक संपूर्ण दर्शन अपने भीतर समेटे हुए है। यह मनुष्य को हर पल यह एहसास दिलाता है कि उसका पालनहार अत्यंत दयालु और कृपाशील है, और उसे हर छोटे-बड़े काम में उसी का सहारा लेना चाहिए।
इस प्रकार, कुरआन की यह पहली आयत पूरी मानवजाति के लिए प्रेम, दया और मार्गदर्शन के सफर की एक सर्वोत्तम शुरुआत है।