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कुरआन 1:2 - "अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" (الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 2) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 1:2 - "अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" (الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ)

हिंदी अर्थ: "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है।"

यह आयत "बिस्मिल्लाह" के बाद सीधे तौर पर उस अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान करने के लिए कहती है, जिसका नाम लेकर हमने हर काम की शुरुआत की। यह एक व्यापक और गहन कथन है जो ईश्वर की सम्पूर्णता को दर्शाता है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • अल-हम्दु (Al-Hamdu) : "अल" (The) + "हम्द" (प्रशंसा)। इसका अर्थ है "सारी प्रशंसा", "पूर्ण प्रशंसा" या "हर तरह की तारीफ"। यह कोई आम प्रशंसा नहीं है, बल्कि हर उस प्रशंसा को समेटे हुए है जो किसी भी चीज़ के लिए की जा सकती है।

  • ली-ल्लाहि (Li-llahi) : "ली" का अर्थ है "के लिए" (For) और "अल्लाह" ईश्वर का नाम है। यानी, "अल्लाह के लिए"।

  • रब्बि (Rabbi) : इसका अर्थ है "पालनहार", "पोषण करने वाला", "पालन-पोषण करने वाला"। "रब्ब" का मूल अर्थ है वह सत्ता जो किसी चीज़ को एक के बाद एक अवस्थाओं से गुज़ारते हुए उसका पूर्ण विकास करे। यह सिर्फ पैदा करने वाला (ख़ालिक) ही नहीं, बल्कि पैदा करने के बाद पालन-पोषण करने वाला, जीवन देने वाला, मार्गदर्शन करने वाला और पूर्णता की ओर ले जाने वाला है।

  • आलमीन (Alameen) : इसका अर्थ है "सारे जहान" या "सारे ब्रह्मांड"। यह सिर्फ मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर किसी चीज़ को शामिल करता है - जिन्न, फ़रिश्ते, जानवर, पेड़-पौधे, ग्रह, तारे... यानी हर वह अस्तित्व जो अल्लाह के अलावा है।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

  1. प्रशंसा का एकमात्र अधिकारी (The Only One Worthy of Praise):

    • "अल-हम्दु लिल्लाह" एक सार्वभौमिक सत्य की घोषणा है। यह कहता है कि सृष्टि में जो कुछ भी अच्छा है, जितनी भी प्रशंसा, धन्यवाद और आभार किसी भी चीज़ के लिए व्यक्त किया जाता है, वह वास्तव में उसके मूल स्रोत यानी अल्लाह के लिए ही है। हम किसी डॉक्टर की प्रशंसा करते हैं, तो वह दरअसल अल्लाह द्वारा दी गई उसकी योग्यता की प्रशंसा है। हम किसी फूल की सुंदरता की तारीफ करते हैं, तो वह असल में उसके रचयिता की प्रशंसा है।

  2. पालनहार की अवधारणा (The Concept of Sustainer - 'Rabb'):

    • "रब्बुल आलमीन" शब्द अल्लाह के साथ हमारे रिश्ते को गहराई से परिभाषित करता है। अल्लाह सिर्फ एक दूर बैठा हुआ निर्माता नहीं है; वह हर पल हमारा और पूरे ब्रह्मांड का पालन-पोषण कर रहा है।

    • यह पोषण शारीरिक है (जैसे रोज़ी, पानी, हवा देना) और आध्यात्मिक भी है (जैसे पैगंबरों और किताबों के माध्यम से मार्गदर्शन भेजना)। वह हमें एक अवस्था से दूसरी अवस्था में ले जाता है और हमारे विकास के लिए सभी साधन उपलब्ध कराता है।

  3. सृष्टि की विशालता का बोध (Acknowledging the Vastness of Creation):

    • "आलमीन" (सारे जहानों) शब्द हमारी सोच को व्यापक बनाता है। यह बताता है कि हमारा पालनहार सिर्फ हम इंसानों या सिर्फ पृथ्वी का ही नहीं, बल्कि उन असंख्य ग्रहों, आकाशगंगाओं और जीव-जंतुओं का भी पालनहार है, जिनके बारे में हम जानते भी नहीं। इससे अल्लाह की महानता और सामर्थ्य का एहसास होता है।

  4. कृतज्ञता (Shukr - Gratitude) की भावना:

    • यह आयत मनुष्य के अंदर "शुक्र" यानी कृतज्ञता की भावना पैदा करती है। जब हमें एहसास होता है कि हमारा हर पल, हमारी हर सुविधा हमारे पालनहार की देन है, तो स्वाभाविक रूप से दिल में उसके प्रति आभार और प्रेम उमड़ने लगता है।

  5. प्रार्थना का आधार (Foundation of Prayer):

    • सूरह अल-फातिहा एक प्रार्थना है। इसकी शुरुआत अल्लाह की प्रशंसा और उसके गुणगान से होती है। यह सिखाता है कि अल्लाह से मांगने से पहले उसकी तारीफ और उसके प्रति कृतज्ञता ज़ाहिर करना ज़रूरी है। यह एक बच्चे के उस तरीके की तरह है जो पिता से कुछ मांगने से पहले उसकी अच्छाइयों को याद करता है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • आभार व्यक्त करना: एक मुसलमान हर छोटी-बड़ी नेमत (उपहार) मिलने पर "अलहम्दुलिल्लाह" (सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है) कहकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। चाहे खाना मिले, कोई मुसीबत टले या कोई छोटी सी खुशी मिले।

  • मुसीबत में धैर्य: यह आयत यह भी सिखाती है कि मुसीबत के समय भी "अलहम्दुलिल्लाह" कहा जाए, क्योंकि हालात चाहे जैसे भी हों, अल्लाह हमारा पालनहार है और वह हमें इससे भी निकालकर एक बेहतर स्थिति की ओर ले जा सकता है।

  • अहंकार को दूर करना: जब इंसान समझता है कि उसकी सारी उपलब्धियाँ और योग्यताएँ उसके पालनहार की देन हैं, तो उसके अंदर घमंड और अहंकार पैदा नहीं होता।


निष्कर्ष (Conclusion)

"अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" एक ऐसा कथन है जो मनुष्य के नज़रिए को बदल देता है। यह उसे दुनिया की हर चीज़ में अल्लाह की कृपा और पोषण देखना सिखाता है। यह आयत हमें एक ऐसे पालनहार से मिलाती है जो सर्वशक्तिमान होने के साथ-साथ अत्यंत ही देने वाला और मार्गदर्शक है। यह प्रशंसा और कृतज्ञता का वह द्वार खोलती है, जिससे गुजरकर इंसान अल्लाह के साथ एक गहरा और अर्थपूर्ण रिश्ता कायम करता है।