यहाँ कुरआन की तीसरी आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 3) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 1:3 - "अर-रहमानिर-रहीम" (الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ)
हिंदी अर्थ: "बड़ा कृपालु, अत्यंत दयावान।"
यह आयत पहली आयत "बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम" में आए अल्लाह के दो नामों - "अर-रहमान" और "अर-रहीम" - को दोहराती है। लेकिन यहाँ इसका संदर्भ और महत्व अलग और गहरा है।
आइए, इस आयत के विशेष संदर्भ और अर्थ को समझते हैं।
1. संदर्भ और स्थान (Context and Position)
इससे पहली आयत (1:2) में अल्लाह को "रब्बुल आलमीन" (सारे जहानों का पालनहार) बताया गया है। "रब" होने का गुण अक्सर शक्ति, प्रभुत्व, अनुशासन और प्रबंधन का एहसास कराता है।
आयत 1:3 में "अर-रहमानिर-रहीम" को विशेष रूप से यहाँ रखकर एक गहन सूचना दी गई है: हे इंसान! यह सर्वशक्तिमान प्रभु, यह पालनहार, कोई कठोर शासक नहीं है। वह तो अपनी शक्ति और प्रभुत्व में भी अत्यंत कृपालु और दयावान है। उसकी रबूबियत (पालनहार होने का गुण) उसकी रहमत (दया) से ओत-प्रोत है।
2. शब्दार्थ की पुनरावृत्ति और गहराई (Repetition and Depth of Meaning)
चूंकि ये शब्द पहली आयत में भी आए हैं, इसलिए इनके मूल अर्थ को फिर से समझ लेना जरूरी है:
अर-रहमान (Ar-Rahman): यह अल्लाह का विशेष नाम है जो केवल उसी के लिए प्रयोग होता है। इसका अर्थ है "परम कृपालु" या "असीम दया वाला"।
विशेषता: यह दया सार्वभौमिक (Universal) है। यह दुनिया में हर चीज़ पर व्याप्त है - चाहे वह मोमिन हो या काफिर, अच्छा हो या बुरा। सूरज की रोशनी, हवा, बारिश, स्वास्थ्य, रोज़ी - यह सब "अर-रहमान" की दया के प्रतीक हैं। यह दया हर किसी को बिना भेदभाव के मिलती है।
अर-रहीम (Ar-Raheem): इसका अर्थ है "अत्यंत दयावान" या "सदैव दया करने वाला"।
विशेषता: यह दया विशिष्ट (Specific) और स्थायी (Everlasting) है। इसका पूर्ण प्रकटीकरण आखिरत (परलोक) में होगा और यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो ईमान लाते हैं और अच्छे कर्म करते हैं। यह अल्लाह की वह दया है जो इंसान को सीधा रास्ता दिखाती है और उसके गुनाहों को माफ करके उसे जन्नत में दाखिल करती है।
3. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
शक्ति और दया का संतुलन (Balance of Power and Mercy):
आयत 2 ("रब्बुल आलमीन") में प्रभुत्व और शक्ति का एहसास होता है, जिससे इंसान के मन में एक स्वाभाविक भय (खौफ) पैदा हो सकता है। आयत 3 ("अर-रहमानिर-रहीम") तुरंत उस भय को दूर करके आशा (रजा) और प्रेम का भाव भरती है। यह सिखाता है कि हमारा पालनहार जितना शक्तिशाली है, उससे कहीं ज्यादा दयालु है।
मार्गदर्शन की प्रकृति (The Nature of Guidance):
सूरह अल-फातिहा एक प्रार्थना है जिसमें हम अल्लाह से सीधा रास्ता मांगते हैं। इस आयत के जरिए हमें यह याद दिलाया जाता है कि यह मार्गदर्शन देना अल्लाह की दया का ही एक हिस्सा है। वह हमें गुमराह होने के लिए छोड़ना नहीं चाहता, बल्कि अपनी दया से हमें सही रास्ता दिखाना चाहता है।
आशा का संचार (Instillation of Hope):
कोई भी इंसान पापों और गलतियों से मुक्त नहीं है। अगर सिर्फ "रब" के गुण को ही देखा जाए, तो इंसान अपने पापों के कारण हमेशा डरता रहे। लेकिन "रहमान" और "रहीम" के गुण उसे यह आशा देते हैं कि अल्लाह उसकी गलतियों को माफ कर सकता है और उस पर दया कर सकता है, बशर्ते वह तौबा (पश्चाताप) करे।
दोहराव का महत्व (Significance of Repetition):
कुरआन में किसी बात का दोहराव हमेशा एक नए अर्थ या जोर देने के लिए होता है। पहली आयत में "बिस्मिल्लाह" के साथ इन नामों का प्रयोग काम की शुरुआत को पवित्र और अल्लाह के नाम से जोड़ने के लिए है। जबकि आयत 3 में इन्हें अलग से लाकर "रब" के गुण के ठीक बाद यह स्पष्ट किया गया है कि इस प्रभु की सबसे बड़ी पहचान उसकी दया है।
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
अल्लाह के प्रति विश्वास: यह आयत एक मुसलमान के दिल में अल्लाह के प्रति पूर्ण विश्वास और प्रेम पैदा करती है। वह जानता है कि चाहे उसके हालात कितने भी खराब क्यों न हों, उसका रब दयालु है और उसे निराश नहीं छोड़ेगा।
दूसरों के साथ व्यवहार: अगर अल्लाह इतना दयालु है कि उसकी दया गैर-मुसलमानों को भी मिल रही है, तो एक इंसान होने के नाते हमें भी दूसरों के साथ दया और करुणा का व्यवहार करना चाहिए। यह आयत हमें सहनशीलता और माफी सिखाती है।