Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 1:4 - "मालिकि यौमिद्दीन" (مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ)

 यहाँ कुरआन की चौथी आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 4) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 1:4 - "मालिकि यौमिद्दीन" (مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ)

हिंदी अर्थ: "बदले के दिन (प्रलय/न्याय के दिन) का मालिक है।"

यह आयत सूरह अल-फातिहा के केंद्रीय विषय को और गहराई प्रदान करती है। इस आयत में अल्लाह के एक और महत्वपूर्ण गुण का वर्णन किया गया है - "प्रलय के दिन का मालिक होना"। यह आयत मनुष्य के जीवन को एक उद्देश्य और जिम्मेदारी की भावना प्रदान करती है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • मालिकि (Maliki): इसका अर्थ है "मालिक", "स्वामी", "शासक" या "बादशाह"। यह शब्द "मुल्क" (साम्राज्य/राज्य) से बना है। इस शब्द में पूर्ण अधिकार, स्वामित्व और शासन की भावना निहित है।

    • एक महत्वपूर्ण बात: कुरआन की कुछ प्रतियों में "मालिक" (मालिक) के बजाय "मलिक" (मलिक) पढ़ा जाता है, जिसका अर्थ "राजा" होता है। दोनों ही पाठ सही और प्रामाणिक हैं। "मालिक" में स्वामित्व पर जोर है, जबकि "मलिक" में शासन और आदेश की शक्ति पर जोर है। दोनों ही अर्थ इस आयत के संदेश को पूर्णता प्रदान करते हैं।

  • यौमि (Yawmi): इसका अर्थ है "दिन का"

  • द्दीन (Ad-Deen): यह एक बहुत ही व्यापक अर्थ वाला शब्द है। इसके तीन प्रमुख अर्थ हैं:

    1. बदला या प्रतिफल (Recompense): हर अच्छे-बुरे कर्म का हिसाब-किताब और उसका पूर्ण प्रतिफल।

    2. न्याय (Judgment): उस दिन पूर्ण न्याय स्थापित किया जाएगा।

    3. धर्म (Religion): यहाँ इसका अर्थ उस पूर्ण व्यवस्था से है जिसके अनुसार उस दिन हर किसी के साथ व्यवहार किया जाएगा।

अतः "यौमिद्दीन" (Yawmid-Deen) का समग्र अर्थ हुआ: "उस दिन का जब हर कर्म का पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा, न्याय का दिन, या प्रतिफल का दिन।" आम तौर पर इसे "प्रलय का दिन" या "क़यामत का दिन" कहा जाता है।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

  1. जीवन की जिम्मेदारी का बोध (Awareness of Accountability):

    • यह आयत मनुष्य के मन में यह भाव पैदा करती है कि उसे अपने हर कर्म का हिसाब देना है। यह दुनिया कोई मनमर्जी करने की जगह नहीं, बल्कि एक परीक्षा स्थल है। यह एहसास इंसान को गलत कामों, पापों और अत्याचारों से रोकता है और अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करता है।

  2. पूर्ण न्याय का आश्वासन (Assurance of Complete Justice):

    • इस दुनिया में अक्सर न्याय नहीं हो पाता। बुरे लोग फलते-फूलते दिखाई देते हैं और अच्छे लोग कष्ट उठाते हैं। यह आयत इस बात की पुष्टि करती है कि एक ऐसा दिन आएगा जहाँ एक सुई के बराबर भी अच्छाई या बुराई बाकी नहीं रहेगी। हर किसी को उसके कर्मों का पूरा-पूरा बदला मिलेगा। यह विश्वास ही मनुष्य को दुनिया की असमानताओं और कठिनाइयों के बीच भी ईमान और नेकी पर डटे रहने की ताकत देता है।

  3. अल्लाह की पूर्ण सत्ता (Allah's Absolute Authority):

    • "मालिकि यौमिद्दीन" कहकर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उस दिन किसी की कोई सुनवाई नहीं होगी। न कोई सिफारिश चलेगी और न कोई रिश्वत। फैसला पूरी तरह से अल्लाह के हाथ में होगा। वही एकमात्र शासक और मालिक होगा। यह अवधारणा तौहीद (एकेश्वरवाद) को पूर्ण रूप से स्थापित करती है।

  4. पिछली आयतों से संबंध (Connection with Previous Verses):

    • इस आयत को पिछली आयतों के संदर्भ में देखना बहुत महत्वपूर्ण है:

      • आयत 2: अल्लाह रब्बुल आलमीन है (हमारा पालनहार) - यह हमारे जीवन के विकास और पोषण से संबंधित है।

      • आयत 3: अल्लाह अर-रहमानिर-रहीम है (अत्यंत दयालु) - यह हमें आशा देता है।

      • आयत 4: अल्लाह मालिकि यौमिद्दीन है (न्याय का मालिक) - यह हमें जिम्मेदारी और भय (खौफ) का एहसास कराता है।

    इस तरह, सिर्फ तीन आयतों में एक मुसलमान का अल्लाह के प्रति पूरा नज़रिया स्पष्ट हो जाता है: वह हमारा पालनहार है, वह अत्यंत दयालु है, और वह न्याय का अंतिम स्वामी है। इससे इंसान के अंदर भय और आशा का सही संतुलन (Khauf wa Raja) पैदा होता है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • नैतिक मार्गदर्शन (Moral Compass): यह आयत एक मुसलमान के लिए एक मजबूत नैतिक मार्गदर्शक का काम करती है। वह हर काम करने से पहले सोचता है कि उसे इसका हिसाब क़यामत के दिन देना है।

  • कठिनाइयों में धैर्य (Patience in Hardships): जब कोई ईमान वाला व्यक्ति दुनिया में अत्याचार या मुसीबत देखता है, तो यह आयत उसे धैर्य रखने की प्रेरणा देती है क्योंकि उसे पता है कि अंतिम न्याय अल्लाह के हाथ में है।

  • छोटे-बड़े कर्मों का महत्व (Value of Small Deeds): इस आयत का विश्वास इंसान को छोटे-से-छोटे अच्छे काम को महत्वपूर्ण और बुरे काम को खतरनाक बताता है, क्योंकि हर चीज़ का लेखा-जोखा होगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

"मालिकि यौमिद्दीन" सूरह अल-फातिहा का वह आधार है जो मनुष्य के जीवन को एक उद्देश्य और एक अंतिम लक्ष्य प्रदान करता है। यह आयत इस बात की पुष्टि करती है कि मानव जीवन केवल यहीं तक सीमित नहीं है। इस दुनिया के बाद एक ऐसा जीवन है जो स्थायी है, और वहाँ पूर्ण न्याय होगा। यह अवधारणा ही इंसान को सच्चाई, न्याय और ईमानदारी के मार्ग पर चलने की अटूट प्रेरणा देती है।