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कुरआन 1:5 - "इय्याका नबुदु व इय्याका नस्ताईन" (إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ)

 यहाँ कुरआन की पाँचवीं आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 5) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 1:5 - "इय्याका नबुदु व इय्याका नस्ताईन" (إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ)

हिंदी अर्थ: "हम केवल तुझी की इबादत (उपासना) करते हैं और केवल तुझी से मदद चाहते हैं।"

यह आयत सूरह अल-फातिहा का केंद्रीय हृदय (Heart) और आधारशिला है। पहली चार आयतों में अल्लाह के गुणों और महत्व का वर्णन करने के बाद, यह आयत सीधे तौर पर अल्लाह को संबोधित करते हुए बंदे (इंसान) की ओर से एक दृढ़ प्रतिज्ञा और विनती प्रस्तुत करती है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • इय्याका (Iyyaka): यह अरबी व्याकरण का एक विशेष रूप है। "इय्या" का अर्थ है "को" और "का" एक विशेषण (Suffix) है जो "तुझ" को दर्शाता है। इस प्रकार, "इय्याका" का शाब्दिक अर्थ है "केवल तुझको ही"। अरबी में इस शब्द-क्रम को सामने लाने का मकसद किसी बात पर पूर्ण और एकमात्र जोर देना होता है।

  • नबुदु (Na'budu): इसका अर्थ है "हम इबादत करते हैं"। यह "इबादत" शब्द से बना है। इबादत का मतलब सिर्फ नमाज़, रोज़ा या रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है। इसका दायरा बहुत व्यापक है। इबादत का अर्थ है पूर्ण आज्ञाकारिता, समर्पण और उपासना। जीवन के हर पहलू में अल्लाह के आदेशों का पालन करना ही असली इबादत है।

  • व (Wa): इसका सरल अर्थ है "और"

  • नस्ताईन (Nasta'een): इसका अर्थ है "हम मदद चाहते हैं" या "हम सहायता माँगते हैं"। यह "इस्तिआना" (मदद माँगना) शब्द से बना है।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

  1. एकेश्वरवाद (तौहीद) की घोषणा (Declaration of Monotheism - Tawheed):

    • "इय्याका नबुदु" (केवल तुझी की इबादत करते हैं) इस्लाम के मूल सिद्धांत तौहीद की सबसे स्पष्ट और संक्षिप्त घोषणा है। यह हर प्रकार के शिर्क (अल्लाह के साथ किसी और को भागीदार ठहराने) से इनकार है। इसमें मूर्ति-पूजा, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, ताबीज-गंडे और किसी भी सृजित चीज़ की पूजा या उससे डरने का स्पष्ट रूप से इनकार है। यह कहता है कि हमारी आराधना, प्रेम, डर और आशा का एकमात्र केंद्र केवल अल्लाह है।

  2. व्यापक इबादत की अवधारणा (Concept of Comprehensive Worship):

    • जैसा कि बताया गया, "नबुदु" सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। एक मुसलमान की नमाज़, दान, हज भी इबादत है, और ईमानदारी से काम करना, पड़ोसी के हक़ अदा करना, माता-पिता की सेवा करना, और यहाँ तक कि अच्छे इरादे से खाना-पीना भी इबादत बन जाता है। "इय्याका नबुदु" का मतलब है कि हम अपना पूरा जीवन केवल तेरे लिए और तेरे बताए हुए तरीके से जीते हैं।

  3. मानवीय कमजोरी की स्वीकारोक्ति (Admission of Human Weakness):

    • "व इय्याका नस्ताईन" (और केवल तुझी से मदद चाहते हैं) इंसान की अपनी कमजोरी और अल्लाह पर निर्भरता (तवक्कुल) को स्वीकार करता है। यह घोषणा करता है कि हम न केवल इबादत करने में, बल्कि इबादत कर पाने की ताकत पैदा करने में भी केवल अल्लाह से मदद माँगते हैं। चाहे कोई छोटा काम हो या बड़ा, हम अपनी शक्ति, योग्यता और सफलता को अल्लाह की मदद का नतीजा मानते हैं।

  4. इबादत और मदद का अटूट रिश्ता (Inseparable Link between Worship and Help):

    • इस आयत में "इबादत" और "मदद माँगने" को "और" से जोड़ा गया है। इसका बहुत सूक्ष्म अर्थ है: "हे अल्लाह! हम केवल तेरी ही इबादत करने का प्रण लेते हैं, लेकिन हम यह प्रण पूरा तभी कर सकते हैं जब तू हमें इसकी ताकत दे।" यानी, सच्ची इबादत भी अल्लाह की मदद के बिना संभव नहीं है।

  5. सामूहिक पहचान (Collective Identity):

    • ध्यान देने योग्य बात है कि इस आयत में "मैं" (अनअबुदु) नहीं, बल्कि "हम" (नबुदु, नस्ताईन) का प्रयोग किया गया है। यह इस्लाम की समुदायिक भावना (उम्माह) को दर्शाता है। यह बताता है कि एक मुसलमान अकेला नहीं है, बल्कि वह पूरी मुस्लिम समुदाय की ओर से बात कर रहा है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • प्रार्थना का केंद्र: हर रोज़ की पाँचों वक्त की नमाज़ में एक मुसलमान यह आयत कम से कम 17 बार दोहराता है। इस तरह, वह दिन में कई बार अपने आप को यह याद दिलाता है कि उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य अल्लाह की इबादत है और उसे हर काम में अल्लाह से ही मदद माँगनी है।

  • अहंकार का नाश: "इय्याका नस्ताईन" का भाव इंसान के अंदर के अहंकार (घमंड) को खत्म कर देता है। वह जानता है कि उसकी सफलताएँ केवल अल्लाह की मदद से हैं, इसलिए उसे घमंड नहीं होता।

  • हर काम की शुरुआत: एक मुसलमान को सिखाया जाता है कि वह हर छोटे-बड़े काम की शुरुआत अल्लाह के नाम (बिस्मिल्लाह) से करे और उसमें सफलता के लिए अल्लाह से मदद माँगे। यह आयत उसी सिद्धांत को मजबूती प्रदान करती है।


निष्कर्ष (Conclusion)

"इय्याका नबुदु व इय्याका नस्ताईन" केवल एक आयत नहीं, बल्कि एक मुसलमान के जीवन का लक्ष्य और उसकी दैनिक प्रार्थना का सार है। यह आयत अल्लाह और बंदे के बीच के रिश्ते को पूरी तरह से परिभाषित कर देती है। यह रिश्ता पूर्ण समर्पण (इबादत) और पूर्ण निर्भरता (इस्तिआना) का है। यह वह कुंजी है जो मनुष्य को दुनिया की गुलामी से मुक्त कराकर केवल एक अल्लाह की गुलामी (उपासना) में लगा देती है, जो असली आज़ादी है।