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कुरआन 1:6 - "इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम" (اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ)

 यहाँ कुरआन की छठवीं आयत (सूरह अल-फातिहा, आयत 6) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 1:6 - "इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम" (اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ)

हिंदी अर्थ: "हमें सीधा मार्ग दिखा।"

यह आयत सूरह अल-फातिहा के दूसरे भाग की शुरुआत है। पहले पाँच आयतों में अल्लाह की प्रशंसा और उसके प्रति समर्पण व्यक्त किया गया था। अब यहाँ से बंदा सीधे तौर पर अपलाह से एक गहरी और संपूर्ण प्रार्थना करता है। यह सूरह का वह हिस्सा है जहाँ इंसान अपनी कमजोरी और मार्गदर्शन की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए अल्लाह से दुआ माँगता है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • इह्दिना (Ihdina): यह दो शब्दों से मिलकर बना है: "इह्दी" (मार्गदर्शन करो) और "ना" (हमें)। इस प्रकार, इसका अर्थ है "हमें मार्गदर्शन करो", "हमें सही रास्ता दिखाओ"।

    • अरबी भाषा में "हिदायत" (मार्गदर्शन) के कई स्तर हैं:

      1. जानकारी देना: सही रास्ते की सैद्धांतिक जानकारी देना।

      2. समझाना: उस रास्ते को समझने की ताकत देना।

      3. चलने की ताकत देना: सिर्फ रास्ता दिखाना ही नहीं, बल्कि उस पर चलने की शक्ति और स्थिरता प्रदान करना।

  • अस्सिरात (As-Siraat): इसका अर्थ है "मार्ग", "रास्ता" या "बड़ी सड़क"।

    • यह शब्द एक ऐसे व्यापक और स्पष्ट मार्ग को दर्शाता है जिसके किनारे हैं और जो सीधे लक्ष्य तक पहुँचाता है।

  • अल-मुस्तक़ीम (Al-Mustaqeem): इसका अर्थ है "सीधा", "सरल", "स्थिर", "निष्पक्ष"।

    • यह वह मार्ग है जिसमें कोई टेढ़ापन, कोई मोड़ या कोई अंधेरा नहीं है। यह सीधा सत्य और ईमान की ओर ले जाता है।

अतः "अस्सिरातल मुस्तक़ीम" (As-Sirat al-Mustaqeem) का समग्र अर्थ हुआ: "सीधा और सही मार्ग।"


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

  1. मार्गदर्शन की सर्वव्यापकता (The Comprehensiveness of Guidance):

    • "इह्दिना" शब्द से यह प्रार्थना सिर्फ बौद्धिक ज्ञान तक सीमित नहीं है। यह एक संपूर्ण मार्गदर्शन की माँग है - ज्ञान का मार्गदर्शन, उस ज्ञान पर अमल करने की ताकत का मार्गदर्शन, और उस पर टिके रहने की स्थिरता का मार्गदर्शन। यह दुआ है, "हे अल्लाह! हमें केवल किताबी ज्ञान ही न देना, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारने की शक्ति भी देना।"

  2. सामूहिकता की भावना (The Sense of Collectivity):

    • फिर से "हमें" (ना) शब्द का प्रयोग किया गया है। एक मुसलमान सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए मार्गदर्शन की दुआ माँगता है। यह इस्लाम की एकता और भाईचारे की भावना को दर्शाता है।

  3. मनुष्य की आवश्यकता की स्वीकारोक्ति (Admission of Human Need):

    • यह आयत मनुष्य की इस मौलिक आवश्यकता को स्वीकार करती है कि बिना अल्लाह के मार्गदर्शन के वह हमेशा भटकाव और गुमराही का शिकार रहेगा। यह गर्व और अहंकार को तोड़ती है और विनम्रता सिखाती है।

  4. एक स्पष्ट और सुगम मार्ग (A Clear and Accessible Path):

    • "अस्सिरातल मुस्तक़ीम" से स्पष्ट है कि अल्लाह का दिया हुआ धर्म कोई उलझा हुआ, रहस्यमय या दुर्गम रास्ता नहीं है। यह एक स्पष्ट, सीधा और हर इंसान के लिए सुगम मार्ग है, जिस पर चलना संभव है।

  5. पिछली आयतों से तार्किक कड़ी (Logical Connection with Previous Verses):

    • यह आयत पिछली आयत "इय्याका नस्ताईन" (केवल तुझी से मदद चाहते हैं) का सीधा और तार्किक परिणाम है। इंसान कहता है: 'हे अल्लाह! मैं केवल तुझसे मदद माँगता हूँ,' और फिर तुरंत यह स्पष्ट करता है कि उस मदद की पहली और सबसे महत्वपूर्ण माँग क्या है: 'हमें सीधा मार्ग दिखा।' यह बताता है कि जीवन की सबसे बड़ी सहायता और सफलता ही "हिदायत" (मार्गदर्शन) है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • हर नमाज़ में दोहराव: एक मुसलमान दिन में कम से कम 17 बार अल्लाह से यह प्रार्थना करता है। इसका मतलब है कि वह लगातार अपने आप को यह याद दिलाता रहता है कि उसे सही रास्ते की जरूरत है और वह उस पर डटा रहे।

  • निर्णय लेते समय: जब कोई मुसलमान किसी मुश्किल या निर्णय के समय होता है, तो वह इस दुआ को दोहराता है, ताकि अल्लाह उसे सही फैसला करने की तौफीक (सामर्थ्य) दे।

  • भटकाव से बचाव: यह दुआ इंसान को हर प्रकार की गुमराही - चाहे वह शैतान की तरफ से हो, अपनी नफ्स (इच्छाओं) की तरफ से हो या दुनिया की तरफ से हो - से बचाती है।


निष्कर्ष (Conclusion)

"इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम" एक मुसलमान के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण प्रार्थना है। यह उसकी आध्यात्मिक, नैतिक और व्यावहारिक ज़रूरतों को एक साथ पूरा करती है। यह आयत सिखाती है कि सच्ची सफलता धन, पद या प्रसिद्धि में नहीं, बल्कि अल्लाह के सीधे मार्ग पर चलने में है। यह एक ऐसी दुआ है जो इंसान को हमेशा जागरूक, विनम्र और अल्लाह की ओर उन्मुख बनाए रखती है। अगली आयत (आयत 7) में इसी "सीधे मार्ग" की विस्तृत व्याख्या की गई है कि वह कैसा मार्ग है।