१. पूरी आयत अरबी में:
وَلَمَّا جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِّنْ عِندِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ نَبَذَ فَرِيقٌ مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ كِتَابَ اللَّهِ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ كَأَنَّهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَلَمَّا: और जब।
جَاءَهُمْ: उनके पास आया।
رَسُولٌ: एक पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)।
مِّنْ عِندِ اللَّهِ: अल्लाह की तरफ से।
مُصَدِّقٌ: पुष्टि करने वाला।
لِّمَا: उस (चीज़) की।
مَعَهُمْ: उनके पास है।
نَبَذَ: फेंक दिया।
فَرِيقٌ: एक समूह।
مِّنَ: में से।
الَّذِينَ أُوتُوا: जिन्हें दी गई।
الْكِتَابَ: किताब (तौरात)।
كِتَابَ اللَّهِ: अल्लाह की किताब (तौरात) को।
وَرَاءَ: पीछे।
ظُهُورِهِمْ: उनकी पीठों के।
كَأَنَّهُمْ: मानो वे।
لَا يَعْلَمُونَ: नहीं जानते।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और जब उन (अहले-किताब) के पास अल्लाह की तरफ से एक पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आया, जो उस (तौरात) की पुष्टि करने वाला था जो उनके पास (पहले से) था, तो उन लोगों में से जिन्हें किताब दी गई थी, एक समूह ने अल्लाह की किताब (तौरात) को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया, मानो वे कुछ जानते ही नहीं हैं।"
गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल की उस सबसे बड़ी विडंबना (Irony) और कृतघ्नता का वर्णन करती है, जब अंतिम सत्य उनके सामने प्रकट हो गया।
1. सत्य का आगमन:
आयत उस ऐतिहासिक क्षण का वर्णन करती है जब पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का मदीना में आगमन हुआ।
आप अल्लाह के भेजे हुए थे और आपका संदेश (क़ुरआन) उनकी अपनी किताब "तौरात" की पुष्टि करने वाला था। यानी क़ुरआन वही सिखा रहा था जो तौरात का मूल सिद्धांत था - एकेश्वरवाद, नबुव्वत और आखिरत।
2. अविश्वसनीय प्रतिक्रिया:
इस स्पष्ट सत्य के आने पर, अहले-किताब (यहूदियों) के एक समूह ने जो प्रतिक्रिया दी, वह अत्यंत निंदनीय थी।
उन्होंने "अल्लाह की किताब (तौरात) को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया।"
यह एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है:
उन्होंने तौरात में लिखी गई भविष्यवाणियों और आदेशों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
उन्होंने जानबूझकर उस ज्ञान को त्याग दिया जो उनके पास था।
उनका व्यवहार ऐसा था मानो उन्हें तौरात का कोई ज्ञान ही नहीं है।
3. ढोंग और अज्ञानता का नाटक:
आयत के अंत में कहा गया है: "मानो वे कुछ जानते ही नहीं हैं।"
यह एक व्यंग्य है। वास्तव में वे अच्छी तरह जानते थे कि तौरात में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की भविष्यवाणी थी। लेकिन ईर्ष्या और जातीय अहंकार के कारण उन्होंने अज्ञानी बनने का नाटक किया।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
ज्ञान की जिम्मेदारी: ज्ञान रखने वालों की जिम्मेदारी और अधिक है। अगर वे सत्य को जानते हुए भी उसका इनकार करें, तो उनकी स्थिति सबसे खराब है।
अहंकार सत्य का दुश्मन: जातीय गर्व और धार्मिक अहंकार इंसान को स्पष्ट सत्य को स्वीकार करने से रोक सकता है।
कर्म और ज्ञान में एकता: ज्ञान तभी सार्थक है जब उस पर अमल किया जाए। सिर्फ किताबों का ज्ञान रखना और उसके विपरीत आचरण करना सबसे बड़ा धोखा है।
सत्य को स्वीकार करो: सत्य को उसके स्रोत के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी सच्चाई के आधार पर स्वीकार करना चाहिए।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत मदीना के यहूदियों के उस व्यवहार का सटीक वर्णन है, जिन्होंने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पहचानने के बावजूद अहंकारवश ईमान नहीं लाया।
यह ईसाइयों पर भी लागू होती है जो इंजील में वर्णित पैगंबर के गुणों को जानते हुए भी उन्हें स्वीकार नहीं करते।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
आधुनिक अहले-किताब: आज के ईसाई और यहूदी, जो अपनी किताबों में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की भविष्यवाणियों के बारे में जानते हैं, फिर भी ईमान नहीं लाते, वे इसी आयत के दायरे में आते हैं।
मुसलमानों में गैर-जिम्मेदार विद्वान: कुछ मुस्लिम विद्वान (उलेमा) ऐसे हैं जो क़ुरआन और हदीस का ज्ञान तो रखते हैं लेकिन उसके अनुसार अमल नहीं करते या उसे छुपाते हैं। वे भी "किताब को पीठ पीछे फेंकने" वालों जैसे हैं।
बौद्धिक अहंकार: आज का बुद्धिजीवी वर्ग भी अक्सर धार्मिक सत्य को "अंधविश्वास" कहकर ठुकरा देता है, मानो उसने कभी उसका गहन अध्ययन किया ही नहीं। यह आधुनिक "कअन्नहुम ला यअलमून" (मानो वे जानते ही नहीं) है।
चुनिन्दा इस्लाम: कुछ मुसलमान क़ुरआन की उन आयतों को मानते हैं जो उनके हित में हों और जो उनके हित में न हों, उन्हें "नज़रअंदाज़" कर देते हैं। यह भी एक प्रकार से किताब को पीठ पीछे फेंकना है।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
शाश्वत चेतावनी: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक चेतावनी है कि जो लोग सत्य को जानते हुए भी उससे मुंह मोड़ेंगे, उनकी निंदा की जाएगी।
ज्ञानियों की जिम्मेदारी: भविष्य के विद्वानों और धर्मगुरुओं के लिए यह आयत एक जिम्मेदारी तय करती है कि उन्हें सत्य का प्रचार करना चाहिए, न कि उसे छुपाना चाहिए।
सत्य की खोज: यह आयत भविष्य के सत्य-साधकों को प्रेरित करेगी कि वे अपने पूर्वाग्रहों और अहंकार को छोड़कर सत्य को स्वीकार करें।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "जानबूझकर अज्ञान बनने" और "सत्य को ठुकराने" की मानसिकता का भंडाफोड़ करती है। यह सिखाती है कि सच्चा ज्ञानी वह है जो ज्ञान के अनुसार कार्य करता है, न कि उसे अपनी इच्छाओं के अनुसार तोड़ता-मरोड़ता है। यह अतीत की एक गलती का विवरण, वर्तमान के लिए एक कठोर सबक और भविष्य के लिए एक स्थायी चेतावनी है।