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क़ुरआन 2:100 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरी आयत अरबी में:

أَوَكُلَّمَا عَاهَدُوا عَهْدًا نَّبَذَهُ فَرِيقٌ مِّنْهُم ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • أَوَكُلَّمَا: क्या हर बार जब?

  • عَاهَدُوا: उन्होंने वचन दिया / एक अनुबंध किया।

  • عَهْدًا: एक वचन / प्रतिज्ञा।

  • نَّبَذَهُ: उसे फेंक दिया / तोड़ दिया।

  • فَرِيقٌ: एक समूह।

  • مِّنْهُم: उनमें से।

  • بَلْ: बल्कि (वास्तविकता यह है)।

  • أَكْثَرُهُمْ: उनमें से अधिकांश।

  • لَا يُؤْمِنُونَ: ईमान नहीं रखते।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "क्या (यही उनकी आदत है कि) हर बार जब उन्होंने कोई वचन दिया, तो उनमें से एक समूह ने उसे फेंक दिया? बल्कि (सच तो यह है कि) उनमें से अधिकांश ईमान ही नहीं रखते।"

गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल (यहूदियों) के चरित्र की एक मौलिक कमजोरी की ओर इशारा करती है - "उनकी वचनभंगता की आदत।" यह पिछली कई आयतों में वर्णित उनके व्यवहार का सारांश प्रस्तुत करती है।

1. एक दोहराव वाली बुराई (एक पैटर्न ऑफ बिहेवियर):

  • आयत एक निराशाजनक प्रश्न पूछती है: "क्या हर बार जब उन्होंने वचन दिया, तो उनमें से एक समूह ने उसे फेंक दिया?"

  • यह प्रश्न वास्तव में एक कटु सत्य को उजागर करता है। यह कोई एक अलग घटना नहीं थी। बल्कि, यह उनके इतिहास में लगातार दोहराया जाने वाला एक पैटर्न था।

  • "उनमें से एक समूह" इस बात की ओर इशारा करता है कि यह पूरी कौम नहीं, बल्कि उनमें से एक प्रभावशाली वर्ग हमेशा वचन तोड़ने के लिए जिम्मेदार रहा। हालाँकि, बाकी लोगों ने उनका विरोध नहीं किया, जिससे वे भी साझेदार बन गए।

2. वास्तविक कारण का खुलासा:

  • आयत फिर इस व्यवहार के मूल कारण को बताती है: "बल्कि (सच तो यह है कि) उनमें से अधिकांश ईमान ही नहीं रखते।"

  • यहाँ "ईमान न रखने" का अर्थ है कि उनका दावा झूठा था। वे दिल से अल्लाह और उसके दीन पर विश्वास नहीं रखते थे। उनका ईमान सिर्फ जुबानी और दिखावटी था।

  • जब दिल में सच्चा ईमान नहीं होता, तो इंसान बाहरी वचनों और अनुबंधों को कोई महत्व नहीं देता। वह उन्हें अपने फायदे के अनुसार तोड़ता-मरोड़ता रहता है।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • वचन की पवित्रता: एक मोमिन के लिए अपना वचन (अहद) पवित्र होता है। उसे हर हाल में निभाना चाहिए, चाहे वह अल्लाह के साथ हो या इंसानों के साथ।

  • ईमान की असली पहचान: ईमान की सच्ची पहचान केवल दावों से नहीं, बल्कि कर्मों और वचनों की पाबंदी से होती है।

  • आदतों का महत्व: इंसान को अपनी बुरी आदतों से सावधान रहना चाहिए। लगातार की गई वचनभंगता एक बुरी आदत बन जाती है जो इंसान को अल्लाह की नाराजगी की ओर ले जाती है।

  • बहुमत हमेशा सही नहीं होता: "उनमें से अधिकांश" शब्द यह दर्शाता है कि सिर्फ बहुमत में होना सही होने का प्रमाण नहीं है। बहुमत अगर गलत रास्ते पर हो, तो उसका अनुसरण नहीं करना चाहिए।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत बनी इस्राईल के पूरे इतिहास का सार है - उन्होंने अल्लाह के साथ किए गए वचन (तौरात को मानने, पैगंबरों का साथ देने का) को बार-बार तोड़ा।

    • यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ किए गए मदीना के संविधान जैसे अनुबंधों को तोड़ने की उनकी प्रवृत्ति की ओर भी इशारा करती है।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • व्यक्तिगत वचनभंगता: आज भी लोग अपने वादे भूल जाते हैं। शादी के वादे, व्यापारिक अनुबंध, दोस्ती के वचन - हर जगह वचनभंगता आम है। यह आयत हर मुसलमान को याद दिलाती है कि उसे अपने हर वचन का पक्का होना चाहिए।

    • राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध: अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों को तोड़ना आज की विश्व राजनीति में एक सामान्य बात हो गई है। यह आयत इस बुराई की ओर इशारा करती है।

    • धार्मिक दिखावा: बहुत से लोग मस्जिद में जाकर अल्लाह के सामने झुकते हैं लेकिन बाहर आकर धोखाधड़ी, झूठ और वादाखिलाफी करते हैं। यह आयत साबित करती है कि यह दिखावा है, सच्चा ईमान नहीं।

    • सामाजिक विश्वासघात: परिवारों और समुदायों में भी विश्वासघात बढ़ रहा है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि एक मोमिन कभी विश्वासघाती नहीं हो सकता।

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • शाश्वत चरित्र लक्षण: यह आयत एक शाश्वत सत्य बताती है कि जिन लोगों के दिल में सच्चा ईमान नहीं होता, उनके लिए वचन तोड़ना एक स्वाभाविक आदत बन जाती है।

    • ईमान की कसौटी: भविष्य में भी, किसी के ईमान की कसौटी उसके वचनों के प्रति उसकी वफादारी से होगी।

    • समाज का निर्माण: एक ईमानदार और विश्वसनीय समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि उसके सदस्य अपने वचनों के पक्के हों। यह आयत इसी आदर्श की नींव रखती है।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "वचन की पवित्रता" और "सच्चे ईमान" के बीच के गहरे संबंध को उजागर करती है। यह सिखाती है कि वचनभंगता सिर्फ एक मामूली गलती नहीं, बल्कि दिल में ईमान की कमी का लक्षण है। यह अतीत की एक बुरी आदत का विवरण, वर्तमान के लिए एक चेतावनी और भविष्य के लिए एक नैतिक मार्गदर्शक है। एक सच्चा मोमिन हमेशा अपने अहद (वचन) का पाबंद होता है, चाहे परिस्थितियाँ कुछ भी हों।