१. पूरा आयत अरबी में:
وَلَوْ أَنَّهُمْ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَمَثُوبَةٌ مِّنْ عِندِ اللَّهِ خَيْرٌ ۖ لَّوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَلَوْ: और यदि।
أَنَّهُمْ: वे (यहूदी)।
آمَنُوا: ईमान लाते।
وَاتَّقَوْा: और डर रखते (अल्लाह से)।
لَمَثُوبَةٌ: तो प्रतिफल (इनाम)।
مِّنْ عِندِ اللَّهِ: अल्लाह की ओर से।
خَيْرٌ: अच्छा (बेहतर) है।
لَّوْ: यदि।
كَانُوا: वे होते।
يَعْلَمُونَ: जानने वाले।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और यदि वे (यहूदी) ईमान लाते और तक़वा (अल्लाह का डर) रखते, तो अल्लाह की ओर से (मिलने वाला) प्रतिफल (इनाम) निश्चय ही अच्छा (और बेहतर) होता। यदि वे जानते होते।"
गहन व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:102) में वर्णित बनी इस्राईल की भयंकर गलती - जादू को अपनाना - के बाद एक दुखभरी टिप्पणी और एक सार्वभौमिक सत्य प्रस्तुत करती है।
यह आयत एक तरह का "अफसोस" (Regret) व्यक्त करती है। यह दर्शाती है कि बनी इस्राईल ने जादू जैसी निकम्मी और हानिकारक चीज़ को चुनकर कितना बड़ा नुकसान उठाया। अल्लाह कहता है कि अगर उन्होंने सही रास्ता चुना होता, तो उन्हें जो इनाम मिलता, वह उनकी कल्पना से कहीं बेहतर होता।
आयत के मुख्य बिंदु:
शर्तें: आयत दो शर्तें बताती है जिन पर अल्लाह का बेहतरीन इनाम निर्भर करता है:
ईमान (विश्वास): अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों, उसके पैगंबरों और आखिरत पर पूरा विश्वास।
तक़वा (ईश-भय): अल्लाह का डर रखते हुए उसकी हर आज्ञा का पालन करना और हर निषेध से दूर रहना।
परिणाम: अगर ये दोनों शर्तें पूरी होतीं, तो उन्हें मिलने वाला इनाम होता:
"अल्लाह की ओर से प्रतिफल" - यह कोई सांसारिक इनाम नहीं, बल्कि अल्लाह की खुशी, उसकी रहमत, जन्नत और अनंत सुख था।
"निश्चय ही अच्छा (बेहतर) होता" - यह इनाम जादू जैसी किसी भी चीज़ से लाख गुना बेहतर और स्थायी था।
दुखद अंत: आयत इस वाक्य के साथ समाप्त होती है: "यदि वे जानते होते।"
यह उनकी अज्ञानता और अंधेपन पर दुख व्यक्त करता है।
उन्होंने अस्थायी दुनिया की निकम्मी चीज़ (जादू) को, अनंत सुख (अल्लाह का इनाम) पर तरजीह दे दी, क्योंकि वे इस सत्य को नहीं जानते थे या जानकर भी अनदेखा कर दिया।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
ईमान और तक़वा ही सच्ची कामयाबी की चाबी है: दुनिया और आखिरत में सच्ची सफलता केवल ईमान और अल्लाह के डर से ही मिल सकती है।
अल्लाह का इनाम सर्वश्रेष्ठ है: इंसान को कभी भी अल्लाह के इनाम और उसकी रहमत को दुनिया की किसी भी चीज़ पर नहीं तोलना चाहिए।
गलत विकल्पों पर पछतावा: जो लोग गुनाह और गुमराही का रास्ता चुनते हैं, वे आखिर में इसी तरह पछताते हैं कि "काश हम जानते होते...!"
ज्ञान का महत्व: इंसान को हमेशा सही और गलत के बारे में ज्ञान हासिल करना चाहिए ताकि वह सही फैसला ले सके।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत बनी इस्राईल के लिए एक अफसोस जताती है कि उन्होंने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाने और जादू जैसी बुराइयों को छोड़ने का अवसर गंवा दिया।
यह हर उस कौम पर लागू होती है जिसने पैगंबरों का इनकार किया और गुनाह का रास्ता अपनाया।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
गलत प्राथमिकताएँ: आज का इंसान पैसा, शोहरत, ऐशो-आराम और दुनियावी सुखों के पीछे भाग रहा है और अल्लाह की इबादत और आखिरत को भुला रहा है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि अगर वह ईमान और तक़वा अपनाए, तो अल्लाह का इनाम इन सबसे कहीं बेहतर है।
गुनाहों का आकर्षण: लोग गुनाह (जैसे ब्याज, धोखाधड़ी, अश्लीलता) को एक "फायदे" की तरह देखते हैं। यह आयत बताती है कि यह एक भ्रम है। ईमान और तक़वा का असली "फायदा" उससे कहीं बड़ा है।
पछतावे का डर: यह आयत हर इंसान को चेतावनी देती है कि आखिरत के दिन वह इसी तरह पछताएगा - "काश! मैंने अल्लाह का इनाम पाने के लिए ईमान और तक़वा अपनाया होता!" लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी।
दावत-ए-दीन का तरीका: यह आयत दावत देने का एक बहुत ही सुंदर तरीका सिखाती है। यह डराती नहीं है, बल्कि प्यार से समझाती है कि अल्लाह का रास्ता ही तुम्हारे लिए सबसे बेहतर है।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
शाश्वत सत्य: यह आयत एक शाश्वत सत्य स्थापित करती है कि ईमान और तक़वा ही सच्ची सफलता का एकमात्र रास्ता है। यह सिद्धांत हर जमाने में लागू रहेगा।
आशा का संदेश: भविष्य की पीढ़ियों के लिए यह आयत हमेशा आशा का संदेश देगी। चाहे दुनिया कितनी भी भौतिकवादी क्यों न हो जाए, अल्लाह का इनाम सबसे कीमती और बेहतर चीज़ बना रहेगा।
जीवन का लक्ष्य: यह आयत भविष्य के लोगों को यह याद दिलाती रहेगी कि जीवन का असली लक्ष्य अल्लाह का इनाम हासिल करना है, न कि दुनिया की नगण्य चीजों को इकट्ठा करना।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत एक "लाभदायक सौदे" की ओर इशारा करती है। यह इंसान को बताती है कि ईमान और तक़वा की कीमत पर अल्लाह जो इनाम देता है, वह दुनिया की किसी भी चीज़ से बेहतर है। यह आयत अतीत के लिए एक अफसोस, वर्तमान के लिए एक आकर्षक प्रस्ताव और भविष्य के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शन है। यह हमें सिखाती है कि हमें अपनी बुद्धि और ज्ञान का इस्तेमाल करके सही चुनाव करना चाहिए, न कि उन चीजों के पीछे भागना चाहिए जो हमें सिर्फ पछतावे में डाल दें।