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क़ुरआन 2:106 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरा आयत अरबी में:

مَا نَنسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِّنْهَا أَوْ مِثْلِهَا ۗ أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • مَا: जो (कोई)।

  • نَنسَخْ: हम रद्द कर दें / बदल दें।

  • مِنْ: से।

  • آيَةٍ: आयत (निशानी/हुक्म)।

  • أَوْ: या।

  • نُنسِهَا: हम उसे भुला दें।

  • نَأْتِ: हम ले आएं।

  • بِخَيْرٍ: बेहतर (चीज़ के साथ)।

  • مِّنْهَا: उससे।

  • أَوْ: या।

  • مِثْلِهَا: उसके समान।

  • أَلَمْ تَعْلَمْ: क्या आप नहीं जानते?

  • أَنَّ: कि।

  • اللَّهَ: अल्लाह।

  • عَلَىٰ: पर।

  • كُلِّ: हर।

  • شَيْءٍ: चीज़ का।

  • قَدِيرٌ: पूरी तरह सक्षम है।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "हम जिस आयत (हुक्म) को रद्द (बदल) करते हैं या भुला देते हैं, उसकी जगह हम उससे बेहतर या उसके समान (आयत) ले आते हैं। क्या आप नहीं जानते कि निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ पर पूरी तरह सक्षम है?"

गहन व्याख्या:
यह आयत इस्लामी न्यायशास्त्र (Fiqh) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करती है - "नस्ख" (نسخ) का सिद्धांत, यानी पिछले कुछ दिव्य आदेशों का रद्द होना और उनकी जगह नए आदेशों का आना।

इस आयत का संदर्भ उन लोगों के सवालों का जवाब है जो पूछते थे कि अगर क़ुरआन अल्लाह की किताब है, तो फिर उसमें पहले दिए गए कुछ आदेशों को बदला क्यों गया? (जैसे किबला का बदलना)।

आयत के मुख्य बिंदु:

  1. नस्ख की वास्तविकता को स्वीकार करना: आयत सीधे तौर पर स्वीकार करती है कि अल्लाह कुछ आयतों (आदेशों) को रद्द कर देता है या भुला देता है (यानी, उन पर अमल की अवधि समाप्त कर देता है)।

  2. बदलाव का उद्देश्य और शर्त:

    • अल्लाह किसी आयत को बिना किसी विकल्प के नहीं हटाता।

    • वह उसकी जगह "उससे बेहतर" या "उसके समान" आयत लेकर आता है।

    • "बेहतर" का मतलब हो सकता है - उसमें लोगों के लिए ज़्यादा आसानी हो, ज़्यादा पुण्य हो, या समय की ज़रूरत के अनुसार ज़्यादा उपयुक्त हो।

  3. अल्लाह की सामर्थ्य पर आधार: आयत का अंत एक शक्तिशाली प्रश्न के साथ होता है: "क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह हर चीज़ पर पूरी तरह सक्षम है?"

    • यह बताता है कि अल्लाह के लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। वह हिकमत (ज्ञान) के साथ ऐसा करता है।

    • यह इस बात पर ज़ोर देता है कि इंसान को अल्लाह के फैसलों पर सवाल नहीं उठाना चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि उसकी हिकमत में कोई न कोई भलाई ज़रूर है।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • दिव्य कानून का विकास: अल्लाह का कानून (शरीयत) मानवीय ज़रूरतों और समय के अनुसार, चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया। यह अल्लाह की दया और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।

  • अल्लाह की हिकमत पर भरोसा: मुसलमानों को अल्लाह के फैसलों पर पूरा भरोसा रखना चाहिए, भले ही वे उसकी गहरी हिकमत को न समझ पाएँ।

  • क़ुरआन की सुरक्षा: नस्ख सिर्फ आदेशों (अहकाम) के स्तर पर हुआ, क़ुरआन के पाठ (तिलावत) के स्तर पर नहीं। क़ुरआन की हर आयत आज भ� सुरक्षित है।

  • लचीलापन और स्थिरता का संतुलन: इस सिद्धांत से पता चलता है कि इस्लाम में मूल सिद्धांत (जैसे तौहीद) स्थिर हैं, जबकि कुछ व्यावहारिक नियम समय और हालात के अनुसार बदल सकते हैं।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय के लोगों के सवालों का जवाब थी, जब किबला का रुख बदला गया या शराब पर प्रतिबंध चरणबद्ध तरीके से लगाया गया।

    • इसने उस समय के मुसलमानों को यह समझाने में मदद की कि अल्लाह का मार्गदर्शन जारी प्रक्रिया है।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • विवादों का समाधान: आज भी कुछ लोग क़ुरआन की विभिन्न आयतों को लेकर भ्रम पैदा करते हैं। यह आयत इस बात की व्याख्या प्रदान करती है कि कुछ आदेश समय के साथ क्यों बदले गए।

    • धर्म की गतिशीलता को समझना: यह आयत हमें सिखाती है कि इस्लाम एक गतिशील धर्म है जो मानव जाति की बदलती ज़रूरतों के अनुसार ढल सकता है, लेकिन केवल अल्लाह के अधिकार के तहत।

    • अन्य धर्मग्रंथों पर एक प्रतिक्रिया: यहूदी और ईसाई अक्सर क़ुरआन में "परिवर्तन" का आरोप लगाते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि यह अल्लाह की ओर से एक जानबूझकर की गई प्रक्रिया थी, न कि कोई विरोधाभास।

    • इज्तिहाद (विचार) का द्वार: यह सिद्धांत मुस्लिम विद्वानों (उलेमा) के लिए नए मुद्दों के समाधान के लिए इज्तिहाद करने का एक आधार प्रदान करता है।

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • शाश्वत मार्गदर्शन: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए यह स्पष्ट करेगी कि क़ुरआन में कुछ आदेशों का बदलना अल्लाह की हिकमत और दया का हिस्सा था।

    • लचीलेपन का सिद्धांत: जैसे-जैसे दुनिया बदलती रहेगी, यह आयत इस्लाम की गतिशीलता और नए चुनौतियों के जवाब देने की क्षमता को दर्शाती रहेगी।

    • विश्वास को मज़बूत करना: यह आयत भविष्य के मुसलमानों के विश्वास को मज़बूत करेगी कि अल्लाह का मार्गदर्शन पूर्ण है और उसमें मानवता की हर ज़रूरत का ध्यान रखा गया है।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "दिव्य हिकमत" और "मार्गदर्शन के चरणबद्ध विकास" के सिद्धांत को स्थापित करती है। यह सिखाती है कि अल्लाह के फैसले हमेशा मानवता के हित में होते हैं और उसकी सामर्थ्य पर आधारित होते हैं। यह अतीत के सवालों का जवाब, वर्तमान के भ्रमों का निवारण और भविष्य के लिए लचीलेपन का एक स्थायी सिद्धांत है।