१. पूरा आयत अरबी में:
أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
أَلَمْ تَعْلَمْ: क्या आप नहीं जानते?
أَنَّ: कि।
اللَّهَ: अल्लाह।
لَهُ: उसी का है।
مُلْكُ: बादशाहत/शासन।
السَّمَاوَاتِ: आसमानों की।
وَالْأَرْضِ: और ज़मीन की।
وَمَا: और नहीं है।
لَكُم: तुम्हारे लिए।
مِّن دُونِ: के सिवा।
اللَّهِ: अल्लाह के।
مِن وَلِيٍّ: कोई रक्षक/सहायक।
وَلَا: और न।
نَصِيرٍ: कोई मददगार।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "क्या आप नहीं जानते कि आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही के लिए है? और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई रक्षक (वली) है और न कोई मददगार (नसीर)।"
गहन व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:106) में बताए गए सिद्धांत का तार्किक आधार प्रस्तुत करती है। पिछली आयत में कहा गया था कि अल्लाह आयतों को बदलने और रद्द करने में पूरी तरह सक्षम है। यह आयत बताती है कि ऐसा क्यों है? इसका कारण यह है कि पूरा ब्रह्मांड अल्लाह की संपत्ति और उसका राज्य है, और वही एकमात्र सर्वोच्च अधिकार रखता है।
आयत के तीन मौलिक सिद्धांत:
अल्लाह की संपूर्ण संप्रभुता (सॉव्रेन्टी):
"आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही के लिए है।" यह एक सर्वव्यापी सत्य है। पूरा ब्रह्मांड, उसका हर नियम, हर व्यवस्था अल्लाह के अधीन है।
चूँकि वह मालिक है, इसलिए उसे अपनी संपत्ति (मानवता के मार्गदर्शन) के बारे में जो चाहे, फैसला लेने का पूरा अधिकार है। वह आदेश दे सकता है, बदल सकता है या रद्द कर सकता है।
कोई वास्तविक रक्षक (वली) नहीं:
"और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई रक्षक (वली) है।" यानी कोई भी व्यक्ति, शक्ति या मूर्ति तुम्हें अल्लाह के फैसले से नहीं बचा सकती। न तो कोई संत, न कोई पैगंबर और न ही कोई देवता अल्लाह के आदेश के खिलाफ तुम्हारी सहायता कर सकता है।
कोई वास्तविक मददगार (नसीर) नहीं:
"और न कोई मददगार (नसीर)।" जब अल्लाह की मर्जी हो, तो कोई भी ताकत तुम्हें उसकी पकड़ से छुड़ाने नहीं आ सकती। न कोई सेना, न कोई सरकार और न ही कोई संगठन।
यह आयत एक rhetorical question (व्यंग्यात्मक प्रश्न) के साथ शुरू होती है - "क्या आप नहीं जानते...?" यह प्रश्न वास्तव में हर इंसान के दिल और दिमाग में मौजूद इस बुनियादी सत्य की याद दिलाता है।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
तौहीद (एकेश्वरवाद) की पुष्टि: अल्लाह ही एकमात्र शासक, रक्षक और मददगार है। उसके सिवा किसी और की इबादत करना सबसे बड़ा शिर्क है।
पूर्ण समर्पण: चूँकि अल्लाह मालिक है, इसलिए उसके हर फैसले और आदेश को पूरी तरह से स्वीकार करना और उसके आगे समर्पण करना ही एक मोमिन का काम है।
अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल): इंसान को हर मामले में केवल अल्लाह से मदद माँगनी चाहिए और केवल उसी पर भरोसा करना चाहिए।
अहंकार को दूर करना: यह आयत इंसान के अहंकार को तोड़ती है और उसे यह एहसास दिलाती है कि वह पूरी तरह से अल्लाह पर निर्भर है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत मक्का के मुशरिकों के लिए एक चुनौती थी जो मूर्तियों को अपना रक्षक और सहायक मानते थे।
यह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सहाबा के लिए एक ढाढस थी कि चाहे दुनिया की सारी ताकतें उनके खिलाफ क्यों न हों, उनका असली रक्षक और मददगार अल्लाह है।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
धर्मनिरपेक्षता और संप्रभुता: आधुनिक युग में राष्ट्र-राज्य अपने आप को सर्वोच्च मानते हैं। यह आयत याद दिलाती है कि असली संप्रभुता तो केवल अल्लाह की है।
मनुष्य की सीमाएँ: कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने दिखा दिया कि इंसान की सारी ताकत और विज्ञान कितना सीमित है। असली शासन और नियंत्रण तो अल्लाह के हाथ में है।
गलत सहारे: लोग आज भी पैसे, हैसियत, नेता, पार्टी या सुपरपावर्स को अपना सहारा मानते हैं। यह आयत बताती है कि ये सब नकली सहारे हैं, असली सहारा तो केवल अल्लाह है।
आध्यात्मिक शांति: जो व्यक्ति इस आयत को दिल से समझ लेता है, उसे हर तनाव और चिंता से मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि उसे पता होता है कि उसका मालिक और रक्षक अल्लाह है।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
शाश्वत सत्य: चाहे विज्ञान और तकनीक कितनी भी तरक्की कर ले, यह सत्य हमेशा बना रहेगा कि ब्रह्मांड का मालिक अल्लाह है।
आशा का संदेश: भविष्य की हर पीढ़ी के लिए, यह आयत आशा और साहस का स्रोत बनी रहेगी। चाहे हालात कितने भी विपरीत क्यों न हों, अल्लाह की मदद हमेशा मौजूद है।
मानवता का एकीकरण: यह आयत सभी मनुष्यों को एक ही बात की याद दिलाएगी - कि हम सब एक ही मालिक की संपत्ति हैं और उसी की ओर लौटकर जाना है।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "अल्लाह की संपूर्ण संप्रभुता" और "इंसान की पूर्ण निर्भरता" के सिद्धांत को स्थापित करती है। यह हमें सिखाती है कि हमारा जीवन, हमारी मौत और हमारा मार्गदर्शन पूरी तरह से अल्लाह के हाथ में है। यह अतीत के लिए एक आधार, वर्तमान के लिए एक सहारा और भविष्य के लिए एक शाश्वत सत्य है। एक मोमिन का काम है कि वह इस सत्य को जानकर, मानकर और उस पर अमल करके अपनी ज़िंदगी को सार्थक बनाए।